Saturday, December 28, 2013

इस्‍लाम के क्रूर पक्ष का नाम है वहाबियत

राजनीतिक इस्‍लाम के क्रूर पक्ष का नाम है वहाबियत

खुर्शीद अनवर। जनसत्ता। हालांकि पहले भी आतंकवाद पर कोई बहस या बातचीत आम जन के दिमाग को सीधे इस्लाम की तरफ खींच ले जाती थी। लेकिन विश्व व्यापार केंद्र पर हमले और उसके बाद दो नारों ‘आंतकवाद के खिलाफ  जंग’ और ‘दो सभ्यताओं के बीच टकराव’ ने ऐसी मानसिकता बनाई कि दुनिया भर में आम इंसानों के बीच एक खतरनाक विचार पैठ बनाने लगा कि ‘सारे मुसलमान आतंकवादी होते हैं’।

कुछ ‘नर्मदिल’ रियायत बरतते हुए इसे ‘हर आतंकवादी मुसलमान होता है’ कहने लगे। था तो यह राजनीतिक षड्यंत्र, लेकिन आम लोग हर मुद्दे की तह में जाकर पड़ताल करके समझ बनाएं यह मुमकिन नहीं। मान्यताएं उनमें ठूंसी जाती हैं। जिसे ‘इस्लामी आतंकवाद’ कहा गया, वह दरअसल है क्या? यह आतंकवाद सचमुच इस्लामी है या कुछ और? अगर इस्लाम ही है तो इसकी जड़ें कहां हैं? इस तथ्य का खुलासा करने के लिए एक शब्द का उल्लेख और उसका आशय समझ कर ही आगे बात की जा सकती है: ‘जिहाद’! आखिर जिहाद है क्या? इसकी उत्पत्ति कहां से हुई और आशय क्या था?
जिहाद की कुरान में पहली ही व्याख्या ‘जिहाद अल-नफस’ यानी खुद की बुराइयों के खिलाफ जंग है। जब ऐसा है तो फिर अचानक वह जिहाद कहां से आया जो इंसानों का, यहां तक कि मासूम बच्चों का खून बहाना इस्लाम का हिस्सा बन गया। दुनिया भर में ‘इस्लामी’ आतंकवाद खतरा बन मंडराने लगा। पर कहां से आया यह खतरा?
इस्लाम जैसे-जैसे परवान चढ़ा, अन्य धर्मों की तरह इसके भी फिरके बनते गए। एक रूप इस्लाम का शुरू से ही रहा और वह था राजनीतिक इस्लाम। जाहिर है कि सत्ता के लिए न जाने कितनी जंग लड़ी गर्इं और खुद मोहम्मद ने जंग-ए-बदर लड़ी। आसानी से कहा जा सकता है कि यह जंग भी मजहब को विस्तार देने के लिए लड़ी गई। मगर असली उद्देश्‍य था सत्ता और इस्लामी सत्ता। जंग-ए-बदर में सब कुछ वैसा ही हुआ जैसा किसी जंग में होता है, पर जिहाद की कुरान में दी गई परिभाषा फिर भी जस की तस रही।
वर्ष 1299 में राजनीतिक इस्लाम ने पहला बड़ा कदम उठाया और ऑटोमन साम्राज्य या सल्तनत-ए-उस्मानिया की स्थापना हुई।  (1299-1922)। आम धारणा कि यह जिहाद के नाम पर हुआ, मात्र मनगढ़ंत है। सत्ता की भूख इसकी मुख्य वजह थी।
जिहाद की नई परिभाषा गढ़ी अठारहवीं शताब्दी में मोहम्मद इब्न-अब्दुल-वहाब ने, जिसके नाम से इस्लाम ने एक नया मोड़ लिया, जिसमें जिहाद अपने विकृत रूप में सामने आया। नज्त में जन्मे इसी मोहम्मद इब्न-अब्दुल-वहाब (1703-1792) से चलने वाला सिलसिला आज वहाबी इस्लाम कहलाता है, जो सारी दुनिया को आग और खून में डुबो देना चाहता है।
मोहम्मद इब्न-अब्दुल-वहाब के आने से बहुत पहले सूफी सिलसिला मोहब्बत का पैगाम देने और इंसानों को इंसानों से जोड़ने के लिए आ चुका था। इसका प्रसार बहुत तेजी से तुर्की, ईरान, अरब और दक्षिण एशिया में हो चुका था। सूफी सिलसिले से जो कर्मकांड जुड़ गए वह अलग मसला है, मगर हकीकत है कि सूफी सिलसिले ने इस्लाम को बिल्कुल नया आयाम दे दिया और वह संकीर्णता की जंजीरें तोड़ता हुआ इस्लाम की हदें भी पार कर गया।
सल्तनत-ए-उस्मानिया से लेकर फारस और अरब तक सूफी सिलसिलों ने जो दो बेहद महत्त्वपूर्ण काम अंजाम दिए वे थे गुलाम रखने की परंपरा खत्म करना और स्त्री मुक्ति का द्वार खोलना। फारस में मौलाना रूमी के अनुयायियों द्वारा मेवलेविया सिलसिले ने तेरहवीं सदी में औरतों के लिए इस सूफी सिलसिले के दरवाजे न सिर्फ खोले बल्कि उनको बराबर का दर्जा दिया। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सूफियों के संगीतमय वज्दाना नृत्य (सेमा) में पुरुषों और महिलाओं की बराबर की हिस्सेदारी होने लगी। मौलाना रूमी की मुख्य शिष्या फख्रंनिसां थी। उनका रुतबा इतना था कि उनके मरने के सात सौ साल बाद मेवलेविया सिलसिले के उस समय के प्रमुख शेख सुलेमान ने अपनी निगरानी में उनका मकबरा बनवाया।
महान सूफी शेख इब्न-अल-अरबी (1165-1240) खुद सूफी खातून फातिमा बिन्त-ए-इब्न-अल-मुथन्ना के शागिर्द थे। शेख इब्न-अल-अरबी ने खुद अपने हाथों से फातिमा बिन्त-ए-इब्न-अल-मुथन्ना के लिए झोपड़ी तैयार की थी, जिसमें उन्होंने जिंदगी बसर की और वहीं दम तोड़ा।
मोहम्मद इब्न-अब्दुल-वहाब ने एक-एक कर इस्लाम में विकसित होती खूबसूरत और प्रगतिशील परंपराओं को ध्वस्त करना शुरू किया और उसे इतना संकीर्ण रूप दे दिया कि उसमें किसी तरह की आजादी, खुलेपन, सहिष्णुता और आपसी मेलजोल की गुंजाइश ही न रहे। कुरान और हदीस से बाहर जो भी है उसको नेस्तनाबूद करने का बीड़ा उसने उठाया। अब तक का इस्लाम कई शाखाओं में बंट चुका था। अहमदिया समुदाय अब्दुल-वहाब के काफी बाद उन्नीसवीं सदी में आया लेकिन शिया, हनफी, मुलायिकी, सफई, जाफरिया, बाकरिया, बशरिया, खुलफिया हंबली, जाहिरी, अशरी, मुन्तजिली, मुर्जिया, मतरुदी, इस्माइली, बोहरा जैसी अनेक आस्थाओं ने इस्लाम के अंदर रहते हुए अपनी अलग पहचान बना ली थी और उनकी पहचान को इस्लामी दायरे में स्वीकृति बाकायदा बनी हुई थी।
इनके अलावा सूफी मत तो दुनिया भर में फैल ही चुका था और अधिकतर पहचानें सूफी मत से रिश्ता भी बनाए हुए थीं। लेकिन मोहम्मद इब्न-अब्दुल-वहाब की आमद और प्रभाव ने इन सभी पहचानों पर तलवार उठा ली। ‘मुख्तसर सीरत-उल-रसूल’ नाम से अपनी किताब में खुद मोहम्मद इब्न-अब्दुल-वहाब ने लिखा ‘जो किसी कब्र, मजार के सामने इबादत करे या अल्लाह के अलावा किसी और से रिश्ता रखे वह मुशरिक (एकेश्वरवाद विरोधी) है और हर मुशरिक का खून बहाना और उसकी संपत्ति हड़पना हलाल और जायज है।’
यहीं से शुरू हुआ मोहम्मद इब्न-अब्दुल-वहाब का असली जिहाद, जिसने छह सौ लोगों की एक सेना तैयार की और हर तरफ घोड़े दौड़ा दिए। तमाम तरह की इस्लामी आस्थाओं के लोगों को उसने मौत के घाट उतारना शुरू किया। सिर्फ अपनी विचारधारा का प्रचार करता रहा और जिसने उसे मानने से इनकार किया उसे मौत मिली और उसकी संपत्ति लूटी गई। मशहूर इस्लामी विचारक जैद इब्न अल-खत्ताब के मकबरे पर उसने निजी तौर पर हमला किया और खुद उसे गिराया।
मजारों और सूफी सिलसिले पर हमले का एक नया अध्याय शुरू हुआ। इसी दौरान उसने मोहम्मद इब्ने सांद के साथ समझौता किया। मोहम्मद इब्ने सांद दिरिया का शासक था और धन और सेना दोनों उसके पास थे। दोनों ने मिलकर तलवारों के साथ-साथ आधुनिक असलहों का भी इस्तेमाल शुरू किया। इन दोनों के समझौते से दूरदराज के इलाकों में पहुंच कर अपनी विचारधारा को थोपना और खुलेआम अन्य आस्थाओं को तबाह करना आसान हो गया। अन्य आस्थाओं से जुड़ी तमाम किताबों को जलाना मोहम्मद इब्न-अब्दुल-वहाब का शौक-सा बन गया। इसके साथ ही उसने एक और घिनौना हुक्म जारी किया और वह यह था कि जितनी सूफी मजारें, मकबरे या कब्रें हैं उन्हें तोड़ कर वहीं मूत्रालय बनाए जाएं।
सऊदी अरब जो कि घोषित रूप से वहाबी आस्था पर आधारित राष्ट्र है, उसने मोहम्मद इब्न-अब्दुल-वहाब की परंपरा को जारी रखा। बात यहां तक पहुंच गई कि 1952 में बुतपरस्ती का नाम देकर उस पूरी कब्रगाह को समतल बना दिया गया जहां मोहम्मद के पूरे खानदान और साथियों को दफन किया गया था। ऐसा इसलिए किया गया कि लोग जियारत के लिए इन कब्रगाहों पर जाकर मोहम्मद और उनके परिवार को याद करते थे।
अक्टूबर 1996 में काबा के एक हिस्से अल्मुकर्रमा को भी इन्हीं कारणों से गिराया गया। काबा के दरवाजे से पूर्व स्थित अल-मुल्ताजम जो कि काबा का यमनी हिस्सा है, उसके खूबसूरत पत्थरों को तोड़ कर वहां प्लाइवुड लगा दिया गया, जिससे कि लोग पत्थरों को चूमें नहीं, क्योंकि ऐसा करने पर वहाबी इस्लाम के नजदीक यह मूर्तिपूजा हो जाती है। अभी हाल में ‘द इंडिपेंडेंट’ की एक रिपोर्ट के अनुसार मक्का के पीछे के हिस्से में जिन खंभों पर मोहम्मद की जिंदगी के महत्त्वपूर्ण हिस्सों को पत्थरों पर नक्काशी करके दर्ज किया गया था, उन खंभों को भी गिरा दिया गया। इन खंभों पर की गई नक्काशी में एक जगह अरबी में यह भी दर्ज था कि मोहम्मद किस तरह से मेराज (इस्लामी मान्यता के अनुसार मुहम्मद का खुदा से मिलने जाना) पर गए।
वहाबियत इस्लाम के पूरे इतिहास, मान्यताओं, परस्पर सौहार्द और पहचानों के सह-अस्तित्व के साथ खिलवाड़ करता आया है। एक ही पहचान, एक ही तरह के लोग, एक जैसी किताब और नस्ली शुद्धता का नारा हिटलर ने तो बहुत बाद में दिया, इसकी बुनियाद तो वहाबियत ने उन्नीसवीं शताब्दी में ही इस्लाम के अंदर रख दी थी।
अरब से लेकर दक्षिण एशिया तक वहाबियत ने अपनी इस शुद्धता का तांडव बहुत पहले से दिखाना शुरू कर दिया था, लेकिन पिछले कुछ दशकों में इसने अपना घिनौना और क्रूर रूप और भी साफ कर दिया। जहां एक तरफ मेवलेविया सिलसिले ने तेरहवीं सदी में औरतों के लिए सिलसिले के दरवाजे न सिर्फ खोले बल्कि उनको बराबर का दर्जा दिया था, वहीं दूसरी तरफ वहाबी इस्लाम ने औरतों को जिंदा दफन करना शुरू कर दिया। बेपर्दगी के नाम पर औरतों के चेहरों के हिस्से बदनुमा करने और औरतों पर व्यभिचार का इल्जाम लगा कर उन पर संगसारी करके मार देने को इस्लामी रवायत बना दिया।
वहाबियत पर विश्वास न रखने वाले मुसलमानों को इस्लाम के दायरे से खारिज करके उन्हें सरेआम कत्ल करना जायज और हलाल बताया जाने लगा। यह मात्र इस्लाम के अनुयायियों के साथ सलूक की बात है। अन्य धर्मों पर कुफ्र का इल्जाम लगा कर उन्हें खत्म करना, संपत्ति लूटना, उनकी औरतों को जबर्दस्ती वहाबियत पर धर्मांतरण करवाना इनके लिए एक आम बात बन चुकी है।
वहाबियत या वहाबी इस्लाम लगातार पूरी दुनिया के लिए खतरा बनता जा रहा है। मौत के इन सौदागरों की करतूत को आमतौर पर इस्लामी आतंकवाद का नाम दिया जाता है, जिसकी साजिश वाशिंगटन और लंदन में रची जाती है और कार्यनीति सऊदी अरब से लेकर दक्षिण एशिया तक तैयार की जाती है। अल-कायदा, तालिबान, सिपाह-ए-सहबा, जमात-उद-दावा, अल-खिदमत फाउंडेशन, जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा जैसे संगठन इस साजिश को अंजाम देकर लगातार खूनी खेल खेल रहे हैं।
दक्षिण एशिया में वहाबी इस्लाम की जड़ों को मजबूत करने का काम मौलाना मौदूदी ने अंजाम दिया। हकूमत-ए-इलाहिया इसी साजिश का हिस्सा है जिसके तहत गैर-वहाबी आस्थाओं को, चाहे वह इस्लाम के अंदर की आस्थाएं हों या गैर-इस्लामी, जड़ से उखाड़ फेंकने और उनकी जगह एक ऐसा निजाम खड़ा करने की योजना है जिसमें हिटलर जैसा वहाबी परचम लहराया जा सके। किससे छिपा है कि सऊदी अरब का हर कदम अमेरिका की जानकारी में उठता है। क्या अमेरिका को इसका इल्म नहीं कि सऊदी अरब अपने देश से लेकर पाकिस्तान और बांग्लादेश तक इन संगठनों की तमाम तरह से मदद कर रहा है और इसकी छाया हिंदुस्तान पर भी मंडरा रही है।
आज की वहाबी आस्था के पास केवल तलवार और राइफलें नहीं हैं बल्कि इनके हाथों बेहद खतरनाक आधुनिकतम हथियार लग चुके हैं। इनकी नजरें पाकिस्तान में मौजूद परमाणु हथियारों पर भी हैं। आस्था जब पागलपन बन जाए तो वह तमाम हदें पार कर सकती है। जो लोग ईद के दिन मस्जिदों में घुसकर लाशों के अंबार लगा सकते हैं वे मौका मिलने पर क्या कुछ नहीं कर गुजर सकते। वहाबियत का खतरा इस संदर्भ में देखा जाना चाहिए। इस खतरे की चपेट में हर वह शख्स है जो इस दरिंदगी के खिलाफ खड़ा है।

सारे मुसलमान हिन्दु हैं – मौलाना मुफ्ती अब्दुल कयूम

सारे मुसलमान हिन्दु हैं , अल्लाह नामकी चीज कोई
नहीं है . सब गढ़ा हुआ है,
इसे पढ़े —–

स्व0 मौलाना मुफ्ती अब्दुल कयूम
जालंधरी संस्कृत ,हिंदी,उर्दू ,फारसी व अंग्रेजी के
जाने-माने विद्वान् थे।
अपनी पुस्तक “गीता और कुरआन “में उन्होंने निशंकोच
स्वीकार किया है कि, “कुरआन”की सैकड़ों आयतें
गीता व उपनिषदों पर आधारित हैं।
मोलाना ने मुसलमानों के पूर्वजों पर भी काफी कुछ
लिखा है ।
उनका कहना है कि इरानी “कुरुष ” ,”कौरुष “व
अरबी कुरैश मूलत : महाभारत के युद्ध के बाद भारत से
लापता उन २४१६५कौरव सैनिकों के वंसज हैं, जो मरने से
बच गए थे।
अरब में कुरैशों के अतिरिक्त “केदार”व “कुरुछेत्र”
कबीलों का इतिहास भी इसी तथ्य को प्रमाणित
करता है।
कुरैश वंशीय खलीफा मामुनुर्र्शीद(८१३-८३५) के
शाशनकाल में निर्मित खलीफा का हरे रंग
का चंद्रांकित झंडा भी इसी बात को सिद्ध
करता है।
कौरव चंद्रवंशी थे और कौरव अपने आदि पुरुष के रूप में
चंद्रमा को मानते थे। यहाँ यह तथ्य भी उल्लेखनीय है
कि इस्लामी झंडे में चंद्रमां के ऊपर“अल्लुज़ा”अर्ताथ
शुक्र तारे का चिन्ह,अरबों के कुलगुरू“शुक्राच
ार्य“का प्रतीक ही है।
भारत के कौरवों का सम्बन्ध शुक्राचार्य से
छुपा नहीं है।
इसी प्रकार कुरआन में “आद“जाती का वर्णन है,वास्तव में
द्वारिका के जलमग्न होने पर जो यादववंशी अरब में बस
गए थे,वे ही कालान्तर में “आद” कोम हुई।
अरब इतिहास के विश्वविख्यात विद्वान् प्रो०
फिलिप के अनुसार२४वी सदी ईसा पूर्व
में“हिजाज़” (मक्का-मदीना) पर जग्गिसा (जगदीश)
का शासन था।
२३५०ईसा पूर्व में शर्स्किन ने जग्गीसा को हराकर अंगेद
नाम से राजधानी बनाई।
शर्स्किन वास्तव में नारामसिन अर्थार्त नरसिंह
का ही बिगड़ा रूप है।
१००० ईसा पूर्व अन्गेद पर गणेश नामक राजा का राज्य
था।
६ वी शताब्दी ईसा पूर्व हिजाज पर हारिस
अथवा हरीस का शासन था।
१४वी सदी के विख्यात अरब इतिहासकार
“अब्दुर्रहमान इब्ने खलदून ” की ४०से अधिक भाषा में
अनुवादित पुस्तक “खलदून का मुकदमा” में लिखा है
कि ६६० इ०से १२५८ इ० तक “दमिश्क” व
“बग़दाद”की हजारों मस्जिदों के निर्माण में
मिश्री,यूनानी व भारतीय वातुविदों ने सहयोग
किया था।
परम्परागत सपाट छतवाली मस्जिदों के स्थान पर
शिवपिंडी कि आकृति के गुम्बदों व उस पर अष्ट दल कमल
कि उलट उत्कीर्ण शैली इस्लाम को भारतीय
वास्तुविदों की देन है।
इन्ही भारतीय वास्तुविदों ने“बैतूल हिक्मा” जैसे
ग्रन्थाकार का निर्माण भी किया था।
अत: यदि इस्लाम वास्तव में यदि अपनी पहचान
कि खोंज करना चाहता है तो उसे
इसी धरा ,संस्कृति व प्रागैतिहासिक ग्रंथों में स्वं
को खोजना पड़ेगा.
जय हिंदु

Thursday, December 26, 2013

भारतीय मुसलमानों का सच

Muslim places matrimonial

An Indian Muslim places matrimonial
advt for a " SECOND WIFE " as a backup
bride, but insists she must be a VIRGIN.
What a HYPOCRITE !

Friday, December 20, 2013

मुस्लिम‬ मित्रों से एक छोटा सा सवाल

‎मुस्लिम‬ मित्रों से एक छोटा सा सवाल :-

हाल ही में हुए मुज्जफरनगर दंगों पर सभी आहत हैं चाहें वे हिन्दू हो या मुसलमान, पर ज्यादातर मुस्लिम समुदाय इसके लिए राजनैतिक पार्टिओं को कोस रहा है.. हो सकता है उन दंगों को भड़काने में राजनैतिक पार्टिओं का भी हाथ हो, पर जिस मुज्जफरनगर में आज़ादी से पहले से आजतक कोई साम्प्रदायिक दंगा नहीं हुआ था वहाँ पहली बार २०१३ में दंगा हुआ..

दंगा क्यों हुआ और किस समुदाय ने इसकी शुरुवात की वो भी सबको पता है बताने की जरुरत नहीं है, तो यहाँ सवाल ये पैदा होता है कि कई दशकों से चली आ रही है हिन्दू- मुसलमानों की एकता को वहाँ भंग करने का काम किसने शुरू किया ? और केवल वहीँ नहीं दुनिया के हरेक कोने में सबसे पहले मार- काट दंगे कौन शुरु करता है बताने की जरुरत नहीं है.. फिर जब गैर मुस्लिम इसका जवाब देते हैं तो मुस्लिम समुदाय रोना क्यों शुरू कर देता है ?

जीवन का नियम है कि क्रिया की प्रतिक्रिया हमेशा होती है.. चाहें बड़ी हो या छोटी हो..

गुजरात दंगे किसने शुरू किए थे ? बर्मा दंगे क्यों शुरू हुए थे ? अमेरिका ने पाकिस्तान वा अफगानिस्तान पर हमले क्यों शुरू किए थे ? इजरायल के साथ युद्ध ना करने के दस्तावेजों पर साइन करने के बाद पहले लड़ाई की पहल कौन करता है.. ? भारत से पाकिस्तान को अलग काटने की माँग की पहल किसने शुरू की थी ? ऐसे बहुत से सवाल हैं जहाँ पर आपको ऐसे हरेक मामले में शुरूवात करने वाला पक्ष मुस्लिम समुदाय ही मिलेगा..

फिर ऐसे में दुसरे पक्ष यदि अपनी आत्मरक्षा में कुछ कदम उठाता है तो क्या वो गलत है ? मुज्जफरनगर दंगों में क्या सपा, ‪#‎मोदी‬ या अमित शाह या किसी अन्य पार्टी ने कहा था कि जाओ और जाकर जाटों की लड़की को छेड़ो ? और जब उनके भाई इसके विरोध में आयें तो उन दोनों को जान से मार दो ?

राजनैतिक पार्टियाँ अपने लाभ के लिए किसी दंगे को बड़ा कर सकती हैं पर पैदा नहीं कर सकती हैं.. यदि हिन्दू साम्प्रदायिक होते हैं और मोदी या संघ या राजनैतिक पार्टियाँ आदि हिन्दुओं को भड़काती हैं तो हिमाचल प्रदेश में तो करीब 98% से ज्यादा हिन्दू हैं और हर साल वहाँ पर सरकारें बदलती हैं भाजपा भी सत्ता में आती है फिर भी वहाँ अभी तक हिन्दू- मुसलमानों का एक भी साम्प्रदायिक दंगा क्यों नहीं हुआ ?

इसका केवल एक ही कारण है क्योंकि हिन्दू वहाँ अभी बहुमत में हैं और मुस्लिम समुदाय अल्पमत में.. और दुनिया के किसी भी कोने में देख लीजिये जहाँ- जहाँ पर मुस्लिम बहुमत में हैं वहाँ पर गैर मुसलमानों के साथ आये दिन मुसलमानों के साथ टकराव आम बात होती है..

तो क्या गैरमुसलमानों का अपने बचाव में कोई कदम उठाना गलत है वो भी जब- जब कि हमेशा हर दंगे मार- काट की शुरुवात मुस्लिम समुदाय ही करता है..

मुस्लिम मित्रों से जवाब की आश रहेगी....

मुस्लिम कब समझेंगे की उन्हें विकास चाहिए ना की धार्मिक कट्टरता

‪‎मुजफ्फरनगर‬ ,शामली से विस्थापित हुए मुस्लिम केम्पों में अब तक 60 से ज्यादा वृद्ध और बच्चे ‪‎ठण्ड‬ से अपनी जान गँवा चुके .....

1000 से ज्यादा लोग निमोनिया से ग्रस्त हैं , और मूलभूत सुविधायों के अभाव से लगभग सभी ग्रस्त हैं

इस देश के मुस्लिम कब समझेंगे की उन्हें विकास चाहिए ना की धार्मिक कट्टरता ,,,,,

‪‎मुस्लिमों‬ के रहनुमा बनने वाली केंद्र सरकार में बैठी ‪‎कोंग्रेस‬ हो ...

‪‎मुल्ला‬ टोपी पहनकर आतंकियों की पैरोकार करने वाली समाजवादी पार्टी हो

या अभी अभी नवजात मुस्लिम पैरोकार का दावा करने वाली ‪‎आप‬ हो ...
इनमे से कोई भी पार्टी ने अभी तक रिलीफ केम्पों में सुविधाओं के लिए कोई कदम उठाना तो दूर बल्कि इनके लिए कोई चर्चा करना भी मुनासिब नहीं समझा .....

क्या कोंग्रेस के पास इनके लिए फंड की कमी है ? ???????

क्या समाजवादी पार्टी की सरकार होते हुए इनके पास प्रशासन या पैसे की कमी है ????????

क्या देश हित में चंदा इकटठा करने वाली आ आ पा के पास इतना भी पैसा नहीं की वो इन रिलीफ केम्पों को कुछ राहत सामग्री भिजवा सके ???

असल में मुस्लिमों को ये बात समझनी होगी की कब तक वो धर्म के नाम पर दिखाए जा रहे इस डर को दिल में पाल कर रखेगी ? .......कब तक वो वोट बैंक की घटिया राजनीति का शिकार होती रहेगी??????? .....हिंसा बिल के जरिये मुसलमानों का कुछ भला नहीं होना बल्कि हिन्दू- मुस्लिम के बीच खाई को और बढाया जाना है जिसके दुस्प्रभाव ही होंगे आपके लिए

अंत में बता दूँ की रिलीफ केम्पों में कुछ लोकल हिन्दू ही इन्हें कम्बल आदि मुहेया करवा रहें हैं लेकिन वो नाकाफी हैं क्यूंकि जब तक मुस्लिम अपने धार्मिक कट्टरपन और इस्तेमाल होने की प्रवर्ति नहीं छोड़ेंगे , तब तक हिन्दुओं में पूर्ण विश्वास नहीं जागेगा आपके प्रति .....

Tuesday, December 17, 2013

अगर ये गुजरात में हुआ होता ?





अगर ये गुजरात में हुआ होता ?

सऊदी अरब में अल-सलाम नामक जगह में एक सीवर ड्रेनेज से पचास कुरआन बरामद की गईं। एक बच्चे ने खेलते-खेलते इन्हें देखा और पुलिस को बुलाया और सीवर खुलवाने से यह पता चला। सऊदी अरब में यह पहली बार नहीं हुआ है और इस वर्ष के आरम्भ में भी कुरआन के अपमान का एक मामला सामने आया था, लेकिन उसे दबा दिया गया। इस घटना ने समूची मुस्लिम दुनिया में गहरी चिंता व्याप्त कर दी है। ताज्जुब है कि अभी तक अपने देश में इसके विरोध में 'शांतिदूतों' द्वारा कोई 'आज़ाद मैदान' नहीं किया गया । अरे इनको तो पाकिस्तान से लेकर अफगानिस्तान, ईरान से लेकर किर्गिस्तान, लीबिया से लेकर इथोपिया और इराक से लेकर सूडान तक में होने वाली जरा जरा सी घटनाओं की चिंता रहती है, भले ही कश्मीर और आसाम के हिंदुओं के दुःख दर्द, बांग्लादेशियों की बढ़ती घुसपैठ और अपने ही पड़ोस के किसी मकान में रह रहे आतंकियों पर नजर कभी ना जाये। क्या खबर नहीं मिली अभी तक शांतिदूतों को इस घटना की या इनकी सोच में कुछ सुधार आया है, सोचने वाली बात है।

ये क्या?

धर्मनिरपेक्षता का निरिक्षण नहीं करोगे क्या ?








हमरे पश्चिम बंगाल में एक जिला है दक्षिण चौबीस परगना , उसमें मग्राहत नाम का ब्लाक है उसमें बीस साल में हिन्दुओं का आबादी 87 परसेंट से घाट के 47 होगया और और मुसलमानों का आबादी 11 परसेंट से बड कर 81 होगया ।
महिना भर पहले मुसलमानों का एक सम्मलेन हुआ वहां हिन्दू धर्म को गली गलोच , हमरे देवी देवताओं को गली गलोच और उन्होंने जलूस निकले ,, उस जलूस में ९ ० ० महिला का प्रदर्शन किया और घोषण किया के हमने एक साल में यह नौ सौ लड़कियों को हिन्दू से मुसलमान बनाया और लव जिहाद के चक्कर में आके जो मुस्लमान बन गयी उनका जलसों निकले फिर भी हिन्दू मौन है
क्या इसके बाद भी धर्मनिरपेक्षता का निरिक्षण नहीं करोगे क्या ?

चीन के प्रांत में दंगा







दुनिया भर में कहीं भी दंगा हो नरसंहार हो मार-काट हो लेकिन वजह सिर्फ एक होती है... वो वजह जो बच्चा-बच्चा जनता है... पूरी दुनिया इससे जूझ रही है लेकिन जानवरों को कोई फर्क नहीं पड़ता । सम्पूर्ण विश्व को अपनी तरह नपुंसक बनाने की इस मुहीम का नाम है 'इस्लाम' । 

वास्तव में इस्लाम और मुसलमान में ऐसी कोई बात नहीं जो इंसानों के भीतर पाई जाती हो या साफ़ शब्दों में कहूँ तो मुसलमान और इंसान में कोई समानता नहीं... जो इंसान है वो मुसलमान नहीं होगा और जो मुसलमान है वो इंसान नहीं होगा ।

शायद यही वजह है कि अंगोला, जापान और रूस जैसे देशों ने इस बीमारी की पहचान करके इस पर पाबंदी जैसे कठोर क़दम तक उठा लिए...

Monday, December 16, 2013

"गंगा-जमुनी", "अमन की आशा", "सभी धर्म एक समान हैं"



रामेश्वरम मंदिर के लिए प्रसिद्ध तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले के कई मुस्लिम बहुल गाँवों में स्थानीय पंचायतों ने फतवा जारी करके "बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश निषेध" का बोर्ड लगा दिया है.

अथियुत्हू, पुतुवालासी, पनईकुलम, सिथरकोटी जैसे कई मुस्लिम बहुल गाँवों में मुस्लिम जमात ताजुल इस्लाम संघ द्वारा नोटिस लगाया गया है कि, "इस गाँव में किसी भी प्रकार का पोस्टर-बैनर अथवा गाड़ियों के होर्न बगैर पंचायत की इजाज़त के नहीं लगाए जा सकेंगे, कोई भी गैर-इस्लामिक गतिविधि स्वीकार नहीं है". स्थानीय निवासी बताते हैं कि इस इलाके से पंचायत स्तर पर भी आज तक कभी कोई हिन्दू उम्मीदवार नहीं जीता. रामनाथपुरम के सांसद हैं मुस्लिम मुनेत्र कषगम (MMK) के एमएच जवाहिरुल्लाह.

पामबन गाँव के रहवासी कुप्पुरामू बताते हैं कि यहाँ कई गाँवों में लगभग ५०-६०% दुकानदार मुसलमान हैं, और हिन्दू को किसी व्यवसाय आरम्भ करने के लिए इनकी अनुमति लेनी होती है.... जिला कलेक्टर अथवा राज्य सरकार (चाहे DMK सरकार हो या AIDMK) को शिकायत करने पर मुस्लिम वोटों के लालच में आँखें मूँद ली जाती हैं.

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क्या कहा?? ये सब मैं आपको क्यों बता रहा हूँ?? अरे भाई, कहा था ना कि मैं एक "डाकिया" हूँ, मेरा काम है सूचना देना... बाकी आप लोग "गंगा-जमुनी", "अमन की आशा", "सभी धर्म एक समान हैं" जैसे सेक्यूलर तराने गाते रहिए न भाई,,, कौन रोक रहा है...

सैकुलर हिंदु


जेहादी मुसलमान कितने भी गंदे कयों ना हों .कितने भी नरपिशाच कयों न हों ........
लेकिन सैकुलर हिंदु की तरह दोगले बिलकुल भी नही .कि दिल मे कुछ और जुबां पर कुछ...
जो कहते हैं डंके की चोट पर कहते हैं

यकिन नही आता ..तो खुद ही देख लें

Friday, December 13, 2013

1971 के युद्ध में हिंदुओं को चुन-चुनकर मार रही थी पाकिस्तानी फौज

1971 के युद्ध में हिंदुओं को चुन-चुनकर मार रही थी पाकिस्तानी फौज




1971 के युद्ध में पाकिस्तानी फौज पूर्वी पाकिस्तांन में हिंदुओं को चुन-चुनकर कर मार रही थी. पाकिस्तानी फौज ने जान-बूझकर ऐसा किया. भारत की सरकार यह सब जानती थी, लेकिन इसे गलत तरीके से लोगों तक पहुंचाया गया. तब कहा गया कि पाकिस्तानी सेना ने बंगालियों का कत्लेआम किया है. यह सब एक किताब में लिखा है, जो हाल ही में रिलीज हुई है.

अब तक ऐसा माना जाता रहा था कि 1971 के भारत-पाकिस्ताजन युद्ध में पाकिस्ता.नी फौज के निशाने पर बंगाली थे. पर अब एक किताब से नई जानकारी सामने आई है. किताब में बांग्लापदेश की आजादी (तब के पूर्वी पाकिस्ताान) की लड़ाई के बारे में कुछ अहम बातों का खुलासा किया गया है. भारत सरकार इस तथ्या से पूरी तरह वाकिफ थी कि युद्ध में हिंदू निशाना बन रहे हैं, इसके बावजूद इसे ज्यायदा प्रचारित नहीं किया गया. अगर तब इस बात का खुलासा किया जाता, तो जनसंघ के नेताओं के भड़कने का खतरा था.

गौरतलब है कि भारतीय जनता पार्टी जनसंघ से ही निकली है. लेखक गरी जे. बास ने अपनी किताब, 'The Blood Telegram: Nixon, Kissinger and a Forgotten Genocide में इस युद्ध के बारे में विस्ता र से लिखा है.

प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में राजनीति और अंतरराष्ट्रीdय संबंध के प्रोफेसर जे. बास के मुताबिक वह युद्ध मूल रूप से पूर्वी पाकिस्तािन में रह रहे हिंदुओं के खिलाफ था, इसके बावजूद भारत ने इसे बंगा‍लि‍यों के खिलाफ संहार करार दिया.

जे. बास ने लिखा है कि भारतीय विदेश मंत्रालय का तर्क है कि पाकिस्ताोन के जनरल चुनाव हार बैठे, क्योंखकि उनके देश में बंगालियों की तादाद ज्यासदा थी.


पाकिस्तान की सेना लगातार हिंदू समुदाय को निशाना बनाती रही. किताब के मुताबिक, भारतीय अधिकारी यह नहीं चाहते थे कि जनसंघ पार्टी के हिंदू राष्ट्र वादियों को उग्र होने का मौका मिले.

जे. बास ने अपनी किताब में लिखा है कि तब रूस में भारत के राजदूत रहे डीपी धर के मुताबिक पाकिस्तानी सेना ने पहले से हिंदुओं को ही जनसंहार के लिए निशाना बना रखा था. लेकिन इस बात से हिंदू राष्ट्रवादियों का गुस्सा भड़कने का खतरा था.



Wednesday, December 11, 2013

ब्रेडफ़ोर्ड को लेकर "सेकुलर" मित्रों से दो सवाल

ब्रेडफ़ोर्ड को लेकर "सेकुलर" मित्रों से दो सवाल

इंग्लैण्ड में पूर्वी लन्दन, ब्रेडफ़ोर्ड एवं बर्मिंघम शहरों के मुस्लिम बहुल इलाकों में कुछ दिनों पहले अचानक रात को पोस्टर जगह-जगह खम्भों पर लगे मिले… साथ में कुछ पर्चे भी मिले हैं जिसमें मुस्लिम बहुल इलाकों को "शरीयत कण्ट्रोल्ड झोन" बताते हुए वहाँ से गुज़रने वालों को चेताया गया है, कि यहाँ से गुज़रने अथवा इस इलाके में आने वाले लोग संगीत न बजाएं, जोर-जोर से गाना न गाएं, सिगरेट-शराब न पिएं, महिलाएं अपना सिर ढँककर निकलें… आदि-आदि। कुछ गोरी महिलाओं पर हल्के-फ़ुल्के हमले भी किए गये हैं… हालांकि पुलिस ने इन पोस्टरों को तुरन्त निकलवा दिया है, फ़िर भी आसपास के अंग्रेज रहवासियों ने सुरक्षा सम्बन्धी चितांए व्यक्त की हैं एवं ऐसे क्षेत्रों के आसपास स्थित चर्च के पादरियों ने सावधान रहने की चेतावनी जारी कर दी है…।

स्थानीय निवासियों ने दबी ज़बान में आरोप लगाए हैं कि पिछले दो दिनों से लन्दन में जारी दंगों में "नीग्रो एवं काले" उग्र युवकों की आड़ में नकाब पहनकर मुस्लिम युवक भी इन दंगों, आगज़नी और लूटपाट में सक्रिय हैं…। सच्चाई का खुलासा लन्दन पुलिस द्वारा गिरफ़्तार किये गये 300 से दंगाईयों से पूछताछ के बाद ही हो सकेगा, परन्तु "शरीया जोन" के पोस्टर देखकर ईसाईयों में भी असंतोष और आक्रोश फ़ैल चुका है।

भारत में ऐसे "मिनी पाकिस्तान" और "शरीयत नियंत्रित इलाके" हर शहर, हर महानगर में बहुतायत में पाए जाते हैं, जहाँ पर पुलिस और प्रशासन का कोई जोर नहीं चलता। कल ही मुरादाबाद में, कांवड़ यात्रियों के गुजरने को लेकर भीषण दंगा हुआ है। "सेकुलर सरकारी भाषा" में कहा जाए तो एक "समुदाय" द्वारा, "क्षेत्र विशेष" से कांवड़ यात्रियों को "एक धार्मिक स्थल" के सामने से निकलने से मना करने पर विवाद की स्थिति बनी और दंगा शुरु हुआ। देखना है कि क्षेत्र के माननीय(?) सांसद मोहम्मद अजहरुद्दीन क्या कदम उठाते हैं, तथा "गुजरात-फ़ोबिया" से ग्रस्त मानसिक विकलांग मीडिया इसे कितना कवरेज देता है (कुछ माह पहले बरेली में हुए भीषण दंगों को तो मीडिया ने "बखूबी"(?) दफ़न कर दिया था)

हमारे "तथाकथित सेकुलर" मित्र, क्या इन दो प्रश्नों का जवाब देंगे कि -

1) जब तक मुस्लिम किसी आबादी के 30% से कम होते हैं तब तक वे उस देश-राज्य के कानून को मानते हैं, पालन करते हैं… परन्तु जैसे-जैसे इलाके की मुस्लिम आबादी 50% से ऊपर होने लगती है, उन्हें "शरीयत कानून का नियंत्रण", "दारुल-इस्लाम" इत्यादि क्यों याद आने लगते हैं?

2) जब-जब जिस-जिस इलाके, क्षेत्र, मोहल्ले-तहसील-जिले-संभाग-राज्य-देश में मुस्लिम बहुसंख्यक हो जाते हैं, वहाँ पर अल्पसंख्यक (चाहे ईसाई हों या हिन्दू) असुरक्षित क्यों हो जाते हैं?

इन मामूली और आसान सवालों के जवाब "सेकुलरों" को पता तो हैं, लेकिन बोलने में ज़बान लड़खड़ाती है, लिखने में हाथ काँपते हैं, और सारा का सारा "सेकुलरिज़्म", न जाने कहाँ-कहाँ से बहने लगता है…

अल्लाह को मदद चाहिए ?

आर्य - अल्लाह को मदद चाहिए ?
मुस्लिम-नही।

आर्य - किसी भी प्रकार की नहीं?
मुस्लिम- हाँ किसी भी प्रकार की नहीँ?

आर्य - सोच लो।
मुस्लिम- हाँ सोच लिया।

आर्य - तो फिर ये क्या है" या अय्युहल्जीन आमनू इन् तन्सुरूल्लाह यन्सुर्कम् व युसब्बित अक्दामकुम्( सूरा मुहम्मद, आयत 7)
तर्जुमा- हे वे लोग जो ईमान लाये हो यदि तुम अल्लाह की मदद करोगे तो वह तुम्हारी मदद करेगा और तुम्हारे कदमोँ को जमा देखा।

मुस्लिम- इसका अर्थ ये नहीँ होगा।

आर्य - अर्थ तो तुम्हारी प्रमाणिक कुरआन का दिया है।
मुस्लिम- और अर्थ नहीँ मैँ भावार्थ की बात कर रहा था।

आर्य - तो जरा भावार्थ बता दीजिए?

मुस्लिम- इसका भावार्थ कि अल्लाह की जो बाते हैँ उन पर अमल करो और अल्लाह के मार्ग पर चलो तो तुम्हारा भी भला होगा।

आर्य - तब्दीली कर नहीँ पायेँ मियाँ, और न खुदा को बचा पाये, आप आयत मेँ आये 'नसर'(मदद) लफ़्ज को हटा नहीँ पाये।
खुदा को मदद चाहिए भले ही उसकी मदद करने का तरीका दूसरा हो।

मुस्लिम - हाँ ये बात तो है।
आर्य - तो फिर आपने ये क्योँ कहाँ कि अल्लाह को किसी भी प्रकार की मदद की आवश्यकता नहीँ,
मैने तो पहले ही पूछ लिया था इस बात को।
मुस्लिम- ??????

नॉन मुस्लिम के मरने के बाद उसको RIP

लो जी सेक्युलरिस्टों और खुजलिकर्ताओ के लिए खुशखबरी इस्लाम के हिसाब से किसी काफिर यानि जिसने मोहम्मद को अल्लाह का दूत और अल्लाह को ही भगवन नहीं माना है तो उसकी आत्मा को कभी शांति नहीं मिल सकती इसलिए किए नॉन मुस्लिम के मरने के बाद उसको RIP(rest in peace) मतलब उसकी आत्मा को भगवन शांति दे भी नहीं कह सकते क्योंकि ये इस्लाम के खिलाफ है और ऐसा कहने वाले को जहन्नम ही मिलेगी।

Tuesday, December 10, 2013

सिर्फ हिंदुओं के कृपा कलापों पर ही लागू होगा जादू टोना विधेयक

सिर्फ हिंदुओं के कृपा कलापों पर ही लागू होगा जादू टोना विधेयक 

Friday, December 6, 2013

इस्लामिक मुल्क के अमन पसंद नागरिकों का आपस में लड़ कर मरने का आंकड़ा

चलो अब जरा आपको सुन्नी समुदाय द्वारा दुनिया भर में 2012 का आंकड़ा बता दूँ, कि इस समुदाय ने कहाँ- कहाँ पर शांति और भाईचारे का सन्देश दिया..

बीते वर्ष में अमन पसंद इस्लामिक मुल्क के अमन पसंद नागरिकों का आपस में लड़ कर मरने का आंकड़ा :-

पाकिस्तान :- 19711.

अफगानिस्तान :- 36799.

सीरिया :- 2 लाख से अधिक.

मिस्त्र :- 4566.

लीबिया :- 19000 से अधिक.

ईरान :- 1987.

ईराक :- 4567.

इंडोनेशिया :- 1734 (2069 गैर मुस्लिम भी)

उज्ज्बेकिस्तान :- 1103.

फलिस्तीन :- 13000 से अधिक.

मलेशिया :- 2200 से अधिक.

1000 से कम मौत वाले मुल्कों का नाम बदनामी के डर से गोपनीय रखा गया है, आप समझ सकते हैं क्यों ?

और सबसे खास बात कि इन देशों में हिन्दू, RSS या बीजेपी का नाम तक मौजूद नहीं है, जिसको ये लोग भारत में अपने 'सत्कर्मों' को छुपाने के लिए हमेशा सारा दोष इन पर डाल देते हैं..

पर कोई बात नहीं सुन्नी मुस्लिम अभी भी बेशर्मी से कहेंगे कि हिन्दू, RSS या बीजेपी इन देशों में नहीं है तो क्या हुआ अमेरिका, इजरायल तो है ना, तो बस सारी बात यहीं खत्म हो गयी कि ये लोग(सुन्नी) तो बेहद ही सीधे और भोलेभाले हैं, इनको तो इन सभी देशों में अमेरिका, इजरायल एक चाल के तहत साफ़ कर रहा है..

नोट :- ये आंकड़े केवल बीते साल 2012 दिसम्बर तक के हैं, इस साल के आंकड़ों को इसमें शामिल नहीं किया गया है, पर यदि अभी तक अगस्त तक का मोटा- मोटा हिसाब लगाएँ तो सीरिया, लीबिया, पाकिस्तान, बांग्लादेश, इजिप्ट आदि इस्लामिक देशों में मरने वालों की संख्या कई लाख तक पहुँचती है..

सेक्युलर भारत में सेक्युलर शरणार्थी



सेक्युलर भारत में सेक्युलर शरणार्थी
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भारत से आतंकवाद समाप्त करने का मात्र एक ही उपाय है और वो है सऊदी अरब के पैसे से बनी सुन्नी वहाबी मस्जिदों और मदरसों का "तत्काल ध्वस्तिकरण" क्योकि इनके मदरसे आतंकवाद की पाठशाला हैं और जगह जगह नालों के किनारे बनी इनकी मस्जिदें आतंकवादियों की पनाहगाह हैं जिनको सऊदी अरब से पैसा मिल रहा है, मुज़फ्फरनगर में इन्ही मस्जिदों से निहथ्थे बेगुनाह हिन्दुओ पर AK-47 से गोलियां चलायी गयीं और ग्रेनेड फेके गए, याद रहे पकिस्तान जिंदाबाद के नारे भी इन्ही सुन्नी वहाबी मस्जिदों से सुनाई देते हैं.
कहीं ऐसा न हो कि सेकुलरिज्म के नाम पर हम भारत को भी सीरिया बना दें, सीरिया एक सेक्युलर देश है जिसने सेकुलरिज्म के नाम पर इन सुन्नी वहाबी आतंकवादियों को पूरी छूट दी जिसका भरपूर लाभ उठाते हुए वहाँ के सुन्नी वहाबी आतंकवादियों ने अपनी मस्जिदों और मदरसों में सऊदी अरब के पैसे से हथियार जमा किये और आज सीरिया की " सेक्युलर सरकार " का जो हाल है वो हमारे सामने है, आज सीरिया के सेक्युलर नागरिक शरणार्थी बन चुके हैं और वहाँ के सुन्नी वहाबी नागरिक विदेशी आतंकवादियों संग मिलकर सीरिया की "सेक्युलर सरकार" से जिहाद कर रहे हैं.
कहीं ऐसा न हो कि आने वाले समय में सेक्युलर हिन्दू और शिया भी अपने सेक्युलर भारत में सेक्युलर शरणार्थी बन के रह जाए.
बाकी आप ख़ुद समझदार हैं.
जयहिंद.

Japnees PM says

इन्हें पहले ही अलग देश दे दिया गया है जिन्हें इस देश सें दिक्कत हो वो इस देश को छोड़ कर जा सकते है ।

Monday, December 2, 2013

एक मोलवी द्वारा इस्लाम कबूल करने के फायदों का वर्णन

एक मोलवी द्वारा इस्लाम कबूल करने के फायदों का वर्णन

1 >>>>> हम मुल्ले देश का सबसे जादा पानी बचाते है क्युकी कई कई महीनो में नहाते है
2>>>>> हमारी एकता बनी रहती है और हिन्दू भी हमे एक नाम से ही बुलाते है "सूअर" इसका मतलब है की सभी मुसलमानों एक ही जेसे है जिससे एकता बनी रहती है
3>>>>>हमे हिन्दुओ की तरह गाव गाव में घूमना नहीं पड़ता चूत के लिए ..जरूरत पड़ने पर हम अपनी माँ और बहन को भी चोद देते है
4>>>>>और अक्षय कुमार ने भी हमारा नारा चुराया है की "घर में पड़ा है सोना फिर कहे को रोना " इसका असली वाला ये है "जब घर में पड़ी है चूत तो उसे चोदेंगे हम अपनी माँ बहनो को भी नहीं छोड़ेंगे " इसका मतलब है हम बहुँत फमुस है अक्षय कुमार जेसे बड़े लोग भी हमारा नारा चुराते है
5>>>>>हम अपने किसी भी रिश्तेदार की माँ बहन का रैप कर सकते है पकडे जाने पर मोहमद शाहब का नाम लेकर बच सकते है क्युकी मोहमद सहाब भी अपनी बेटी को खुद चोदता था और इस्लाम में इसकी इजाजत है
6>>>>>हम में मर्द नाम की कोई चीज़ नही होती इसलिए हम आधा लंड तो बचपन में काट डालते है इससे हिन्दू हमे ये नही बोल सकते मर्द है तो सामने आ ,ये कर वो कर
7>>>>>हम एक घंटे में 10-11 चूत मार सकते है जो और कोई नही मार सकता क्युकी हम आधा लंड के होते है है जो 2-4 मिनट ही चलता है और हिन्दुओ का लोडा नही लोहे का हतोड़ा रहता है वो तो एक घंटे तक चूत लगातार मार सकते है ..इसलिए हम कम समय में जादा बार चूत मार सकते है और झूटी हवाबाजी कर सकते है
8>>>>>और सबसे बड़ी बात अपनी माँ चोदो ,बहन चोदो,रिश्तेदारीमें सब लडकियों को चोद दो और नाम लगा दो मोहमद सहाब का और खुद बच जाओ \


नोट >>>>
कोई भी धर्म इतनी चूत मरने की छुट नही देता सो इस्लाम सबसे बेस्ट रिलिजन है इसे अपनाओ और सूअर बन जाओ
और हिन्दुओ से अपनी बहन और माँ को बचा के रकना क्युकी अगर हमारी माँ बहेन हिन्दुओ से चुद गयी तो फिर उनको हमारी लुल्ली से कुछ नही होगा क्युकी क्या करेगी वो लुल्ली का जब मिलेगा लुल्ला और हिन्दू मरे चूत खुल्लम खुल्ला ...तो इस बात का विशेष ध्यान
और इन बातो को सबको बताओ और इस्लाम के प्रचार में जुट जाओ

Monday, November 11, 2013

इस्लाम में भेदभाव

अब तक तो सुना करता था इस्लाम में भेदभाव नही होता है ... यूपी के बरेलवी जमात के मस्जिदों में ये नोटिस दिखना अब आम बात हो गयी है ,, गौरतलब है की इस बरेलवी जमात के धर्मगुरु मौलाना तौकीर रजा है जिनके कदमो में अरविन्द केजरीवाल कदमबोशी करते है

Thursday, November 7, 2013

सीरिया में शियाओं का माँस खाते मुस्लिम ब्रदरहुड के कार्यकर्ता



लो देखो इन नरपिशाचों को । सीरिया में शियाओं का माँस खाते मुस्लिम ब्रदरहुड के कार्यकर्ता :-

Who spread hate first??


Sunday, November 3, 2013

सूफी सन्तोँ को महिमामण्डित


मित्रो,गत कुछ दशकोँ से छद्म सेकुलरवादियोँ द्वारा सूफी सन्तोँ को महिमामण्डित करने का जोरदार अभियान देश मेँ चल रहा है। इन कथित सूफी सन्तोँ के वार्षिक उर्सो पर राष्ट्रपति से प्रधानमत्रीँ तक भाग ले रहे है। इनकी दरगाहोँ के विस्तार एवं सौदर्यीकरण पर देश के शासकोँ ने अरबोँ रूपये खर्च किये। इन्हेँ धार्मिक भेदभाओँ से ऊपर उठकर सच्चा मानववादी बताया जाता है।खास बात यह है कि इनके मजारोँ पर हाजिरी देने वाले 80% लोग हिन्दू होते हैँ। मीडिया भी उन्हेँ राष्ट्रीय एकता के प्रतीक के रूप मेँ प्रस्तुत करता है।
परन्तु मित्रोँ, ऐतिहासिक तथ्योँ के अनुसार देश के अधिकांश तथाकथित सूफी सन्त इस्लाम के जोशीले प्रचारक थे।
हिन्दुओँ के धर्मान्तरण एवं उनके उपासना स्थलोँ को नष्ट करनेँ मेँ उन्होनेँ जोर शोर से भाग लिया था।
अजमेर के बहुचर्चित 'सूफी' ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती को भला कौन नहीँ जानता! 'सिरत अल् कुतुब' के अनुसार उसने सात लाख हिन्दुओँ को मुसलमान बनाया था। 'मजलिस सूफिया' नामक ग्रन्थ के अनुसार जब वह मक्का मेँ हज करने के लिए गया था,तो उसे यह निर्देश दिया गया था कि वह हिन्दुस्तान जाये और वहाँ पर कुफ्र के अन्धकार को
दूर करके इस्लाम का प्रचार करे।
'मराकत इसरार' नामक एक ग्रन्थ के अनुसार उसने तीसरी शादी एक हिन्दू लड़की का जबरन् धर्मान्तरण करके की थी। यह बेबस महिता एक राजा की पुत्री थी,जो कि युद्ध मेँ चिश्ती मियाँ के हाथ लगी थी। उसने इसका नाम उम्मत अल्लाह रखा, जिससे एक पुत्री बीबी हाफिज जमाल पैदा हुई. जिसका मजार इसकी दरगाह मेँ मौजूद है।
'तारीख-ए-औलिया' के अनुसार ख्वाजा ने अजमेर के तत्कालीन शासक पृथ्वीराज को उनके गुरू अजीतपाल जोगी के माध्यम से मुसलमान बनने की दावत दी थी, जिसे उन्होनेँ ठुकरा दिया था।
इस पर ख्वाजा ने तैश मेँ आकर मुस्लिम शासक मुहम्मद गोरी को भारत पर हमला करने के लिए उकसाया था।

हमारे प्रश्न- मित्रो, मैँ पूछना चाहता हूँ कि यदि चिश्ती वास्तव मेँ सन्त था और सभी धर्मो को एक समान मानता था, तो उसे सात लाख हिन्दुओँ को मुसलमान बनाने की क्या जरूरत थी?
क्या यह मानवता है कि युद्ध मेँ पराजित एक किशोरी का बलात् धर्मान्तरण कर निकाह किया जाये?
यदि वह सर्व धर्म की एकता मेँ विश्वास रखता था, तो फिर उसने मोहम्मद गोरी को भारत पर हमला करने और हिन्दू मन्दिरोँ को ध्वस्त करने लिए क्योँ प्रेरित किया था?

मित्रोँ, ये प्रश्न ऐसे हैँ,जिन पर उन लोगोँ को गम्भीरता से विचार करना चाहिए जो कि ख्वाजा को एक सेकुलर 'सन्त' के रूप मेँ महिमामण्डित करने का जोरदार अभियान चला रहेँ हैँ। और विशेषत: हमारे हिन्दू भाई जरूर सत्य को पहचाने।
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Sunday, October 27, 2013

इस्लाम में जातिवाद

2 मिनट समय देकर आखिर तक पढे। नफरत फैलाना पोस्ट का मकसद नहीं है, लेकिन ज्ञान के अभाव मे हमारे हिन्दू बच्चे जिनको हमारी संस्कृति का ज्ञान नहीं है , वो हीन भावना महसूस करते है, उनके लिए इस्लाम में जातिवाद” के कुछ कड़वे तथ्य आपके सामने ....

१. जबसे इस्लाम मज़हब बना है तभी से “शिया और सुन्नी” मुस्लिम एक दूसरे की जान के दुश्मन हैं, यह लोग आपस में लड़ते-मरते रहते हैं ...!!

२. अहमदिया, सलफमानी, शेख, क़ाज़ी, मुहम्मदिया, पठान आदि मुस्लिमों की जातियां हैं, और हंसी की बात, यह एक ही अल्लाह को मानने वाले, एक ही मस्जिद में नमाज़ नहीं पढते !!! सभी जातियों के लिए अलग अलग मस्जिदें होती हैं .!!
३. सउदी अरब, अरब अमीरात, ओमान, कतर आदि अन्य अरब राष्ट्रों के मुस्लिम पाकिस्तान, भारत और बंगलादेशी मुस्लिमों को फर्जी मुसलमान
मानते हें और इनसे छुआछूत मानते हैं । सउदी अरब मे ऑफिसो मे भारत और पाक के मुसलमानों के लिए अलग पानी रखा रखता है |
४. शेख अपने आपको सबसे उपर मानते हैं और वे किसी अन्य जाति में निकाह नहीं करते.
५. इंडोनेशिया में १०० वर्षों पूर्व अनेकों बौद्ध और हिंदू परिवर्तित होकर मुस्लिम बने थे, इसी कारण से सभी इस्लामिक राष्ट्र, इंडोनेशिया से घृणा की भावना रखते हैं..
६. क़ाज़ी मुस्लिम, ''भारतीय मुस्लिमों'' को मुस्लिम ही नहीं मानते... क्यूंकि उन का मानना है के यह सब भी हिंदूधर्म से परिवर्तित हैं !!!
७. अफ्रीका महाद्वीप के सभी इस्लामिक राष्ट्र जैसे मोरोक्को, मिस्र, अल्जीरिया, निजेर,लीबिया आदि राष्ट्रों के मुस्लिमों को तुर्की के मुस्लिम सबसे निम्न मानतेहैं ।
८. सोमालिया जैसे गरीब इस्लामिक राष्ट्रों में अपने बुजुर्गों को ''जीवित'' समुद्र में बहाने की प्रथा चल रही है!!!
९. भारत के ही बोहरा मुस्लिम किसी भी मस्जिद में नहीं जाते, वो मात्र मज़ारों पे जाते हैं... उनका विश्वास सूफियों पे है... अल्लाह पे नहीं !!
१०. मुसलमान दो मुखय सामाजिक विभाग मानते हैं-
१. अशरफ अथवा शरु और २. अज़लफ।
अशरफ से तात्पर्य है 'कुलीन' और शेष अन्य मुसलमान जिनमें व्यावसायिक वर्ग और निचली जातियों के मुसलमान शामिल हैं, उन्हें अज़लफ अर्थात् नीच
अथवा निकृष्टव्यक्ति माना जाता है। उन्हें कमीना अथवा इतर कमीन या रासिल, जो रिजाल का भ्रष्ट रूप है, 'बेकार' कहा जाता है।
कुछ स्थानों पर
एक तीसरा वर्ग 'अरज़ल' भी है, जिसमें आने वाले व्यक्ति सबसे नीच समझे जाते हैं। उनके साथ कोई भी अन्य मुसलमान मिलेगा- जुलेगा नहीं और
न उन्हें मस्जिद और सार्वजनिक कब्रिस्तानों में प्रवेश करने दिया जाता है।
१. 'अशरफ' अथवा उच्च वर्ग के मुसलमान (प) सैयद, (पप) शेख, (पपप) पठान, (पअ) मुगल, (अ)मलिक और (अप) मिर्ज़ा।

२. 'अज़लफ' अथवा निम्न वर्ग के मुसलमान......
(A) खेती करने वाले शेख और अन्य वे लोग जोमूलतः हिन्दू थे,
किन्तु किसी बुद्धिजीवी वर्ग से सम्बन्धित नहीं हैं और जिन्हें अशरफ समुदाय, अर्थात् पिराली और ठकराई आदि में प्रवेश नहीं मिला है।
(B) दर्जी, जुलाहा, फकीर और रंगरेज।
(C) बाढ़ी, भटियारा, चिक, चूड़ीहार, दाई,धावा, धुनिया, गड्डी, कलाल, कसाई, कुला, कुंजरा,लहेरी, माहीफरोश, मल्लाह, नालिया, निकारी।
(D) अब्दाल, बाको, बेडिया, भाट, चंबा, डफाली, धोबी, हज्जाम, मुचो, नगारची, नट, पनवाड़िया, मदारिया, तुन्तिया।

३. 'अरजल' अथवा निकृष्ट वर्ग भानार, हलालखोदर,हिजड़ा, कसंबी, लालबेगी,
मोगता, मेहतर।
अल्लाह एक, एक कुरान, एक .... नबी !
और महान एकता..... बतलाते हैं स्वंय में ?
जबकि, मुसलमानों के बीच, शिया और सुन्नी सभी मुस्लिम देशों में एक दूसरे को मार रहे हैं .
और, अधिकांश मुस्लिम देशों में.... इन दो संप्रदायों के बीच हमेशा धार्मिक दंगा होता रहता है..!
इतना ही नहीं... शिया को.., सुन्नी मस्जिद में जाना मना है .
इन दोनों को.. अहमदिया मस्जिद में नहीं जाना है.
और, ये तीनों...... सूफी मस्जिद में कभी नहीं जाएँगे.
फिर, इन चारों का मुजाहिद्दीन मस्जिद में प्रवेश वर्जित है..!
किसी बोहरा मस्जिद मे कोई दूसरा मुस्लिम नहीं जा सकता .
कोई बोहरा का किसी दूसरे के मस्जिद मे जाना वर्जित है ..
आगा खानी या चेलिया मुस्लिम का अपना अलग मस्जिद होता है .

सबसे ज्यादा मुस्लिम किसी दूसरे देश मे नही बल्कि मुस्लिम देशो मे ही मारे गए है ..
आज भी सीरिया मे करीब हर रोज एक हज़ार मुस्लिम हर रोज मारे जा रहे है .
अपने आपको इस्लाम जगत का हीरों बताने वाला सद्दाम हुसैन ने करीब एक लाख कुर्द मुसलमानों को रासायनिक बम से मार डाला था ...
पाकिस्तान मे हर महीने शिया और सुन्नी के बीच दंगे भड़कते है ।
और इसी प्रकार से मुस्लिमों में भी 13 तरह के मुस्लिम हैं, जो एक दुसरे के खून के प्यासे रहते हैं और आपस में बमबारी और मार-काट वगैरह... मचाते रहते हैं.

*****अब आइये ... जरा हम अपने हिन्दू/ सनातन धर्म को भी देखते हैं.
हमारी 1280 धार्मिक पुस्तकें हैं, जिसकी 10,000 से भी ज्यादा टिप्पणियां और १,00.000 से भी अधिक उप- टिप्पणियों मौजूद हैं..!
एक भगवान के अनगिनत प्रस्तुतियों की विविधता, अनेकों आचार्य तथा हजारों ऋषि-मुनि हैं जिन्होंने अनेक भाषाओँ में उपदेश दिया है..
फिर भी
हम सभी मंदिरों मेंजाते हैं, इतना ही नहीं.. हम इतने शांतिपूर्ण और सहिष्णु लोग हैं कि सब लोग एक साथ मिलकर सभी मंदिरों और सभी भगवानो की पूजा करते हैं .
और तो और.... पिछले दस हजार साल में धर्म के नाम पर हिंदुओं में आपस में धर्म के नाम पर "कभी झगड़ा नहीं" हुआ .
इसलिए इन लोगों की नौटंकी और बहकावे पर मत जाओ...
और.... "गर्व से कहो हम हिन्दू हैं"..

सीरिया के दो तस्वीरे -



सीरिया के दो तस्वीरे -
पहले चित्र में इस छोटी सी बच्ची को सुन्नी विद्रोही लड़ाकों ने चैन से बांधकर इसके सामने इसके माँ बाप को काट डाला क्योंकि यह एक शिया परिवार से सम्बन्ध रखती थी!
और
दूसरी तस्वीर कुछ ही दिन पहले सीरिया से जारी हुई है जिसमे सुन्नी विद्रोहियों ने इस छोटी सी बच्ची का दिल निकाला और उसे खा लिया ..!!!Their children now, your children tomorrow

कुरबानी या हत्या की ट्रेनिंग !

कुरबानी या हत्या की ट्रेनिंग ! 





मुसलमान कई त्यौहार मानते हैं . जिनमें "ईदुज्जुहा "प्रसिद्ध और प्रिय त्योहर माना जाता है . भारत में इसे "बकरीद " भी कहते हैं .अरबी में ईदुज्जुहा का अर्थ बलिदान ( Sacrifice ) नहीं बल्कि " पशुवध का आनंद "( Joy of slaughter ) हैं.क्योंकि इसमें लाखों जानवरों का क़त्ल होता है .मुसलमानों का दावा है कि यह त्यौहार नबी इब्राहीम की अल्लाह के प्रति निष्ठा, भक्ति और उनके लडके इस्माइल की कुर्बानी को याद करने के लिए मनाया जाता है .और मुहम्मद साहब उसी इस्माइल के वंशज थे .चूँकि इब्राहीम की कथा इस्लाम से पहले की है और इब्राहीम के बारे में जो सही जानकारी बाइबिल , कुरान और हदीसों से मिलती वह इस प्रकार है .
1-इब्राहीम का परिचय
इब्राहीम إبراهيم का काल लगभग 2000 साल ई ० पू से 1500 ई० पूर्व माना जाता है . इसके पिता का नाम मुसलमान "आजर آذر" और यहूदी "तेराह Terah"( תָּרַח )बताते है .इब्राहीम " ऊर " शहर में पैदा हुआ था . जो हारान प्रान्त में था . वहां से इब्राहीम कनान प्रान्त में जाकर बस गया था .और उसके साथ उसकी बहिन ( पत्नी ) और भतीजा लूत भी आगये थे .इब्राहिम को एक गुलाम लड़की " हाजरा " मिली थी . जिस से उसने इस्माइल नामक लड़का पैदा किया था .जिसे मुहम्मद का पूर्वज माना जाता है . इब्राहीम और सारह से जो लड़का हुआ था उसका नाम "इसहाक " था .मुसलमान इनको नबी मानते हैं .यहूदी इसे अबराहाम(אַבְרָהָם ) कहते हैं . जिसका अर्थ है जातियों का बाप .मुसलमान इब्राहीम को एक ,सदाचारी ,सत्यनिष्ठ ,और अल्लाह का परम भक्त नबी कहते हैं .लेकिन वास्तविकता यह है कि,
1-इब्राहीम का देशत्याग
जब इब्राहीम अपने हारान देश को छोड़ कर कनान जाने लगा ,तो उसके साथ , लूत ,साराह अपनी सम्पति भी ले गया और वहीँ बस गया "बाईबिल .उत्पत्ति 12  से 5
2-इब्राहीम झूठा और स्वार्थी था
अबू हुरैरा ने कहा कि रसूल ने बताया , इब्राहीम झूठ बोलते थे .उनके प्रसिद्ध तीन झूठ इस प्रकार हैं ,एक मैं बीमार हूँ , दूसरा मैंने मूर्तियाँ नहीं तोड़ी . यह दोनो झूठ अल्लाह के लिए बोले थे . और तीसरा झूठ सराह के बारे में था , कि यह मेरी बहिन है .
"حَدَّثَنَا مُحَمَّدُ بْنُ مَحْبُوبٍ، حَدَّثَنَا حَمَّادُ بْنُ زَيْدٍ، عَنْ أَيُّوبَ، عَنْ مُحَمَّدٍ، عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ ـ رضى الله عنه ـ قَالَ لَمْ يَكْذِبْ إِبْرَاهِيمُ ـ عَلَيْهِ السَّلاَمُ ـ إِلاَّ ثَلاَثَ كَذَبَاتٍ ثِنْتَيْنِ مِنْهُنَّ فِي ذَاتِ اللَّهِ عَزَّ وَجَلَّ، قَوْلُهُهَاجَرَ فَأَتَتْهُ، وَهُوَ قَائِمٌ يُصَلِّي، "

Sahih Al- Bukhari, Vol.4, Bk 55-Hadith No 578, Translation by Dr. Muhsan Khan

इब्राहीम के तीन झूठ यह हैं ,
1-जब इब्राहीम ने चुपचाप देवताओं की मूर्तियाँ तोड़ दी ,और लोगों ने पूछा बताओ क्या यह काम तुमने किया है .तो इब्राहीम बोला मैंने नहीं यह तो सबसे बड़े देवता का काम है "सूरा -अम्बिया 21 :62 से 63
2-जब लोगों ने इब्राहीम के पूछा कि तुम्हारा अल्लाह यानी दुनिया के स्वामी के बारे में क्या विचार है ,इब्राहीम आकाश के तारों को देखता रहा , और बोला मैं तो बीमार हूँ "सूरा -अस सफ्फात 37 :87 से 89
3-इब्राहीम ने साराह के बारे में कहा बेशक यह मेरी बहिन है , और मेरे बाप की बेटी है ,लेकिन मेरी सगी माँ की बेटी नहीं है .इसलिए अब यह मेरी पत्नी बन गयी है " बाइबिल .उत्पत्ति 20 :13
3-इब्राहीम पर लानत
जो भी अपनी बहिन के साथ सहवास करे उस पर लानत , चाहे वह उसकी सगी बहिन हो या सौतेली .तो सब ऐसे व्यक्ति पर लानत करें और कहें आमीन '
बाइबिल .व्यवस्था 27 :22
तुम पर हराम हैं , तुम्हारी बहिनें " सूरा -निसा 4 :23
4-इब्राहीम का पापी परिवार
इब्राहीम के काबिले में लड़कों के साथ कुकर्म करने का रिवाज था और उसका भतीजा लूत भी ऐसा था . इस कुकर्म को लूत के नाम से "लावातत" कहा जाता है .इनकी लीला दखिये ,
एक दिन कुछ सुन्दर लडके लूत से मिलने आये ,तो उन्हें देख कर लोग आगये .इस से लूत चिंतित हो गया .और उन लोगों को रोकना कठिन होने लगा .क्योंकि वहां के लोग लड़कों के साथ कुकर्म " Sodomy" करते थे . लूत ने उन लोगों से कहा इन लड़कों को छोडो यह मेरी बेटियां हैं यह इस काम के लिए अधिक उपयोगी हैं .लेकिन लोग बोले तू जानता है कि हमें क्या पसंद है "सूरा -हूद 11 :77 और 78
जिस तरह इब्राहीम ने अपनी बहिन से सहवास किया था उसका भतीजा लूत भी महा पापी था .यह बाइबिल बताती है .
"एक रात लूत की लड़कियों ने तय किया कि आज हम अपने पिता को खूब शराब पिलायेंगे .और उसके साथ सहवास करेंगे .पहले एक लड़की बाप के साथ सोयी , फिर बारी बारी से सभी बाप के साथ सोयीं .इस तरह सभी अपने बाप से गर्भवती हुयीं "बाईबिल -उत्पत्ति 19 :30 से 36
5-इब्राहीम की रखैल हाजरा
इब्राहीम सदाचारी नहीं था ,यह जानकर शैतान ने एक लड़की हाजरा इब्राहीम के पास भेज दी थी .इस से इब्राहीम ने सहवास किया था .
अबू हुरैरा ने कहा कि रसूल ने कहा है , शैतान ने ही हाजरा को इब्राहीम के पास इसलिए भेजा था कि वह उसे दासी के रूप में स्वीकार कर लें .और जब वह इब्राहीम के पास गयी तो इब्राहीम बोला . अल्लाह ने मुझे एक लड़की दासी भेज दी है .

"وقال: 'لقد بعث الله لي الشيطان. اصطحابها إلى إبراهيم وهاجر تعطي لها ". جاء ذلك عادت لإبراهيم وقال: "الله أعطانا فتاة الرقيق للخدمة "

Sahih al-Bukhari, Volume 3, Book 34, Number 420

6-इस्माइल की झूठी पैदायश
चूँकि उस समय काफी बूढ़ा हो चूका था , और उसकी पत्नी सारह बाँझ थी ,इसलिए इब्राहीम और हाजरा ने मिलकर एक साजिश रची और कहीं से एक ताजा बच्चा लोगों को दिखा दिया , कि यह बच्चा हाजरा ने पैदा किया है .और इब्राहिम ने उस बच्चे का नाम इस्माइल रखा था .
एक दिन इब्राहीम तड़के भोर में उठा ,और अँधेरे में हाजरा को तैयार किया .और उसे एक बच्चा दिया .फिर हाजरा ने उस बच्चे को झाड़ियों में छुपा दिया .और हाजरा इस तरह से चिल्लाने लगी जैसे बच्चा जनने की पीड़ा हो रही हो .और जब बच्चे के रोने की आवाज लोगों ने सुनी तो लोगों ने समझा हाजरा ने बच्चे को जन्म दिया है "बाइबिल .उत्पत्ति 21 :14 से 17
7-अरब हराम की औलाद हैं
अबू हुरैरा ने कहा कि रसूल ने कहा कि पहले तो हाजरा सारह के पास गयी .फिर इब्राहीम के पास चली गयी .उस समय इब्राहीम काम कर रहे थे .उन्होंने सारह से इशारे से पूछा कि यह किस लिए आयी है . साराह ने कहा यह तुम्हारी दासी है .और सेवा करेगी .अबू हुरैरा ने कहा इस बातको सुनते ही रसूल ने मौजूद सभी श्रोताओं से कहा , सुन लो सभी अरब उसी हाजरा की संतानें हो "

"ثم القى رجال هاجر كخادمة بنت لسارة. جاء سارة الظهر (لإبراهيم)، في حين كان يصلي. إبراهيم وهو يشير بيده، سأل: "ما الذي حدث؟" أجابت، "والله مدلل المؤامرة الشريرة للكافر (أو شخص غير أخلاقي) وأعطاني هاجر للخدمة." (أبو هريرة ثم خاطب مستمعيه قائلا: "هذا (حجر) كان أمك يا بني ما هو بين سما (أي العرب، من نسل إسماعيل، ابن هاجر)."

Bukhari-Volume 4-Book 55: Prophets-Hadith 578
Eng Reference : Sahih al-Bukhari 3358

चूँकि मुहम्मद साहब खुद को भी इब्राहीम के नाजायज ,पुत्र और शैतान द्वारा भेजी गई औरत हाजरा के लडके इस्माइल का वंशज मानते थे .और खुद को इब्राहीम कि तरह रसूल साबित करना चाहते थे .इसलिए उन्होंने इसके लिए इब्राहीम द्वारा की इस्माइल की क़ुरबानी की कहानी का सहारा लिया .

8-क़ुरबानी का सपना
इब्राहीम के पूर्वज अंधविश्वासी थे और सपने की बातों को सही समझ लेते थे .बाइबिल और कुरान में ऐसे कई उदहारण मिलते हैं ,जैसे
"यूसुफ ने पिता से कहा कि रात को मैंने एक सपना देखा कि ग्यारह तारे .सूरज और चाँद मुझे सिजदा कर रहे हैं , यह उन कर पिता ने कहा तुम इस सपने की बात अपने भाइयों से नहीं कहना .ऐसा न हो वह कोई साजिश रचें " सूरा-यूसुफ 12 :4 -5
ऐसा ही सपना इब्राहीम ने देखा ,और सच मान बैठा ,कुरान में लिखा है
जब इब्राहीम का लड़का चलने फिरने योग्य था , तो इब्राहीम ने उस से कहा बेटा मैंने सपने में देखा कि जसे मैं तुझे जिबह कर रहा हूँ ,बोल तेरा क्या विचार है "
सूरा -अस सफ्फात 37 :102
(अरबी में "इन्नी उज्बिहुक انّي اُذبحك" तेरी गर्दन पर छुरी फिरा रहा हूँ )

9-अल्लाह ने क़ुरबानी रोकी
जब इब्राहीम ने अपने बेटे का गला काटने के लिए छुरी हाथ में उठायी ,तो एक फ़रिश्ता पुकारा ,हे इब्राहीम तुम लडके की तरफ हाथ नहीं बढ़ाना .हमें यकीं हो गया कि तू ईश्वर से डरता है .बाइबिल -उत्पत्ति 22 :10 से 12
हमने कहा हे इब्राहीम तूने तो सपने को सच कर दिया .यह तो मेरी परीक्षा थी .और फिर हमने एक महान क़ुरबानी कर दी "सूरा 37 :105 से 107
( नोट - इन आयतों में कहीं पर किसी जानवर का उल्लेख नहीं है ,और न मैंढे का नाम है)

10- गाय की कुर्बानी
जब अल्लाह ने मूसा से कहा कि एक गाय को जिबह करो ,तो लोग बोले क्या तू हमें अपमानित कर रहा है .लेकिन जब लोग मूसा के कहने पर गाय जिबह कर रहे थे तब भी उनके दिल काँप रहे थे . सूरा -बकरा 2 :67 और 71
गाय की क़ुरबानी ( ह्त्या ) का एक वीडियो देखिये
http://www.youtube.com/watch?v=rgrB9X_mINU&feature=related
(नोट -इस आयत की तफ़सीर में लिखा है ,उस समय मिस्र में किब्ती ( Coptic ) लोग रहते थे जो गाय की पूजा करते थे .इसी लिए अल्लाह ने उनकी आस्था पर प्रहार करने और उनका दिल दुखाने के लिए गाय की कुर्बानी का हुक्म दिया था .जिसे रसूल ने भी सही मान लिया था .हिन्दी कुरान .पेज 137 टिप्पणी संख्या 24 मक्तबा अल हसनात रामपुर )
इन सभी प्रमाणों से सिद्ध होता है ,कि 1 . इब्राहीम को झूठ बोलने की आदत थी .और सगी बहिन से शादी करके महापाप किया था , और बाइबिल के मुताबिक यह काम लानत के योग्य है .2 .यातो इब्राहीम ने सपने में लड़के की क़ुरबानी की होगी या शैतान के द्वारा भेजी हाजरा के फर्जी पुत्र की क़ुरबानी की होगी .3 .इस झूठी कहानी को सही मान कर जानवरों का क़त्ल करना उचित नहीं है .4 .अल्लाह इब्राहीम और लूत जैसे पापियों को ही रसूल बनाता है .5 .सारे अरब के लोग इसलिए अपराधी होते हैं क्योंकि वह इब्राहीम के उस नाजायज लडके इस्माइल वंशज हैं ,जिसे शैतान ने भेजा था .6 .क्या इब्राहीम के बाद मुसलमानों में ऐसा एकभी अल्लाह भक्त पैदा हुआ , जो अपने लडके को कुर्बान कर देता .यहूदी और ईसाई भी इब्राहीम को मानते हैं लेकिन कुर्बानी का त्यौहार नहीं मनाते.
महम्मद साहब ने ईदुज्जुहा की परंपरा मुसलमानों को ह्त्या की ट्रेनिग देने के लिए की थी !

कुरबानी का अर्थ और मकसद

यह इस लेख में कुरान और हदीस के हवालों दिया जा रहा है .साथ में कुछ विडियो लिंक भी दिए हैं .देखिये 

1-कुरबानी का अर्थ और मकसद 
अरबी शब्दकोश के अनुसार "क़ुरबानी قرباني" शब्द मूल यह तीन अक्षर है 1 .قकाफ 2 .رरे 3 और ب बे = क र बق ر ب .इसका अर्थ निकट होना है .तात्पर्य ऐसे काम जिस से अल्लाह की समीपता प्राप्त हो . हिंदी में इसका समानार्थी शब्द " उपासना" है .उप = पास ,आस =निकट .लेकिन अरबी में जानवरों को मारने के लिए "उजुहाالاضحي " शब्द है जिसका अर्थ "slaughter " होता है .इसमे किसी प्रकार की कोई आध्यात्मिकता नजर नहीं दिखती है .बल्कि क्रूरता , हिंसा ,और निर्दयता साफ प्रकट होती है .जानवरों को बेरहमी से कटते और तड़प कर मरते देखकर दिल काँप उठता है और यही अल्लाह चाहता है , कुरान में कहा है ,
"और उनके दिल उस समय काँप उठते हैं , और वह अल्लाह को याद करने लगते हैं " सूरा -अल हज्ज 22 :35
2-क़ुरबानी की विधियाँ
यद्यपि कुरान में जानवरों की क़ुरबानी करने के बारे में विस्तार से नहीं बताया है और सिर्फ यही लिखा है ,
"प्रत्येक गिरोह के लिए हमने क़ुरबानी का तरीका ठहरा दिया है , ताकि वह अपने जानवर अल्लाह के नाम पर कुर्बान कर दें "
सूरा -हज्ज 22 :34
लेकिन सुन्नी इमाम " मालिक इब्न अबी अमीर अल अस्वही" यानि मालिक बिन अनस مالك بن انس "(711 - 795 ई० ) नेअपनी प्रसिद्ध अल मुवत्ताThe Muwatta: (Arabic: الموطأ) की किताब 23 और 24 में जानवरों और उनके बच्चों की क़ुरबानी के जो तरीके बताएं है . उसे पढ़कर कोई भी अल्लाह को दयालु नहीं मानेगा ,
3-पशुवध की राक्षसी विधियाँ
मांसाहार अरबों का प्रिय भोजन है ,इसके लिए वह किसी भी तरीके से किसी भी जानवर को मारकर खा जाते थे . जानवर गाभिन हो या बच्चा हो ,या मादा के पेट में हो सबको हजम कर लेते थे . और रसूल उनके इस काम को जायज बता देते थे बाद में यही सुन्नत बन गयी है और सभी मुसलमान इसका पालन करते हैं ,इन हदीसों को देखिये ,
अ -खूंटा भोंक कर
"अनस ने कहा कि बनू हरिस का जैद इब्न असलम ऊंटों का चरवाहा था , उसकी गाभिन ऊंटनी बीमार थी और मरणासन्न थी . तो उसने एक नोकदार खूंटी ऊंटनी को भोंक कर मार दिया . रसूल को पता चला तो वह बोले इसमे कोई बुराई नहीं है ,तुम ऊंटनी को खा सकते हो "
मालिक मुवत्ता-किताब 24 हदीस 3
ब-पत्थर मार कर
"याहया ने कहा कि इब्न अल साद कि गुलाम लड़की मदीने के पास साल नामकी जगह भेड़ें चरा रही थी. एक भेड़ बीमार होकर मरने वाली थी.तब उस लड़की ने पत्थर मार मार कर भेड़ को मार डाला .रसूल ने कहा इसमे कोई बुराई नहीं है ,तुम ऐसा कर सकते हो "
मालिक मुवत्ता -किताब 24 हदीस 4
जानवरों को मारने कि यह विधियाँ उसने बताई हैं , जिसको दुनिया के लिए रहमत कहा जाता है ?और अब किस किस को खाएं यह भी देख लीजये .
4-किस किस को खा सकते हो
इन हदीसों को पढ़कर आपको राक्षसों की याद आ जाएगी .यह सभी हदीसें प्रमाणिक है ,यह नमूने देखिये
अ -घायल जानवर
"याह्या ने कहा कि एक भेड़ ऊपर से गिर गयी थी ,और उसका सिर्फ आधा शरीर ही हरकत कर रहा था ,लेकिन वह आँखें झपक रही थी .यह देखकर जैद बिन साबित ने कहा उसे तुरंत ही खा जाओ "मालिक मुवत्ता किताब 24 हदीस 7
ब -मादा के गर्भ का बच्चा
"अब्दुल्लाह इब्न उमर ने कहा कि जब एक ऊंटनी को काटा गया तो उसके पेट में पूर्ण विक्सित बच्चा था ,जिसके बल भी उग चुके थे . जब ऊंटनी के पेट से बच्चा निकाला गया तो काफी खून बहा ,और बच्चे दिल तब भी धड़क रहा था.तब सईद इब्न अल मुसय्यब ने कहा कि माँ के हलाल से बच्चे का हलाल भी माना जाता है . इसलिए तुम इस बच्चे को माँ के साथ ही खा जाओ " मुवत्ता किताब 24 हदीस 8 और 9
स -दूध पीता बच्चा
"अबू बुरदा ने रसूल से कहा अगर मुझे जानवर का केवल एकही ऐसा बच्चा मिले जो बहुत ही छोटा और दूध पीता हो , रसूल ने कहा ऐसी दशा में जब बड़ा जानवर न मिले तुम बच्चे को भी काट कर खा सकते हो " मालिक मुवत्ता -किताब 23 हदीस 4
5-क़ुरबानी का आदेश और तरीका
वैसे तो कुरान में कई जानवरों की क़ुरबानी के बारे में कहा गया है ,लेकिन यहाँ हम कुरान की आयत विडियो लिंक देकर कुछ जानवरों की क़ुरबानी के बारे जानकारी दे रहे हैं .ताकि सही बात पता चल .सके , पढ़िए और देखिये ,
अ -गाय "याद करो जब अल्लाह ने कहा की गाय को जिबह करो ,जो न बूढी हो और न बच्ची बीच का आयु की हो "सूरा -बकरा 2 :67 -68


http://www.youtube.com/watch?v=Giz6aMHuDhU&feature=related

ब- ऊंट -"और ऊंट की कुरबानी को हमने अल्लाह की भक्ति की निशानियाँ ठहरा दिया है "सूरा अल हज्ज 22 :36

http://www.youtube.com/watch?v=uT9oFsxqTsg&feature=related

स -चौपाये बैल -"तुम्हारे लिए चौपाये जानवर भी हलाल हैं ,सिवाय उसके जो बताये गए हैं "सूरा-अल 22 :30

http://www.youtube.com/watch?v=RMDLNLK83kg&feature=related

6-गैर मुस्लिमों को गोश्त खिलाओ
"इब्ने उमर और और इब्न मसूद ने कहा की रसूल ने कहा है ,कुरबानी का गोश्त तुम गैर मुस्लिम दोस्त को खिलाओ ,ताकि उसले दिल में इस्लाम के प्रति झुकाव पैदा हो "
it is permissible to give some of it to a non-Muslim if he is poor or a relative or a neighbor, or in order to open his heart to Islam.


"فإنه يجوز أن أعطي بعض منه الى غير مسلم إذا كان فقيرا أو أحد الأقارب أو الجيران، أو من أجل فتح صدره للإسلام "


Sahih Al-Jami`, 6118
गैर मुस्लिमों जैसे हिन्दुओं को गोश्त खिलाने का मकसद उनको मुसलमान बनाना है ,क्योंकि यह धर्म परिवर्तन की शुरुआत है .बार बार खाने से व्यक्ति निर्दयी और कट्टर मुसलमान बन जाता है .

7-गोश्तखोरी से आदमखोरी
मांसाहारी व्यक्ति आगे चलकर नरपिशाच कैसे बन जाता है ,इसका सबूत पाकिस्तान की ARY News से पता चलता है ,दिनांक 4 अप्रैल 2011 पुलिस ने पाकिस्तान पंजाब दरया खान इलाके से आरिफ और फरमान नामके ऐसे दो लोगों को गिरफ्तार किया ,जो कब्र से लाशें निकाल कर ,तुकडे करके पका कर खाते थे . यह परिवार सहित दस साल से ऐसा कर रहे थे.दो दिन पहले ही नूर हुसैन की 24 की बेटी सायरा परवीन की मौत हो गयी थी ,फरमान ने लाश को निकाल लिया ,जब वह आरिफ के साथ सायरा को कट कर पका रहा था ,तो पकड़ा गया . पुलिस ने देगची में लड़की के पैर बरामद किये . इन पिशाचों ने कबूल किया कि हमने बच्चे और कुत्ते भी खाए हैं .ऐसा करने कीप्रेरणा हमें दूसरों से मिली है , जो यही काम कराते हैं . विडियो लिंक

http://www.youtube.com/watch?v=uoDpLHCr7e0

8-हलाल से हराम तक
खाने के लिए जितने भी जानवर मारे जाते हैं ,उनका कुछ हिस्सा ही खाया जाता है , बाकी का कई तरह से इस्तेमाल करके लोगों को खिला दिया जाता है ..इसके बारे में पाकिस्तान के DUNYA NEWS की समन खान ने पाकिस्तान के लाहौर स्थित बाबू साबू नाले के पास बकर मंडी के मजबह (Slaughter House ) का दौरा करके बताया कि वहां ,गधे कुत्ते , चूहे जैसे सभी मरे जानवरों की चर्बी निकाल कर घी बनाया जाता है . यही नहीं होटलों में खाए गए गोश्त की हडियों को गर्म करके उसका भी तेल निकाल कर पीपों में भर कर बेच दिया जाता है ,जिसे जलेबी ,कबाब ,समोसे आदि तलने के लिए प्रयोग किया होता है . खून को सुखा कर मुर्गोयों की खुराक बनती है . फिर इन्हीं मुर्गियों को खा लिया जाता है .आँतों में कीमा भरके बर्गर बना कर खिलाया जाता है .विडियो लिंक

http://www.youtube.com/watch?feature=endscreen&NR=1&v=6YdtLZGsK_E

हमारी सरकार जल्द ही पाकिस्तान के साथ व्यापारिक अनुबंध करने जारही है ,और तेल या घी के नाम पर जानवरों की चर्बी और ऐसी चीजें यहाँ आने वाली हैं .
लोगों को फैसला करना होगा कि उन्हें पूर्णतयः शाकाहारी बनकर ,शातिशाली , बलवान ,निर्भय और जीवों के प्रति दयालु बन कर देश और विश्व कि सेवा करना है ,या धर्म के नाम पर या दुसरे किसी कारणों से प्राणियों को मारकर खाके हिसक क्रूर निर्दयी सर्वभक्षी पिशाच बन कर देश और समाज के लिए संकट पैदा करना है .
दूसरेधर्मों के लोग ईश्वर को प्रसन्न करने और उसकी कृपा प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या करके खुद को कष्ट देते हैं .लेकिन इस्लाम में बेजुबान जानवरों को मार कर अल्लाह को खुश किया जाता है . और इसी को इबादत या बंदगी माना जाता है .फिर यह बंदगी दरिंदगी बन जाती है .और जिसका नतीजा गन्दगी के रूप में लोग खाते हैं
इस लेख को पूरा पढ़ने के बाद विचार जरुर करिए .
माँसाहारी अत्याचारी ,और अमानुषिक हो सकते हैं लेकिन बलवान और सहृदय कभी नहीं सो सकते

बुत परस्त योनी पूजक मुसलमान

बुत परस्त योनी पूजक मुसलमान

दुनिया में सबसे ज्यादा चिल्ला चिल्ला के मूर्ति पूजा का विरोध करने वाले मुसलमान हैं | पर असल में सबसे ज्यादा और सबसे बड़े मूर्तिपूजक मुसलमान ही हैं | मुसलमानों को लड़ने का बहाना चाहिए कोई भी जिस से वे लड़ सकते हैं | आपस में लड़ते हैं कोई भी बहाना लेकर और बाहर ईश बहुदेववाद तो बहुत बड़ा बहाना हैं, कत्लेआम के लिए | खैर हम ये जानते हैं के मुसलमान मूर्तिपूजक कैसे हैं ? मूर्ति भी ऐसी वैसी नहीं योनी की, एक योनी की मूर्ति के सामने ना केवल झुकते हैं अपितु चुमते भी हैं |



खुद मोहम्मद अंधविश्वासी मूर्तिपूजक था उसने पत्थर की योनी को चूमा था प्रमाण देखिये |
Volume 2, book of Hajj, chapter 56, H.No. 675. Umar (may Allah be pleased with him) said, “I know that you are a stone and can neither benefit nor harm. Had I not seen the Prophet (pbuh) touching (and kissing) you, I would never have touched (and kissed) you”.
"
ये तो पत्थर की योनी थी मोहम्मद ने तो इतनी औरते रखी हैं के क्या क्या चूमा होगा आप खुद ही अनुमान लगाये |
देखा आपने कैसे मोहम्मद ने अन्धविश्वास को बढ़ाया | किस अधिकार से मुसलमान दूसरों का मूर्तिपूजा का विरोध करते हैं उनका सिर्फ एक ही मतलब हैं के वो मूर्ति पूजो जो हम पूजते हैं ना की वो जो तुम लोंग |

इस्लाम एक सम्प्रदाये हैं जो वाम मार्गी सम्प्रदाये से काफी आगे निकल गया हैं | वाम मार्गियो के सम्प्रदाये तो व्यभिचार और मांसाहार तक ही सिमित था | मोहम्मद ने वाम मार्ग को लूट,हत्या,डकैती,बलात्कार और दूसरों से नफरत करने की बुलंदियों तक पहुचा दिया | निराकार ईश्वर के उच्च सिद्धांत को समझना मोहम्मद जैसे व्यभिचारी के बस की बात कहा थी | खुद मानव योनी का दुरूपयोग कर के नर्क(निकृष्ट जीव योनी) में गया और दुनिया के अरबो मुसलमानों का पतन करवा गया | मुस्लिम भाइयो ईश्वर एक हैं निराकार हैं वह सबसे प्रेम करने वाला भेदभाव ना करने वाला न्यायकारी हैं | वो सभी जगह हैं उसे सातवे आसमान पर बैठने की जरुरत नहीं | जो ईश्वर परमात्मा हर जगह हैं उसे किसी पैगम्बर की जरुरत नहीं | ये पैगम्बर ढ़ोंगी बाबाओ जैसा ही चल रहा था जब मोहम्मद ने भी खुद को पैगम्बर घोषित किया | अल्लाह के नाम पर उसने वो सारे गुनाह किये और करवाए जो मानवता ही हदे तोड़ते थे | जिसने उस पर सवाल उठाया उसे मरवा दिया गया इसलिए भी आप लोंग हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं उसके गलत कामो पर शंका होने के बावजूद | देखिये मानव जन्म बार बार नहीं मिलता बड़ी मुश्किल से मिला हैं कई जीवो की योनियों को पार कर के इसे यु बर्बाद ना करिये | इस्लाम को छोडिये और वैदिक धर्मं को जानिए वापस अपने बाप दादाओ के धर्म को वापस आजाइए

गैर मुस्लिम देशो मे मुस्लिम लोग कुछ विशेष रणनीतियां

विश्वविख्यात विद्वान अली सीना के मुताबिक गैर मुस्लिम देशो मे मुस्लिम लोग कुछ विशेष रणनीतियां बनाकर रहते है :-
=================================
1) जिस देश मे यह रहते है उस देश के लिये ये जो थोडा बहुत

कुछ करते है तो उसका सारी जिंदगी बखान करते है और बदले मे
लगातार उसकी भारी कीमत वसूल कर उस देश को खोखला कर
देते है!

2) ये मौका मिलने पर अपने हालात के लिए देश की व्यवस्था को कोसते रहते है ,जबकि खुद इनके मुल्को का रिसर्च मे ,विज्ञान मे टैक्नोलोजी मे ,मेडिकल मे ,अंतरिक्ष अभियान मे ,जीडीपी मे ,सैन्य क्षमता और दूसरे मामलो मे रिकार्ड बेहद शर्मनाक है !

3) इनके पास हमेशा टकराव के लिए खास मुद्दे रहते है जैसे
भारत मे अयोध्या मुद्दा ,तो लंदन मे मिलेनियम डोम के पास
मस्जिद विवाद या अमेरिका मे ग्रांउड जीरो पे मस्जिद की मांग
या इजराइल के साथ विवाद !

4) जहा इनका 'पर्दाफाश' होता है वहा ये धमकी भी देते है
कि हिंदू मुस्लिम फसाद हो जायेगा और बाहर वालो को ईसाई-
मुस्लिम ,बौद्ध-मुस्लिम ,यहूदी-मुस्लिम और अपने यहा शिया-
सुन्नी कादियानी या अहमदिया का दंगा होने की धमकी !

5) गैर मुस्लिम मुल्को मे जहा इनकी जनसंख्या कम है
वहा भी अक्सर मुसलमानो के दिल का "इस्लामी बारूद"।
किसी न किसी बात पर.. किसी न किसी रूप
मे.,थोडा या ज्यादा ही सही पर फटता जरूर है !!

6) भले ही इनके मजहब की वजह से हमारे देश मे और दुनिया मे हजारो दंगे और आंतकवाद के मामले हो चुके हो .......लाखो लोग बेवजह मर चुके हो ..बहुत कुछ हो चुका हो !
और वर्तमान मे भी हर साल सैकडो दंगे फसाद के मामले आते हो
और आगे भी होते रहे ....
लेकिन बदले मे मुस्लिम कुतर्क करके उल्टा सामने वाले पर दोष डाल देते है ...
इस तरह ये हमेशा काफिरो को थकाकर और उलझा कर रखते है !

7) सच सामने आने पर मुस्लिमो के पास बहस के लिए हमेशा कुतर्क और घिसपिटे जवाब तैयार रहते है ,जैसे:-
-ये सिर्फ "कुछ" भटके हुये लोगो का काम
है ..blahblahblah...!
- इस्लाम इस की इजाजत नही देता इसलिए हमे इस्लाम को ठीक से समझना चाहिए blahblahblah...!
-बुरे लोग तो हर मजहब मे होते है blahblahblah...!...
-मुस्लिमो मे सुधार की जरूरत है ...सब लोग ऐसे
नही होते...अच्छे मुस्लिम भी होते हैblahblahblah...!
- पालिटिशयन और मीडिया मुसलमानो को बदनाम करना चाहते है:blahblah..!

ऐसे ही बहुत सारी घिसीपिटी दलीले लाखो बार देकर मुस्लिम दूसरो को अक्सर गुमराह करते रहते है !

8 ) मुस्लिम अपनी पत्रिकाओ और अपने अखबारो मे खुद को "मजलूम"और दूसरो को "जालिम" दिखाते देते रहते है!
और मौके पर हजारो की संख्या मे इस्लाम और शरिया कानून के
लिए मोर्चा और रैलिया वगैरह निकालते रहते है !

9) मुसलमानो द्वारा समय समय पर भाईचारा,सदभाव और
लुभावनी मीठी बाते करके हिंदुओ और गैरमुस्लिमो को "नींद
की गोली" दी जाती है ...
ताकि हिंदुओ और गैर मुस्लिमो का ध्यान मुसलमानो की पौपुलेशन
जो जिला ,शहरो के लेवल से लगातार बढती जा रही है ,उससे
वो बेखबर रहे और किसी का उस पर ध्यान न जाने पाए ..

10) ये इस्लाम के सिद्धातो की चमकदार मार्केटिंग करने लिए
जी जान से जुटे रहते है !
और अपने इस्लाम को चमकाने के लिए दूसरे मजहबो मे
लगातार कमियां निकालते रहते है!

11) लेकिन हद तो यहा है कि जिन किताबो को ये नही मानते
उन्ही किताबो मे ये अपने मोहम्मद जी को अवतार दिखाते है
और इस्लाम को जबरदस्ती विज्ञान से जोड़ते है !
मतलब किसी भी तरह से हर हाल मे इस्लाम और मौहम्मद
जी की मार्केटिंग करते रहते है !

12) ये अक्सर बोलते रहते है इस्लाम तेजी से फैल रहा है
लेकिन जैसे ही सच्चाई सामने लायी जाये तो ये चिल्ला भी पडते
है कि इस्लाम खतरे मे है !

13) जहा ये संख्या मे कम होते है वहा खुद को "मजलूम" और "ग़ुलाम" बता कर प्रोपेगंडा करते है और बाकी मजहब वालो को जालिम ठहरा देते है जैसे :-
१-इजराईल मे ---यहूदियो को जायनिस्ट ठहराना
२-अमेरिका मे--अमेरिकन्स को दहशतगर्द ठहराना
३- यूरोप मे----ईसाईयो को रासिस्ट ठहराना
४-भारत मे---हिन्दुओ को सांप्रदायिक ठहराना
५-बौद्ध देशो---बौद्धो को फासिस्ट ठहराना

जाहिर है ऐसा करके ये अगले पर मानसिक दबाब बनाने का प्रयास करते हैं ,ताकि अगला घबड़ाकर कर चुप हो जाये .....!

14) इस्लामीकरण को जारी रखने के लिए ये "इमोशनल"
प्रौपगेंडा भी करते है जिसके लिए ये अक्सर शेरो शायरी या कुछ
बोलबचन या फिल्मे या मुस्लिम मजहब से ताल्लुक रखने वाले
अभिनेता कलाकार ,संगीतकार ,पत्रकार ,खिलाड़ी वगैरह
या पुराने किस्सो का उदाहरण देते रहते है !

15) ये गैर मुस्लिमो पर "मानसिक दबाव" बनाते है इसके
लिए ये दूसरे मजहबो मे "सेकुलर" ढूंढ कर उनकी तारीफो के
पुल बाँध देते है:)) ताकि इनका इस्लामीकरण
का एजेंड़ा चलता रहे ....

16) इस तरह ये कभी हिंसा और अराजकता का डर दिखाकर
या इमोशनली मानसिक दबाव बनाकर दूसरो को उलझाये रखते
है और धीरे धीरे अपना इस्लामीकरण चालू रखते है!

17) और जो राष्ट्रवादी संगठन इनके इस्लामीकरण के अभियान
मे आड़े आते है ये उनके खिलाफ प्रोपगेंडा करते है ,
जैसे भारत के कुछ राष्ट्रवादी संगठनो के अलावा बाहर मे
English Defence League(EDL), SIOA ,SIOE ,Mossad
जैसे बड़े- बडे सैकड़ो राष्ट्रवादी संगठनो को ये मुस्लिम लोग जालिम और दहशतगर्द ठहरा देते है !
=================================
=>समाज मे आम धारणा है कि धमाके या दंगे फसाद करने वाले
मुस्लिम ही खतरा है ....
पर इस्लाम का प्रमुख उद्देश्य सभी गैर
मुस्लिमो को इस्लामी झंड़े और शरिया कानून के दायरे मे लाना
है और "इस इस्लामी मकसद को पूरा करने के लिये
धमाको की या किसी को मारने की पहली जरूरत नही है !"
इसलिए असली समस्या है वो करोडो मुस्लिम जो हमारे बीच
मे सामान्य रूप से रहते हुये मुस्लिम बच्चे पैदा करके
अपनी जनसंख्या मे इजाफा कर रहे है और
सारे सिस्टम को अपने काबू मे करते जा रहे है जो कि अत्यंत
गंभीर समस्या है !

=>इसलिए सारी दुनिया इस पुराने अरबी साम्राज्यवाद के
इस्लामीकरण के खतरे को जान चुकी है और इसके खिलाफ एकजुट
हो चुकी है !
आज चाहे जापान ,इजराइल जैसे छोटे देश हो या अमेरिका रूस ,आस्ट्रेलिया जैसे बडे देश ...कोई
भी देश अपनी संस्कृति ,अपनी पहचान ,अपनी विरासत की कीमत
पर समझौता नही करता !

=>इसलिए जरूरत अब हमे इमोशनल न होकर खुद को मजबूत और ताकतवर बनाने की है ...
क्योकि शांति तभी स्थायी हो सकती है ,जब हम.खुद को मजबूत बनाये और सेक्युलरिज्म की वजह से भावुक न होकर खुद को प्रैक्टिकल बनाए और हमेशा हर चीज के लिए तैयार रहे !

Sunday, October 13, 2013

मौलाना बदरुद्दीन अजमल

असम दंगो में मुसलमानों को मदद कर हिंदुओ को मारने और खदेडने वाले बदरुद्दीन अजमल ने हिंदुओ पर जबरदस्त हमला बोला है !

http://www.jagranjosh.com/current-affairs/assam-violence-hc-ordered-state-government-to-probe-role-of-badruddin-ajmal-1370949205-1

“ हिंदुओ को सौदी अरेबिया, पाकिस्तान या 56 इस्लामी मुल्को में से कही पर भी चुनाव में वोट करने का अधिकार नहीं । में चुनौती देता हू, क्या किसी हिंदू में दम है की वो हिन्दुस्तान में हम मुसलमानों के वोटिंग करने पर पाबंदी लगाकर दिखाये ? ”
-- मौलाना बदरुद्दीन अजमल, लोकसभा सांसद, AIUDF, असम.

http://www.dailymail.co.uk/indiahome/indianews/article-2192760/Ajmal-blamed-Azad-Maidan-violence.html


कुरबानी जायज़ कैसे हुवी




इक दिन इब्राहीम की परीक्षा लेने के कारण

अलाह में इब्राहीम को अपनी सब से प्यारी चीज़ कुराबान करने कहा जिस से अलाह खुश हो जाए
---इब्राहीम ने पहले दिन १ ० ० ऊंट की कुर्बानी दी
----------अलाह खुश नहीं हुवा
फिर---
---इब्राहीम ने दुसरे दिन फिर से १ ० ० ऊंट की कुर्बानी दी
----------अलाह खुश नहीं हुवा
फिर---
---इब्राहीम ने तीसरे दिन फिर से १ ० ० ऊंट की कुर्बानी दी
----------अलाह खुश नहीं हुवा

**इसी से पता चलता है
**इसे से ही पता चलता है अलाह कितना जालिम है
**अलाह इब्राहीम को रोक सकता था
**जब के मुसलमान ही कहते ही की अलाह सब कुछ जाननेवाला है
**जो सब कुछ जाननेवाला है उसे क्यों पता नहीं चला की के इब्राहीम निर्दोष और बेजुबान जानवरों की हत्या कर देगा
**और उस तिन दिन की कुर्बानी अलाह खुश भी नहीं होगा तो कुर्बानी तो कुछ काम नहीं आयी

**फिर चोथे दिन इब्राहीम ने अपने बेटे इस्माइल की बलि देने को सोचा
**जब छुरी चलाने की कोशिश की तब अलाह ने छुरी से बात कर के छूरी को चलने से मना कर दिया
**हा हा हा हा हा
**अलाह छूरी से बात कर रहा था

**फिर अलाह ने इस्माइल के जगह पे इक दुम्बा (मेंढा) रख दिया और उसकी कुर्बानी हो गई
**और अलाह खुश हो गया के इब्राहीम मेरे लिए अपने बेटे तक की कुरबानी दे सकता है

**तो सवाल ये है की गाय बकरी को क्यों काटते हो
**अलाह को खुश करना है तो अपने अपने बेटो की गर्दने क्यों नहीं काटते

**दूसरा सवाल ये है की अगत अलाह छूरी से बात करके उसे रोक सकता था
तो
**तिन दिन जब इब्राहीम ऊंट काट रहा था तब क्या अलाह सो रहा था
**जब अलाह खुश नहीं होने वाला था तो उस वक़्त भी छुरी को क्यों नहीं रोका

**उन ऊँटो का पाप किस पे जाएगा इब्राहीम पे या अलाह पे

**सवाल ये भी परीक्षा इब्राहीम की थी तो अलाह खुश हुवा ना
**तो उसे रिवाज़ बनाकर क्यों जानवरों की ह्त्या करते आ रहे हो

**मुस्ल्मान कहते है कुरबानी अपने महनेट की पैसे की होनी चाहिए
**इब्राहीम कोनसी महेनत कर लाया था दुम्बा
**तो फिर कुरबानी जायज़ कैसे हुवी