Saturday, December 28, 2013

इस्‍लाम के क्रूर पक्ष का नाम है वहाबियत

राजनीतिक इस्‍लाम के क्रूर पक्ष का नाम है वहाबियत

खुर्शीद अनवर। जनसत्ता। हालांकि पहले भी आतंकवाद पर कोई बहस या बातचीत आम जन के दिमाग को सीधे इस्लाम की तरफ खींच ले जाती थी। लेकिन विश्व व्यापार केंद्र पर हमले और उसके बाद दो नारों ‘आंतकवाद के खिलाफ  जंग’ और ‘दो सभ्यताओं के बीच टकराव’ ने ऐसी मानसिकता बनाई कि दुनिया भर में आम इंसानों के बीच एक खतरनाक विचार पैठ बनाने लगा कि ‘सारे मुसलमान आतंकवादी होते हैं’।

कुछ ‘नर्मदिल’ रियायत बरतते हुए इसे ‘हर आतंकवादी मुसलमान होता है’ कहने लगे। था तो यह राजनीतिक षड्यंत्र, लेकिन आम लोग हर मुद्दे की तह में जाकर पड़ताल करके समझ बनाएं यह मुमकिन नहीं। मान्यताएं उनमें ठूंसी जाती हैं। जिसे ‘इस्लामी आतंकवाद’ कहा गया, वह दरअसल है क्या? यह आतंकवाद सचमुच इस्लामी है या कुछ और? अगर इस्लाम ही है तो इसकी जड़ें कहां हैं? इस तथ्य का खुलासा करने के लिए एक शब्द का उल्लेख और उसका आशय समझ कर ही आगे बात की जा सकती है: ‘जिहाद’! आखिर जिहाद है क्या? इसकी उत्पत्ति कहां से हुई और आशय क्या था?
जिहाद की कुरान में पहली ही व्याख्या ‘जिहाद अल-नफस’ यानी खुद की बुराइयों के खिलाफ जंग है। जब ऐसा है तो फिर अचानक वह जिहाद कहां से आया जो इंसानों का, यहां तक कि मासूम बच्चों का खून बहाना इस्लाम का हिस्सा बन गया। दुनिया भर में ‘इस्लामी’ आतंकवाद खतरा बन मंडराने लगा। पर कहां से आया यह खतरा?
इस्लाम जैसे-जैसे परवान चढ़ा, अन्य धर्मों की तरह इसके भी फिरके बनते गए। एक रूप इस्लाम का शुरू से ही रहा और वह था राजनीतिक इस्लाम। जाहिर है कि सत्ता के लिए न जाने कितनी जंग लड़ी गर्इं और खुद मोहम्मद ने जंग-ए-बदर लड़ी। आसानी से कहा जा सकता है कि यह जंग भी मजहब को विस्तार देने के लिए लड़ी गई। मगर असली उद्देश्‍य था सत्ता और इस्लामी सत्ता। जंग-ए-बदर में सब कुछ वैसा ही हुआ जैसा किसी जंग में होता है, पर जिहाद की कुरान में दी गई परिभाषा फिर भी जस की तस रही।
वर्ष 1299 में राजनीतिक इस्लाम ने पहला बड़ा कदम उठाया और ऑटोमन साम्राज्य या सल्तनत-ए-उस्मानिया की स्थापना हुई।  (1299-1922)। आम धारणा कि यह जिहाद के नाम पर हुआ, मात्र मनगढ़ंत है। सत्ता की भूख इसकी मुख्य वजह थी।
जिहाद की नई परिभाषा गढ़ी अठारहवीं शताब्दी में मोहम्मद इब्न-अब्दुल-वहाब ने, जिसके नाम से इस्लाम ने एक नया मोड़ लिया, जिसमें जिहाद अपने विकृत रूप में सामने आया। नज्त में जन्मे इसी मोहम्मद इब्न-अब्दुल-वहाब (1703-1792) से चलने वाला सिलसिला आज वहाबी इस्लाम कहलाता है, जो सारी दुनिया को आग और खून में डुबो देना चाहता है।
मोहम्मद इब्न-अब्दुल-वहाब के आने से बहुत पहले सूफी सिलसिला मोहब्बत का पैगाम देने और इंसानों को इंसानों से जोड़ने के लिए आ चुका था। इसका प्रसार बहुत तेजी से तुर्की, ईरान, अरब और दक्षिण एशिया में हो चुका था। सूफी सिलसिले से जो कर्मकांड जुड़ गए वह अलग मसला है, मगर हकीकत है कि सूफी सिलसिले ने इस्लाम को बिल्कुल नया आयाम दे दिया और वह संकीर्णता की जंजीरें तोड़ता हुआ इस्लाम की हदें भी पार कर गया।
सल्तनत-ए-उस्मानिया से लेकर फारस और अरब तक सूफी सिलसिलों ने जो दो बेहद महत्त्वपूर्ण काम अंजाम दिए वे थे गुलाम रखने की परंपरा खत्म करना और स्त्री मुक्ति का द्वार खोलना। फारस में मौलाना रूमी के अनुयायियों द्वारा मेवलेविया सिलसिले ने तेरहवीं सदी में औरतों के लिए इस सूफी सिलसिले के दरवाजे न सिर्फ खोले बल्कि उनको बराबर का दर्जा दिया। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सूफियों के संगीतमय वज्दाना नृत्य (सेमा) में पुरुषों और महिलाओं की बराबर की हिस्सेदारी होने लगी। मौलाना रूमी की मुख्य शिष्या फख्रंनिसां थी। उनका रुतबा इतना था कि उनके मरने के सात सौ साल बाद मेवलेविया सिलसिले के उस समय के प्रमुख शेख सुलेमान ने अपनी निगरानी में उनका मकबरा बनवाया।
महान सूफी शेख इब्न-अल-अरबी (1165-1240) खुद सूफी खातून फातिमा बिन्त-ए-इब्न-अल-मुथन्ना के शागिर्द थे। शेख इब्न-अल-अरबी ने खुद अपने हाथों से फातिमा बिन्त-ए-इब्न-अल-मुथन्ना के लिए झोपड़ी तैयार की थी, जिसमें उन्होंने जिंदगी बसर की और वहीं दम तोड़ा।
मोहम्मद इब्न-अब्दुल-वहाब ने एक-एक कर इस्लाम में विकसित होती खूबसूरत और प्रगतिशील परंपराओं को ध्वस्त करना शुरू किया और उसे इतना संकीर्ण रूप दे दिया कि उसमें किसी तरह की आजादी, खुलेपन, सहिष्णुता और आपसी मेलजोल की गुंजाइश ही न रहे। कुरान और हदीस से बाहर जो भी है उसको नेस्तनाबूद करने का बीड़ा उसने उठाया। अब तक का इस्लाम कई शाखाओं में बंट चुका था। अहमदिया समुदाय अब्दुल-वहाब के काफी बाद उन्नीसवीं सदी में आया लेकिन शिया, हनफी, मुलायिकी, सफई, जाफरिया, बाकरिया, बशरिया, खुलफिया हंबली, जाहिरी, अशरी, मुन्तजिली, मुर्जिया, मतरुदी, इस्माइली, बोहरा जैसी अनेक आस्थाओं ने इस्लाम के अंदर रहते हुए अपनी अलग पहचान बना ली थी और उनकी पहचान को इस्लामी दायरे में स्वीकृति बाकायदा बनी हुई थी।
इनके अलावा सूफी मत तो दुनिया भर में फैल ही चुका था और अधिकतर पहचानें सूफी मत से रिश्ता भी बनाए हुए थीं। लेकिन मोहम्मद इब्न-अब्दुल-वहाब की आमद और प्रभाव ने इन सभी पहचानों पर तलवार उठा ली। ‘मुख्तसर सीरत-उल-रसूल’ नाम से अपनी किताब में खुद मोहम्मद इब्न-अब्दुल-वहाब ने लिखा ‘जो किसी कब्र, मजार के सामने इबादत करे या अल्लाह के अलावा किसी और से रिश्ता रखे वह मुशरिक (एकेश्वरवाद विरोधी) है और हर मुशरिक का खून बहाना और उसकी संपत्ति हड़पना हलाल और जायज है।’
यहीं से शुरू हुआ मोहम्मद इब्न-अब्दुल-वहाब का असली जिहाद, जिसने छह सौ लोगों की एक सेना तैयार की और हर तरफ घोड़े दौड़ा दिए। तमाम तरह की इस्लामी आस्थाओं के लोगों को उसने मौत के घाट उतारना शुरू किया। सिर्फ अपनी विचारधारा का प्रचार करता रहा और जिसने उसे मानने से इनकार किया उसे मौत मिली और उसकी संपत्ति लूटी गई। मशहूर इस्लामी विचारक जैद इब्न अल-खत्ताब के मकबरे पर उसने निजी तौर पर हमला किया और खुद उसे गिराया।
मजारों और सूफी सिलसिले पर हमले का एक नया अध्याय शुरू हुआ। इसी दौरान उसने मोहम्मद इब्ने सांद के साथ समझौता किया। मोहम्मद इब्ने सांद दिरिया का शासक था और धन और सेना दोनों उसके पास थे। दोनों ने मिलकर तलवारों के साथ-साथ आधुनिक असलहों का भी इस्तेमाल शुरू किया। इन दोनों के समझौते से दूरदराज के इलाकों में पहुंच कर अपनी विचारधारा को थोपना और खुलेआम अन्य आस्थाओं को तबाह करना आसान हो गया। अन्य आस्थाओं से जुड़ी तमाम किताबों को जलाना मोहम्मद इब्न-अब्दुल-वहाब का शौक-सा बन गया। इसके साथ ही उसने एक और घिनौना हुक्म जारी किया और वह यह था कि जितनी सूफी मजारें, मकबरे या कब्रें हैं उन्हें तोड़ कर वहीं मूत्रालय बनाए जाएं।
सऊदी अरब जो कि घोषित रूप से वहाबी आस्था पर आधारित राष्ट्र है, उसने मोहम्मद इब्न-अब्दुल-वहाब की परंपरा को जारी रखा। बात यहां तक पहुंच गई कि 1952 में बुतपरस्ती का नाम देकर उस पूरी कब्रगाह को समतल बना दिया गया जहां मोहम्मद के पूरे खानदान और साथियों को दफन किया गया था। ऐसा इसलिए किया गया कि लोग जियारत के लिए इन कब्रगाहों पर जाकर मोहम्मद और उनके परिवार को याद करते थे।
अक्टूबर 1996 में काबा के एक हिस्से अल्मुकर्रमा को भी इन्हीं कारणों से गिराया गया। काबा के दरवाजे से पूर्व स्थित अल-मुल्ताजम जो कि काबा का यमनी हिस्सा है, उसके खूबसूरत पत्थरों को तोड़ कर वहां प्लाइवुड लगा दिया गया, जिससे कि लोग पत्थरों को चूमें नहीं, क्योंकि ऐसा करने पर वहाबी इस्लाम के नजदीक यह मूर्तिपूजा हो जाती है। अभी हाल में ‘द इंडिपेंडेंट’ की एक रिपोर्ट के अनुसार मक्का के पीछे के हिस्से में जिन खंभों पर मोहम्मद की जिंदगी के महत्त्वपूर्ण हिस्सों को पत्थरों पर नक्काशी करके दर्ज किया गया था, उन खंभों को भी गिरा दिया गया। इन खंभों पर की गई नक्काशी में एक जगह अरबी में यह भी दर्ज था कि मोहम्मद किस तरह से मेराज (इस्लामी मान्यता के अनुसार मुहम्मद का खुदा से मिलने जाना) पर गए।
वहाबियत इस्लाम के पूरे इतिहास, मान्यताओं, परस्पर सौहार्द और पहचानों के सह-अस्तित्व के साथ खिलवाड़ करता आया है। एक ही पहचान, एक ही तरह के लोग, एक जैसी किताब और नस्ली शुद्धता का नारा हिटलर ने तो बहुत बाद में दिया, इसकी बुनियाद तो वहाबियत ने उन्नीसवीं शताब्दी में ही इस्लाम के अंदर रख दी थी।
अरब से लेकर दक्षिण एशिया तक वहाबियत ने अपनी इस शुद्धता का तांडव बहुत पहले से दिखाना शुरू कर दिया था, लेकिन पिछले कुछ दशकों में इसने अपना घिनौना और क्रूर रूप और भी साफ कर दिया। जहां एक तरफ मेवलेविया सिलसिले ने तेरहवीं सदी में औरतों के लिए सिलसिले के दरवाजे न सिर्फ खोले बल्कि उनको बराबर का दर्जा दिया था, वहीं दूसरी तरफ वहाबी इस्लाम ने औरतों को जिंदा दफन करना शुरू कर दिया। बेपर्दगी के नाम पर औरतों के चेहरों के हिस्से बदनुमा करने और औरतों पर व्यभिचार का इल्जाम लगा कर उन पर संगसारी करके मार देने को इस्लामी रवायत बना दिया।
वहाबियत पर विश्वास न रखने वाले मुसलमानों को इस्लाम के दायरे से खारिज करके उन्हें सरेआम कत्ल करना जायज और हलाल बताया जाने लगा। यह मात्र इस्लाम के अनुयायियों के साथ सलूक की बात है। अन्य धर्मों पर कुफ्र का इल्जाम लगा कर उन्हें खत्म करना, संपत्ति लूटना, उनकी औरतों को जबर्दस्ती वहाबियत पर धर्मांतरण करवाना इनके लिए एक आम बात बन चुकी है।
वहाबियत या वहाबी इस्लाम लगातार पूरी दुनिया के लिए खतरा बनता जा रहा है। मौत के इन सौदागरों की करतूत को आमतौर पर इस्लामी आतंकवाद का नाम दिया जाता है, जिसकी साजिश वाशिंगटन और लंदन में रची जाती है और कार्यनीति सऊदी अरब से लेकर दक्षिण एशिया तक तैयार की जाती है। अल-कायदा, तालिबान, सिपाह-ए-सहबा, जमात-उद-दावा, अल-खिदमत फाउंडेशन, जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा जैसे संगठन इस साजिश को अंजाम देकर लगातार खूनी खेल खेल रहे हैं।
दक्षिण एशिया में वहाबी इस्लाम की जड़ों को मजबूत करने का काम मौलाना मौदूदी ने अंजाम दिया। हकूमत-ए-इलाहिया इसी साजिश का हिस्सा है जिसके तहत गैर-वहाबी आस्थाओं को, चाहे वह इस्लाम के अंदर की आस्थाएं हों या गैर-इस्लामी, जड़ से उखाड़ फेंकने और उनकी जगह एक ऐसा निजाम खड़ा करने की योजना है जिसमें हिटलर जैसा वहाबी परचम लहराया जा सके। किससे छिपा है कि सऊदी अरब का हर कदम अमेरिका की जानकारी में उठता है। क्या अमेरिका को इसका इल्म नहीं कि सऊदी अरब अपने देश से लेकर पाकिस्तान और बांग्लादेश तक इन संगठनों की तमाम तरह से मदद कर रहा है और इसकी छाया हिंदुस्तान पर भी मंडरा रही है।
आज की वहाबी आस्था के पास केवल तलवार और राइफलें नहीं हैं बल्कि इनके हाथों बेहद खतरनाक आधुनिकतम हथियार लग चुके हैं। इनकी नजरें पाकिस्तान में मौजूद परमाणु हथियारों पर भी हैं। आस्था जब पागलपन बन जाए तो वह तमाम हदें पार कर सकती है। जो लोग ईद के दिन मस्जिदों में घुसकर लाशों के अंबार लगा सकते हैं वे मौका मिलने पर क्या कुछ नहीं कर गुजर सकते। वहाबियत का खतरा इस संदर्भ में देखा जाना चाहिए। इस खतरे की चपेट में हर वह शख्स है जो इस दरिंदगी के खिलाफ खड़ा है।

सारे मुसलमान हिन्दु हैं – मौलाना मुफ्ती अब्दुल कयूम

सारे मुसलमान हिन्दु हैं , अल्लाह नामकी चीज कोई
नहीं है . सब गढ़ा हुआ है,
इसे पढ़े —–

स्व0 मौलाना मुफ्ती अब्दुल कयूम
जालंधरी संस्कृत ,हिंदी,उर्दू ,फारसी व अंग्रेजी के
जाने-माने विद्वान् थे।
अपनी पुस्तक “गीता और कुरआन “में उन्होंने निशंकोच
स्वीकार किया है कि, “कुरआन”की सैकड़ों आयतें
गीता व उपनिषदों पर आधारित हैं।
मोलाना ने मुसलमानों के पूर्वजों पर भी काफी कुछ
लिखा है ।
उनका कहना है कि इरानी “कुरुष ” ,”कौरुष “व
अरबी कुरैश मूलत : महाभारत के युद्ध के बाद भारत से
लापता उन २४१६५कौरव सैनिकों के वंसज हैं, जो मरने से
बच गए थे।
अरब में कुरैशों के अतिरिक्त “केदार”व “कुरुछेत्र”
कबीलों का इतिहास भी इसी तथ्य को प्रमाणित
करता है।
कुरैश वंशीय खलीफा मामुनुर्र्शीद(८१३-८३५) के
शाशनकाल में निर्मित खलीफा का हरे रंग
का चंद्रांकित झंडा भी इसी बात को सिद्ध
करता है।
कौरव चंद्रवंशी थे और कौरव अपने आदि पुरुष के रूप में
चंद्रमा को मानते थे। यहाँ यह तथ्य भी उल्लेखनीय है
कि इस्लामी झंडे में चंद्रमां के ऊपर“अल्लुज़ा”अर्ताथ
शुक्र तारे का चिन्ह,अरबों के कुलगुरू“शुक्राच
ार्य“का प्रतीक ही है।
भारत के कौरवों का सम्बन्ध शुक्राचार्य से
छुपा नहीं है।
इसी प्रकार कुरआन में “आद“जाती का वर्णन है,वास्तव में
द्वारिका के जलमग्न होने पर जो यादववंशी अरब में बस
गए थे,वे ही कालान्तर में “आद” कोम हुई।
अरब इतिहास के विश्वविख्यात विद्वान् प्रो०
फिलिप के अनुसार२४वी सदी ईसा पूर्व
में“हिजाज़” (मक्का-मदीना) पर जग्गिसा (जगदीश)
का शासन था।
२३५०ईसा पूर्व में शर्स्किन ने जग्गीसा को हराकर अंगेद
नाम से राजधानी बनाई।
शर्स्किन वास्तव में नारामसिन अर्थार्त नरसिंह
का ही बिगड़ा रूप है।
१००० ईसा पूर्व अन्गेद पर गणेश नामक राजा का राज्य
था।
६ वी शताब्दी ईसा पूर्व हिजाज पर हारिस
अथवा हरीस का शासन था।
१४वी सदी के विख्यात अरब इतिहासकार
“अब्दुर्रहमान इब्ने खलदून ” की ४०से अधिक भाषा में
अनुवादित पुस्तक “खलदून का मुकदमा” में लिखा है
कि ६६० इ०से १२५८ इ० तक “दमिश्क” व
“बग़दाद”की हजारों मस्जिदों के निर्माण में
मिश्री,यूनानी व भारतीय वातुविदों ने सहयोग
किया था।
परम्परागत सपाट छतवाली मस्जिदों के स्थान पर
शिवपिंडी कि आकृति के गुम्बदों व उस पर अष्ट दल कमल
कि उलट उत्कीर्ण शैली इस्लाम को भारतीय
वास्तुविदों की देन है।
इन्ही भारतीय वास्तुविदों ने“बैतूल हिक्मा” जैसे
ग्रन्थाकार का निर्माण भी किया था।
अत: यदि इस्लाम वास्तव में यदि अपनी पहचान
कि खोंज करना चाहता है तो उसे
इसी धरा ,संस्कृति व प्रागैतिहासिक ग्रंथों में स्वं
को खोजना पड़ेगा.
जय हिंदु

Thursday, December 26, 2013

भारतीय मुसलमानों का सच

Muslim places matrimonial

An Indian Muslim places matrimonial
advt for a " SECOND WIFE " as a backup
bride, but insists she must be a VIRGIN.
What a HYPOCRITE !

Friday, December 20, 2013

मुस्लिम‬ मित्रों से एक छोटा सा सवाल

‎मुस्लिम‬ मित्रों से एक छोटा सा सवाल :-

हाल ही में हुए मुज्जफरनगर दंगों पर सभी आहत हैं चाहें वे हिन्दू हो या मुसलमान, पर ज्यादातर मुस्लिम समुदाय इसके लिए राजनैतिक पार्टिओं को कोस रहा है.. हो सकता है उन दंगों को भड़काने में राजनैतिक पार्टिओं का भी हाथ हो, पर जिस मुज्जफरनगर में आज़ादी से पहले से आजतक कोई साम्प्रदायिक दंगा नहीं हुआ था वहाँ पहली बार २०१३ में दंगा हुआ..

दंगा क्यों हुआ और किस समुदाय ने इसकी शुरुवात की वो भी सबको पता है बताने की जरुरत नहीं है, तो यहाँ सवाल ये पैदा होता है कि कई दशकों से चली आ रही है हिन्दू- मुसलमानों की एकता को वहाँ भंग करने का काम किसने शुरू किया ? और केवल वहीँ नहीं दुनिया के हरेक कोने में सबसे पहले मार- काट दंगे कौन शुरु करता है बताने की जरुरत नहीं है.. फिर जब गैर मुस्लिम इसका जवाब देते हैं तो मुस्लिम समुदाय रोना क्यों शुरू कर देता है ?

जीवन का नियम है कि क्रिया की प्रतिक्रिया हमेशा होती है.. चाहें बड़ी हो या छोटी हो..

गुजरात दंगे किसने शुरू किए थे ? बर्मा दंगे क्यों शुरू हुए थे ? अमेरिका ने पाकिस्तान वा अफगानिस्तान पर हमले क्यों शुरू किए थे ? इजरायल के साथ युद्ध ना करने के दस्तावेजों पर साइन करने के बाद पहले लड़ाई की पहल कौन करता है.. ? भारत से पाकिस्तान को अलग काटने की माँग की पहल किसने शुरू की थी ? ऐसे बहुत से सवाल हैं जहाँ पर आपको ऐसे हरेक मामले में शुरूवात करने वाला पक्ष मुस्लिम समुदाय ही मिलेगा..

फिर ऐसे में दुसरे पक्ष यदि अपनी आत्मरक्षा में कुछ कदम उठाता है तो क्या वो गलत है ? मुज्जफरनगर दंगों में क्या सपा, ‪#‎मोदी‬ या अमित शाह या किसी अन्य पार्टी ने कहा था कि जाओ और जाकर जाटों की लड़की को छेड़ो ? और जब उनके भाई इसके विरोध में आयें तो उन दोनों को जान से मार दो ?

राजनैतिक पार्टियाँ अपने लाभ के लिए किसी दंगे को बड़ा कर सकती हैं पर पैदा नहीं कर सकती हैं.. यदि हिन्दू साम्प्रदायिक होते हैं और मोदी या संघ या राजनैतिक पार्टियाँ आदि हिन्दुओं को भड़काती हैं तो हिमाचल प्रदेश में तो करीब 98% से ज्यादा हिन्दू हैं और हर साल वहाँ पर सरकारें बदलती हैं भाजपा भी सत्ता में आती है फिर भी वहाँ अभी तक हिन्दू- मुसलमानों का एक भी साम्प्रदायिक दंगा क्यों नहीं हुआ ?

इसका केवल एक ही कारण है क्योंकि हिन्दू वहाँ अभी बहुमत में हैं और मुस्लिम समुदाय अल्पमत में.. और दुनिया के किसी भी कोने में देख लीजिये जहाँ- जहाँ पर मुस्लिम बहुमत में हैं वहाँ पर गैर मुसलमानों के साथ आये दिन मुसलमानों के साथ टकराव आम बात होती है..

तो क्या गैरमुसलमानों का अपने बचाव में कोई कदम उठाना गलत है वो भी जब- जब कि हमेशा हर दंगे मार- काट की शुरुवात मुस्लिम समुदाय ही करता है..

मुस्लिम मित्रों से जवाब की आश रहेगी....

मुस्लिम कब समझेंगे की उन्हें विकास चाहिए ना की धार्मिक कट्टरता

‪‎मुजफ्फरनगर‬ ,शामली से विस्थापित हुए मुस्लिम केम्पों में अब तक 60 से ज्यादा वृद्ध और बच्चे ‪‎ठण्ड‬ से अपनी जान गँवा चुके .....

1000 से ज्यादा लोग निमोनिया से ग्रस्त हैं , और मूलभूत सुविधायों के अभाव से लगभग सभी ग्रस्त हैं

इस देश के मुस्लिम कब समझेंगे की उन्हें विकास चाहिए ना की धार्मिक कट्टरता ,,,,,

‪‎मुस्लिमों‬ के रहनुमा बनने वाली केंद्र सरकार में बैठी ‪‎कोंग्रेस‬ हो ...

‪‎मुल्ला‬ टोपी पहनकर आतंकियों की पैरोकार करने वाली समाजवादी पार्टी हो

या अभी अभी नवजात मुस्लिम पैरोकार का दावा करने वाली ‪‎आप‬ हो ...
इनमे से कोई भी पार्टी ने अभी तक रिलीफ केम्पों में सुविधाओं के लिए कोई कदम उठाना तो दूर बल्कि इनके लिए कोई चर्चा करना भी मुनासिब नहीं समझा .....

क्या कोंग्रेस के पास इनके लिए फंड की कमी है ? ???????

क्या समाजवादी पार्टी की सरकार होते हुए इनके पास प्रशासन या पैसे की कमी है ????????

क्या देश हित में चंदा इकटठा करने वाली आ आ पा के पास इतना भी पैसा नहीं की वो इन रिलीफ केम्पों को कुछ राहत सामग्री भिजवा सके ???

असल में मुस्लिमों को ये बात समझनी होगी की कब तक वो धर्म के नाम पर दिखाए जा रहे इस डर को दिल में पाल कर रखेगी ? .......कब तक वो वोट बैंक की घटिया राजनीति का शिकार होती रहेगी??????? .....हिंसा बिल के जरिये मुसलमानों का कुछ भला नहीं होना बल्कि हिन्दू- मुस्लिम के बीच खाई को और बढाया जाना है जिसके दुस्प्रभाव ही होंगे आपके लिए

अंत में बता दूँ की रिलीफ केम्पों में कुछ लोकल हिन्दू ही इन्हें कम्बल आदि मुहेया करवा रहें हैं लेकिन वो नाकाफी हैं क्यूंकि जब तक मुस्लिम अपने धार्मिक कट्टरपन और इस्तेमाल होने की प्रवर्ति नहीं छोड़ेंगे , तब तक हिन्दुओं में पूर्ण विश्वास नहीं जागेगा आपके प्रति .....

Tuesday, December 17, 2013

अगर ये गुजरात में हुआ होता ?





अगर ये गुजरात में हुआ होता ?

सऊदी अरब में अल-सलाम नामक जगह में एक सीवर ड्रेनेज से पचास कुरआन बरामद की गईं। एक बच्चे ने खेलते-खेलते इन्हें देखा और पुलिस को बुलाया और सीवर खुलवाने से यह पता चला। सऊदी अरब में यह पहली बार नहीं हुआ है और इस वर्ष के आरम्भ में भी कुरआन के अपमान का एक मामला सामने आया था, लेकिन उसे दबा दिया गया। इस घटना ने समूची मुस्लिम दुनिया में गहरी चिंता व्याप्त कर दी है। ताज्जुब है कि अभी तक अपने देश में इसके विरोध में 'शांतिदूतों' द्वारा कोई 'आज़ाद मैदान' नहीं किया गया । अरे इनको तो पाकिस्तान से लेकर अफगानिस्तान, ईरान से लेकर किर्गिस्तान, लीबिया से लेकर इथोपिया और इराक से लेकर सूडान तक में होने वाली जरा जरा सी घटनाओं की चिंता रहती है, भले ही कश्मीर और आसाम के हिंदुओं के दुःख दर्द, बांग्लादेशियों की बढ़ती घुसपैठ और अपने ही पड़ोस के किसी मकान में रह रहे आतंकियों पर नजर कभी ना जाये। क्या खबर नहीं मिली अभी तक शांतिदूतों को इस घटना की या इनकी सोच में कुछ सुधार आया है, सोचने वाली बात है।

ये क्या?

धर्मनिरपेक्षता का निरिक्षण नहीं करोगे क्या ?








हमरे पश्चिम बंगाल में एक जिला है दक्षिण चौबीस परगना , उसमें मग्राहत नाम का ब्लाक है उसमें बीस साल में हिन्दुओं का आबादी 87 परसेंट से घाट के 47 होगया और और मुसलमानों का आबादी 11 परसेंट से बड कर 81 होगया ।
महिना भर पहले मुसलमानों का एक सम्मलेन हुआ वहां हिन्दू धर्म को गली गलोच , हमरे देवी देवताओं को गली गलोच और उन्होंने जलूस निकले ,, उस जलूस में ९ ० ० महिला का प्रदर्शन किया और घोषण किया के हमने एक साल में यह नौ सौ लड़कियों को हिन्दू से मुसलमान बनाया और लव जिहाद के चक्कर में आके जो मुस्लमान बन गयी उनका जलसों निकले फिर भी हिन्दू मौन है
क्या इसके बाद भी धर्मनिरपेक्षता का निरिक्षण नहीं करोगे क्या ?

चीन के प्रांत में दंगा







दुनिया भर में कहीं भी दंगा हो नरसंहार हो मार-काट हो लेकिन वजह सिर्फ एक होती है... वो वजह जो बच्चा-बच्चा जनता है... पूरी दुनिया इससे जूझ रही है लेकिन जानवरों को कोई फर्क नहीं पड़ता । सम्पूर्ण विश्व को अपनी तरह नपुंसक बनाने की इस मुहीम का नाम है 'इस्लाम' । 

वास्तव में इस्लाम और मुसलमान में ऐसी कोई बात नहीं जो इंसानों के भीतर पाई जाती हो या साफ़ शब्दों में कहूँ तो मुसलमान और इंसान में कोई समानता नहीं... जो इंसान है वो मुसलमान नहीं होगा और जो मुसलमान है वो इंसान नहीं होगा ।

शायद यही वजह है कि अंगोला, जापान और रूस जैसे देशों ने इस बीमारी की पहचान करके इस पर पाबंदी जैसे कठोर क़दम तक उठा लिए...

Monday, December 16, 2013

"गंगा-जमुनी", "अमन की आशा", "सभी धर्म एक समान हैं"



रामेश्वरम मंदिर के लिए प्रसिद्ध तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले के कई मुस्लिम बहुल गाँवों में स्थानीय पंचायतों ने फतवा जारी करके "बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश निषेध" का बोर्ड लगा दिया है.

अथियुत्हू, पुतुवालासी, पनईकुलम, सिथरकोटी जैसे कई मुस्लिम बहुल गाँवों में मुस्लिम जमात ताजुल इस्लाम संघ द्वारा नोटिस लगाया गया है कि, "इस गाँव में किसी भी प्रकार का पोस्टर-बैनर अथवा गाड़ियों के होर्न बगैर पंचायत की इजाज़त के नहीं लगाए जा सकेंगे, कोई भी गैर-इस्लामिक गतिविधि स्वीकार नहीं है". स्थानीय निवासी बताते हैं कि इस इलाके से पंचायत स्तर पर भी आज तक कभी कोई हिन्दू उम्मीदवार नहीं जीता. रामनाथपुरम के सांसद हैं मुस्लिम मुनेत्र कषगम (MMK) के एमएच जवाहिरुल्लाह.

पामबन गाँव के रहवासी कुप्पुरामू बताते हैं कि यहाँ कई गाँवों में लगभग ५०-६०% दुकानदार मुसलमान हैं, और हिन्दू को किसी व्यवसाय आरम्भ करने के लिए इनकी अनुमति लेनी होती है.... जिला कलेक्टर अथवा राज्य सरकार (चाहे DMK सरकार हो या AIDMK) को शिकायत करने पर मुस्लिम वोटों के लालच में आँखें मूँद ली जाती हैं.

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क्या कहा?? ये सब मैं आपको क्यों बता रहा हूँ?? अरे भाई, कहा था ना कि मैं एक "डाकिया" हूँ, मेरा काम है सूचना देना... बाकी आप लोग "गंगा-जमुनी", "अमन की आशा", "सभी धर्म एक समान हैं" जैसे सेक्यूलर तराने गाते रहिए न भाई,,, कौन रोक रहा है...

सैकुलर हिंदु


जेहादी मुसलमान कितने भी गंदे कयों ना हों .कितने भी नरपिशाच कयों न हों ........
लेकिन सैकुलर हिंदु की तरह दोगले बिलकुल भी नही .कि दिल मे कुछ और जुबां पर कुछ...
जो कहते हैं डंके की चोट पर कहते हैं

यकिन नही आता ..तो खुद ही देख लें

Friday, December 13, 2013

1971 के युद्ध में हिंदुओं को चुन-चुनकर मार रही थी पाकिस्तानी फौज

1971 के युद्ध में हिंदुओं को चुन-चुनकर मार रही थी पाकिस्तानी फौज




1971 के युद्ध में पाकिस्तानी फौज पूर्वी पाकिस्तांन में हिंदुओं को चुन-चुनकर कर मार रही थी. पाकिस्तानी फौज ने जान-बूझकर ऐसा किया. भारत की सरकार यह सब जानती थी, लेकिन इसे गलत तरीके से लोगों तक पहुंचाया गया. तब कहा गया कि पाकिस्तानी सेना ने बंगालियों का कत्लेआम किया है. यह सब एक किताब में लिखा है, जो हाल ही में रिलीज हुई है.

अब तक ऐसा माना जाता रहा था कि 1971 के भारत-पाकिस्ताजन युद्ध में पाकिस्ता.नी फौज के निशाने पर बंगाली थे. पर अब एक किताब से नई जानकारी सामने आई है. किताब में बांग्लापदेश की आजादी (तब के पूर्वी पाकिस्ताान) की लड़ाई के बारे में कुछ अहम बातों का खुलासा किया गया है. भारत सरकार इस तथ्या से पूरी तरह वाकिफ थी कि युद्ध में हिंदू निशाना बन रहे हैं, इसके बावजूद इसे ज्यायदा प्रचारित नहीं किया गया. अगर तब इस बात का खुलासा किया जाता, तो जनसंघ के नेताओं के भड़कने का खतरा था.

गौरतलब है कि भारतीय जनता पार्टी जनसंघ से ही निकली है. लेखक गरी जे. बास ने अपनी किताब, 'The Blood Telegram: Nixon, Kissinger and a Forgotten Genocide में इस युद्ध के बारे में विस्ता र से लिखा है.

प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में राजनीति और अंतरराष्ट्रीdय संबंध के प्रोफेसर जे. बास के मुताबिक वह युद्ध मूल रूप से पूर्वी पाकिस्तािन में रह रहे हिंदुओं के खिलाफ था, इसके बावजूद भारत ने इसे बंगा‍लि‍यों के खिलाफ संहार करार दिया.

जे. बास ने लिखा है कि भारतीय विदेश मंत्रालय का तर्क है कि पाकिस्ताोन के जनरल चुनाव हार बैठे, क्योंखकि उनके देश में बंगालियों की तादाद ज्यासदा थी.


पाकिस्तान की सेना लगातार हिंदू समुदाय को निशाना बनाती रही. किताब के मुताबिक, भारतीय अधिकारी यह नहीं चाहते थे कि जनसंघ पार्टी के हिंदू राष्ट्र वादियों को उग्र होने का मौका मिले.

जे. बास ने अपनी किताब में लिखा है कि तब रूस में भारत के राजदूत रहे डीपी धर के मुताबिक पाकिस्तानी सेना ने पहले से हिंदुओं को ही जनसंहार के लिए निशाना बना रखा था. लेकिन इस बात से हिंदू राष्ट्रवादियों का गुस्सा भड़कने का खतरा था.



Wednesday, December 11, 2013

ब्रेडफ़ोर्ड को लेकर "सेकुलर" मित्रों से दो सवाल

ब्रेडफ़ोर्ड को लेकर "सेकुलर" मित्रों से दो सवाल

इंग्लैण्ड में पूर्वी लन्दन, ब्रेडफ़ोर्ड एवं बर्मिंघम शहरों के मुस्लिम बहुल इलाकों में कुछ दिनों पहले अचानक रात को पोस्टर जगह-जगह खम्भों पर लगे मिले… साथ में कुछ पर्चे भी मिले हैं जिसमें मुस्लिम बहुल इलाकों को "शरीयत कण्ट्रोल्ड झोन" बताते हुए वहाँ से गुज़रने वालों को चेताया गया है, कि यहाँ से गुज़रने अथवा इस इलाके में आने वाले लोग संगीत न बजाएं, जोर-जोर से गाना न गाएं, सिगरेट-शराब न पिएं, महिलाएं अपना सिर ढँककर निकलें… आदि-आदि। कुछ गोरी महिलाओं पर हल्के-फ़ुल्के हमले भी किए गये हैं… हालांकि पुलिस ने इन पोस्टरों को तुरन्त निकलवा दिया है, फ़िर भी आसपास के अंग्रेज रहवासियों ने सुरक्षा सम्बन्धी चितांए व्यक्त की हैं एवं ऐसे क्षेत्रों के आसपास स्थित चर्च के पादरियों ने सावधान रहने की चेतावनी जारी कर दी है…।

स्थानीय निवासियों ने दबी ज़बान में आरोप लगाए हैं कि पिछले दो दिनों से लन्दन में जारी दंगों में "नीग्रो एवं काले" उग्र युवकों की आड़ में नकाब पहनकर मुस्लिम युवक भी इन दंगों, आगज़नी और लूटपाट में सक्रिय हैं…। सच्चाई का खुलासा लन्दन पुलिस द्वारा गिरफ़्तार किये गये 300 से दंगाईयों से पूछताछ के बाद ही हो सकेगा, परन्तु "शरीया जोन" के पोस्टर देखकर ईसाईयों में भी असंतोष और आक्रोश फ़ैल चुका है।

भारत में ऐसे "मिनी पाकिस्तान" और "शरीयत नियंत्रित इलाके" हर शहर, हर महानगर में बहुतायत में पाए जाते हैं, जहाँ पर पुलिस और प्रशासन का कोई जोर नहीं चलता। कल ही मुरादाबाद में, कांवड़ यात्रियों के गुजरने को लेकर भीषण दंगा हुआ है। "सेकुलर सरकारी भाषा" में कहा जाए तो एक "समुदाय" द्वारा, "क्षेत्र विशेष" से कांवड़ यात्रियों को "एक धार्मिक स्थल" के सामने से निकलने से मना करने पर विवाद की स्थिति बनी और दंगा शुरु हुआ। देखना है कि क्षेत्र के माननीय(?) सांसद मोहम्मद अजहरुद्दीन क्या कदम उठाते हैं, तथा "गुजरात-फ़ोबिया" से ग्रस्त मानसिक विकलांग मीडिया इसे कितना कवरेज देता है (कुछ माह पहले बरेली में हुए भीषण दंगों को तो मीडिया ने "बखूबी"(?) दफ़न कर दिया था)

हमारे "तथाकथित सेकुलर" मित्र, क्या इन दो प्रश्नों का जवाब देंगे कि -

1) जब तक मुस्लिम किसी आबादी के 30% से कम होते हैं तब तक वे उस देश-राज्य के कानून को मानते हैं, पालन करते हैं… परन्तु जैसे-जैसे इलाके की मुस्लिम आबादी 50% से ऊपर होने लगती है, उन्हें "शरीयत कानून का नियंत्रण", "दारुल-इस्लाम" इत्यादि क्यों याद आने लगते हैं?

2) जब-जब जिस-जिस इलाके, क्षेत्र, मोहल्ले-तहसील-जिले-संभाग-राज्य-देश में मुस्लिम बहुसंख्यक हो जाते हैं, वहाँ पर अल्पसंख्यक (चाहे ईसाई हों या हिन्दू) असुरक्षित क्यों हो जाते हैं?

इन मामूली और आसान सवालों के जवाब "सेकुलरों" को पता तो हैं, लेकिन बोलने में ज़बान लड़खड़ाती है, लिखने में हाथ काँपते हैं, और सारा का सारा "सेकुलरिज़्म", न जाने कहाँ-कहाँ से बहने लगता है…

अल्लाह को मदद चाहिए ?

आर्य - अल्लाह को मदद चाहिए ?
मुस्लिम-नही।

आर्य - किसी भी प्रकार की नहीं?
मुस्लिम- हाँ किसी भी प्रकार की नहीँ?

आर्य - सोच लो।
मुस्लिम- हाँ सोच लिया।

आर्य - तो फिर ये क्या है" या अय्युहल्जीन आमनू इन् तन्सुरूल्लाह यन्सुर्कम् व युसब्बित अक्दामकुम्( सूरा मुहम्मद, आयत 7)
तर्जुमा- हे वे लोग जो ईमान लाये हो यदि तुम अल्लाह की मदद करोगे तो वह तुम्हारी मदद करेगा और तुम्हारे कदमोँ को जमा देखा।

मुस्लिम- इसका अर्थ ये नहीँ होगा।

आर्य - अर्थ तो तुम्हारी प्रमाणिक कुरआन का दिया है।
मुस्लिम- और अर्थ नहीँ मैँ भावार्थ की बात कर रहा था।

आर्य - तो जरा भावार्थ बता दीजिए?

मुस्लिम- इसका भावार्थ कि अल्लाह की जो बाते हैँ उन पर अमल करो और अल्लाह के मार्ग पर चलो तो तुम्हारा भी भला होगा।

आर्य - तब्दीली कर नहीँ पायेँ मियाँ, और न खुदा को बचा पाये, आप आयत मेँ आये 'नसर'(मदद) लफ़्ज को हटा नहीँ पाये।
खुदा को मदद चाहिए भले ही उसकी मदद करने का तरीका दूसरा हो।

मुस्लिम - हाँ ये बात तो है।
आर्य - तो फिर आपने ये क्योँ कहाँ कि अल्लाह को किसी भी प्रकार की मदद की आवश्यकता नहीँ,
मैने तो पहले ही पूछ लिया था इस बात को।
मुस्लिम- ??????

नॉन मुस्लिम के मरने के बाद उसको RIP

लो जी सेक्युलरिस्टों और खुजलिकर्ताओ के लिए खुशखबरी इस्लाम के हिसाब से किसी काफिर यानि जिसने मोहम्मद को अल्लाह का दूत और अल्लाह को ही भगवन नहीं माना है तो उसकी आत्मा को कभी शांति नहीं मिल सकती इसलिए किए नॉन मुस्लिम के मरने के बाद उसको RIP(rest in peace) मतलब उसकी आत्मा को भगवन शांति दे भी नहीं कह सकते क्योंकि ये इस्लाम के खिलाफ है और ऐसा कहने वाले को जहन्नम ही मिलेगी।

Tuesday, December 10, 2013

सिर्फ हिंदुओं के कृपा कलापों पर ही लागू होगा जादू टोना विधेयक

सिर्फ हिंदुओं के कृपा कलापों पर ही लागू होगा जादू टोना विधेयक 

Friday, December 6, 2013

इस्लामिक मुल्क के अमन पसंद नागरिकों का आपस में लड़ कर मरने का आंकड़ा

चलो अब जरा आपको सुन्नी समुदाय द्वारा दुनिया भर में 2012 का आंकड़ा बता दूँ, कि इस समुदाय ने कहाँ- कहाँ पर शांति और भाईचारे का सन्देश दिया..

बीते वर्ष में अमन पसंद इस्लामिक मुल्क के अमन पसंद नागरिकों का आपस में लड़ कर मरने का आंकड़ा :-

पाकिस्तान :- 19711.

अफगानिस्तान :- 36799.

सीरिया :- 2 लाख से अधिक.

मिस्त्र :- 4566.

लीबिया :- 19000 से अधिक.

ईरान :- 1987.

ईराक :- 4567.

इंडोनेशिया :- 1734 (2069 गैर मुस्लिम भी)

उज्ज्बेकिस्तान :- 1103.

फलिस्तीन :- 13000 से अधिक.

मलेशिया :- 2200 से अधिक.

1000 से कम मौत वाले मुल्कों का नाम बदनामी के डर से गोपनीय रखा गया है, आप समझ सकते हैं क्यों ?

और सबसे खास बात कि इन देशों में हिन्दू, RSS या बीजेपी का नाम तक मौजूद नहीं है, जिसको ये लोग भारत में अपने 'सत्कर्मों' को छुपाने के लिए हमेशा सारा दोष इन पर डाल देते हैं..

पर कोई बात नहीं सुन्नी मुस्लिम अभी भी बेशर्मी से कहेंगे कि हिन्दू, RSS या बीजेपी इन देशों में नहीं है तो क्या हुआ अमेरिका, इजरायल तो है ना, तो बस सारी बात यहीं खत्म हो गयी कि ये लोग(सुन्नी) तो बेहद ही सीधे और भोलेभाले हैं, इनको तो इन सभी देशों में अमेरिका, इजरायल एक चाल के तहत साफ़ कर रहा है..

नोट :- ये आंकड़े केवल बीते साल 2012 दिसम्बर तक के हैं, इस साल के आंकड़ों को इसमें शामिल नहीं किया गया है, पर यदि अभी तक अगस्त तक का मोटा- मोटा हिसाब लगाएँ तो सीरिया, लीबिया, पाकिस्तान, बांग्लादेश, इजिप्ट आदि इस्लामिक देशों में मरने वालों की संख्या कई लाख तक पहुँचती है..

सेक्युलर भारत में सेक्युलर शरणार्थी



सेक्युलर भारत में सेक्युलर शरणार्थी
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भारत से आतंकवाद समाप्त करने का मात्र एक ही उपाय है और वो है सऊदी अरब के पैसे से बनी सुन्नी वहाबी मस्जिदों और मदरसों का "तत्काल ध्वस्तिकरण" क्योकि इनके मदरसे आतंकवाद की पाठशाला हैं और जगह जगह नालों के किनारे बनी इनकी मस्जिदें आतंकवादियों की पनाहगाह हैं जिनको सऊदी अरब से पैसा मिल रहा है, मुज़फ्फरनगर में इन्ही मस्जिदों से निहथ्थे बेगुनाह हिन्दुओ पर AK-47 से गोलियां चलायी गयीं और ग्रेनेड फेके गए, याद रहे पकिस्तान जिंदाबाद के नारे भी इन्ही सुन्नी वहाबी मस्जिदों से सुनाई देते हैं.
कहीं ऐसा न हो कि सेकुलरिज्म के नाम पर हम भारत को भी सीरिया बना दें, सीरिया एक सेक्युलर देश है जिसने सेकुलरिज्म के नाम पर इन सुन्नी वहाबी आतंकवादियों को पूरी छूट दी जिसका भरपूर लाभ उठाते हुए वहाँ के सुन्नी वहाबी आतंकवादियों ने अपनी मस्जिदों और मदरसों में सऊदी अरब के पैसे से हथियार जमा किये और आज सीरिया की " सेक्युलर सरकार " का जो हाल है वो हमारे सामने है, आज सीरिया के सेक्युलर नागरिक शरणार्थी बन चुके हैं और वहाँ के सुन्नी वहाबी नागरिक विदेशी आतंकवादियों संग मिलकर सीरिया की "सेक्युलर सरकार" से जिहाद कर रहे हैं.
कहीं ऐसा न हो कि आने वाले समय में सेक्युलर हिन्दू और शिया भी अपने सेक्युलर भारत में सेक्युलर शरणार्थी बन के रह जाए.
बाकी आप ख़ुद समझदार हैं.
जयहिंद.

Japnees PM says

इन्हें पहले ही अलग देश दे दिया गया है जिन्हें इस देश सें दिक्कत हो वो इस देश को छोड़ कर जा सकते है ।

Monday, December 2, 2013

एक मोलवी द्वारा इस्लाम कबूल करने के फायदों का वर्णन

एक मोलवी द्वारा इस्लाम कबूल करने के फायदों का वर्णन

1 >>>>> हम मुल्ले देश का सबसे जादा पानी बचाते है क्युकी कई कई महीनो में नहाते है
2>>>>> हमारी एकता बनी रहती है और हिन्दू भी हमे एक नाम से ही बुलाते है "सूअर" इसका मतलब है की सभी मुसलमानों एक ही जेसे है जिससे एकता बनी रहती है
3>>>>>हमे हिन्दुओ की तरह गाव गाव में घूमना नहीं पड़ता चूत के लिए ..जरूरत पड़ने पर हम अपनी माँ और बहन को भी चोद देते है
4>>>>>और अक्षय कुमार ने भी हमारा नारा चुराया है की "घर में पड़ा है सोना फिर कहे को रोना " इसका असली वाला ये है "जब घर में पड़ी है चूत तो उसे चोदेंगे हम अपनी माँ बहनो को भी नहीं छोड़ेंगे " इसका मतलब है हम बहुँत फमुस है अक्षय कुमार जेसे बड़े लोग भी हमारा नारा चुराते है
5>>>>>हम अपने किसी भी रिश्तेदार की माँ बहन का रैप कर सकते है पकडे जाने पर मोहमद शाहब का नाम लेकर बच सकते है क्युकी मोहमद सहाब भी अपनी बेटी को खुद चोदता था और इस्लाम में इसकी इजाजत है
6>>>>>हम में मर्द नाम की कोई चीज़ नही होती इसलिए हम आधा लंड तो बचपन में काट डालते है इससे हिन्दू हमे ये नही बोल सकते मर्द है तो सामने आ ,ये कर वो कर
7>>>>>हम एक घंटे में 10-11 चूत मार सकते है जो और कोई नही मार सकता क्युकी हम आधा लंड के होते है है जो 2-4 मिनट ही चलता है और हिन्दुओ का लोडा नही लोहे का हतोड़ा रहता है वो तो एक घंटे तक चूत लगातार मार सकते है ..इसलिए हम कम समय में जादा बार चूत मार सकते है और झूटी हवाबाजी कर सकते है
8>>>>>और सबसे बड़ी बात अपनी माँ चोदो ,बहन चोदो,रिश्तेदारीमें सब लडकियों को चोद दो और नाम लगा दो मोहमद सहाब का और खुद बच जाओ \


नोट >>>>
कोई भी धर्म इतनी चूत मरने की छुट नही देता सो इस्लाम सबसे बेस्ट रिलिजन है इसे अपनाओ और सूअर बन जाओ
और हिन्दुओ से अपनी बहन और माँ को बचा के रकना क्युकी अगर हमारी माँ बहेन हिन्दुओ से चुद गयी तो फिर उनको हमारी लुल्ली से कुछ नही होगा क्युकी क्या करेगी वो लुल्ली का जब मिलेगा लुल्ला और हिन्दू मरे चूत खुल्लम खुल्ला ...तो इस बात का विशेष ध्यान
और इन बातो को सबको बताओ और इस्लाम के प्रचार में जुट जाओ