Thursday, January 31, 2013

'विश्‍वरूपम' विवाद - भारत का इस्लामीकरण हो चूका है

'विश्‍वरूपम' विवाद - भारत का इस्लामीकरण हो चूका है
----------------------------

अगर जो कांग्रेसी और सेकुलर किस्म में लोग अभी भी ये मानते है कि भारत एक हिंदू बहुसंख्यक देश है या धर्मनिरपेक्ष देश , वो जरा फिर सोचे...

आपको याद हो दिल्ली की कुछ बीती घटनाये-

१. "दामिनी कांड" में प्रदर्शन करती हजारों की भीड़.
२. "भ्रष्टाचार व् कला धन" के मुद्दे पर रामदेव के साथ लाखो लोगो की भीड़
३. "जन लोकपाल" पर अन्ना हजारे के साथ प्रदर्शन करती हजारों की भीड़.

इसके आलावा की कई और मुद्दों पर लाखो की भीड़ ने देश भर में प्रदर्शन किये . पर क्या सरकार के कानो पर जू रेंगी. प्रदर्शनकारियों से बात करना तो

दूर, उलटे उन्हें नक्सलवादी तक कह डाला गया... और भी जाने क्या क्या सहा उन सब लोगो ने. आपको सब याद हि होगा.

परन्तु मेरा दिमाग तब खटकता है, जब पता हू कि केवल कुछ लोगो, शायद २०-३० , के विरोध के चलते 'विश्‍वरूपम' को बैन कर दिया जाता है. एक के

बाद एक कई राज्यों में. अब उत्तरप्रदेश सरकार भी येही कह रही है.

आप सोचे कहा लाखो लोगो की भीड़ प्रदर्शन करती है राष्ट्रवादी मुद्दों पर, पर सरकार कुछ नहीं करती.

....और २०-३० मुस्लमान लोगो के द्वारा प्रदर्शन पर इतने बड़े निर्णय.

ये सोच की "कही मुस्लमान नाराज ना हो जाये", क्या ये भारत का इस्लामीकरण नहीं????

अभी भी समय है, फेसबुक के इलावा भी जमीनी स्तर पर हिंदू धर्मं का पालन व् प्रचार करे.

हिन्दुओ के जागने और जगाने का समय आ चूका है...ये हम जितना जल्द समझले उतना कम खून खराबा होगा..

२०१४ का चुनाव एक मौका है और शायद आखिरी!!

जय श्री राम. जय हिंद.

Conversion of non-Muslim places of worship into mosques

▬●●●▬▬▬▬▬▬▬●●●▬▬▬▬▬▬▬●●●▬

Conversion of non-Muslim places of worship into mosques = From Wikipedia, the free encyclopedia
▬●●●▬▬▬▬▬▬▬●●●▬▬▬▬▬▬▬●●●▬

The Conversion of non-Muslim places of worship into mosques occurred primarily during the life of Muhammad and continued during subsequent Islamic conquests and under historical Muslim rule. As a result, numerous Hindu temples, churches, synagogues, the Parthenon and Zoroastrian temples were converted into mosques. Several such mosques in Muslim or ex-Muslim lands have since reverted or become museums, such as the Hagia Sophia in Turkey and numerous mosques in Spain and Israel.

http://en.wikipedia.org/wiki/Conversion_of_non-Muslim_places_of_worship_into_mosques#Kashi_Viswanath_.28Banaras.29

https://www.facebook.com/photo.php?fbid=515982025094095&set=a.310178779007755.98047.100000469056983&type=3&theater

https://www.facebook.com/media/set/?set=a.331663773525922.101851.100000469056983&type=3

https://www.facebook.com/photo.php?fbid=441976655827966&set=a.310178779007755.98047.100000469056983&type=3&theater

▬▬▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬

हमारी सभ्यता प्राचीनतम है ! हमने ही विश्व को कला, संस्कृति, स्थापत्य कला और विज्ञान दिया है यही कारण है की हमारे और हमारे जैसी दूसरी प्राचीन सभ्यता जैसे ग्रीक और रोमन द्वारा निर्मित स्थापत्य कला की बेहतरीन इमारतों को तोड़कर इस्लाम और ईसाई धर्मों द्वारा उनके ऊपर दूसरी इमारतों का निर्माण किया गया ! इस तरह के निर्माण से एक ओर जहाँ पराजित कौम का मनोबल तोड़ा जाता था वहीं दूसरी ओर विजेता और विध्वंसकारी अपनी विजय की यादगार बनाकर अपने सैनिकों का धार्मिक उन्माद बढ़ाते थे !

निश्चय ही यह शोध का विषय हो सकता लेकिन CARBON 14 Dating से सच्चाई सामने अवश्य आ जायेगी ! कुतर्क करने वालों को केवल यह उदाहरण प्रस्तुत कीजिये - "" तालिबान ने बामियान में क्या किया ??? विश्व की प्राचीनतम और विशालतम बौद्ध मूर्ति को ध्वस्त करने वाले क्या इस्लाम का झंडा नहीं बुलंद किये हुए हैं ???? उससे भी ज्यादा चिंता की बात चीन / जापान / कोरिया / श्रीलंका जैसे शक्तिशाली बौद्ध धर्म के अनुयायी वाले देशों के होते हुए भी बामियान की बौद्ध मूर्ति को बचने के लिए कोई भी आगे नहीं आया !!!!

http://en.wikipedia.org/wiki/Buddhas_of_Bamiyan

http://www.youtube.com/watch?v=xYYBlPWYb7Y

http://www.youtube.com/watch?v=6D-z6sTs3pU

http://www.youtube.com/watch?v=yh00b65CZa4

http://www.rawa.org/statues.htm

http://www.thehindu.com/arts/history-and-culture/article2904537.ece

▬▬▬▬▬▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬▬▬▬▬▬

‘लव जिहाद’की दाहकता बतानेवाली एक उच्च विद्याविभूषित युवतीका आत्मकथन !


‘लव जिहाद’की दाहकता बतानेवाली एक उच्च विद्याविभूषित
युवतीका आत्मकथन !

‘मैं मानसशास्त्र विषयमें पदव्युत्तर (एम्.ए.) शिक्षा लेनेके उपरांत
एक निजी प्रतिष्ठानमें नौकरी करती थी ।
वहां नौकरी करनेवाला एक मुसलमान युवक मुझे अपने प्रेमजालमें
फांसनेका प्रयत्न करता था । एक दिन उस मुसलमानने मुझे अपने
घर बुलाया । वहांसे लौटते समय मेरा रूमाल उसके घरपर छूट
गया । कुछ दिन पश्चात् मेरे घर आए एक ज्योतिषीने कहा, ‘उस
रूमालपर मुसलमानने जादू-टोना किया है ।’ एक बार दिल्ली और
आंध्रप्रदेश जाकर मुंबई लौटनेपर उस मुसलमानने मुझे एक
सोनेका हार और लोलक (लॉकेट) उपहारमें दिया । मुझे भी वह
लेनेकी दुर्बुद्धि हो गई । उसने मेरे सामने विवाहका प्रस्ताव
रखा । मैंने तुरंत उसका स्वर्णालंकार लौटाकर विवाह
करना अस्वीकार कर दिया ।
एक दिन उसने मुझे आग्रहपूर्वक एक टैक्सीमें बिठाया और एक
स्थानपर ले गया । वहां उसने दाढी बनानेकी पत्तीसे (ब्लेडसे)
अपनी कलाईकी नस काटकर पुनः विवाहका प्रस्ताव रखा । रक्त
देखकर मैं डर गई और रोने लगी । उसने मुझे कहा, ‘मुझसे प्रेम
करती हो, इसलिए तुम्हें रोना आ रहा है ।’ वह सतत एक माहतक
मेरे पीछे पडकर भयादोहनके (इमोशनल ब्लैकमेलके)
द्वारा प्रेमकी याचना करता रहा । एक दिन वह मुझे भगाकर ले
गया और बलपूर्वक विवाह किया । मेरी मांको यह पता चलनेपर
उसे गंभीर आघात पहुंचा और मस्तिष्कमें विकार (ब्रेन हैमरेज)
होकर उसकी मृत्यु हो गई । उस समय मुझे बहुत पश्चाताप हुआ ।
किंतु अब पश्चाताप करनेसे कोई लाभ नहीं था । विवाहके पश्चात्
तो मुझपर यातनाओंकी शृंखला ही आरंभ हो गई । इस बीच मुझे
एक बेटा भी हुआ । मुझपर और मेरे बच्चेपर जो अत्याचार हुए,
उसका वर्णन शब्दोंमें करना असंभव है । मुझे
भद्दी गालियां दी जाना, दिनचर्याका अभिन्न अंग था । उसने
मेरी मांके वर्षश्राद्धपर भी मुझे नहीं जाने
दिया तथा मेरी बहनों और अन्य संबंधियोंसे संपर्वâ तोडनेके लिए
बाध्य किया । उस मुसलमानका घर ‘छोटे पाकिस्तान’समान
मुसलमानबहुल क्षेत्रमें था । इसलिए मैं इन अत्याचारोंके विषयमें
किसीसे कुछ कह भी नहीं पाती थी । निरंतर ८ वर्षोंतक मैं यह
अत्याचार सहती रही । कदाचित् उसमें भी जादू-टोना रहा हो ।
मध्यकी अवधिमें उसने अन्य महिलाओं से शारीरिक संबंध रखा,
तब मैंने उसके विरोधमें पुलिस थानेमें परिवाद (शिकायत)
लिखवाया । इसलिए उसने मुझे घरसे निकालकर अगले ही माह
दूसरा विवाह कर लिया । तत्पश्चात् ‘विश्व हिंदु
परिषद’की सहायतासे मैंने पुनः हिंदु धर्ममें प्रवेश किया ।
मेरी समस्त हिंदु युवतियोंसे एक ही विनती है कि वे मेरी भांति भूल
न करें !’ – ‘लव जिहाद’की बलि चढी एक हिंदु युवती, मुंबई.
‘लव जिहाद’की दाहकता बतानेवाली एक उच्च विद्याविभूषित
युवतीका आत्मकथन !
‘मैं मानसशास्त्र विषयमें पदव्युत्तर (एम्.ए.) शिक्षा लेनेके उपरांत
एक निजी प्रतिष्ठानमें नौकरी करती थी ।
वहां नौकरी करनेवाला एक मुसलमान युवक मुझे अपने प्रेमजालमें
फांसनेका प्रयत्न करता था । एक दिन उस मुसलमानने मुझे अपने
घर बुलाया । वहांसे लौटते समय मेरा रूमाल उसके घरपर छूट
गया । कुछ दिन पश्चात् मेरे घर आए एक ज्योतिषीने कहा, ‘उस
रूमालपर मुसलमानने जादू-टोना किया है ।’ एक बार दिल्ली और
आंध्रप्रदेश जाकर मुंबई लौटनेपर उस मुसलमानने मुझे एक
सोनेका हार और लोलक (लॉकेट) उपहारमें दिया । मुझे भी वह
लेनेकी दुर्बुद्धि हो गई । उसने मेरे सामने विवाहका प्रस्ताव
रखा । मैंने तुरंत उसका स्वर्णालंकार लौटाकर विवाह
करना अस्वीकार कर दिया ।
एक दिन उसने मुझे आग्रहपूर्वक एक टैक्सीमें बिठाया और एक
स्थानपर ले गया । वहां उसने दाढी बनानेकी पत्तीसे (ब्लेडसे)
अपनी कलाईकी नस काटकर पुनः विवाहका प्रस्ताव रखा । रक्त
देखकर मैं डर गई और रोने लगी । उसने मुझे कहा, ‘मुझसे प्रेम
करती हो, इसलिए तुम्हें रोना आ रहा है ।’ वह सतत एक माहतक
मेरे पीछे पडकर भयादोहनके (इमोशनल ब्लैकमेलके)
द्वारा प्रेमकी याचना करता रहा । एक दिन वह मुझे भगाकर ले
गया और बलपूर्वक विवाह किया । मेरी मांको यह पता चलनेपर
उसे गंभीर आघात पहुंचा और मस्तिष्कमें विकार (ब्रेन हैमरेज)
होकर उसकी मृत्यु हो गई । उस समय मुझे बहुत पश्चाताप हुआ ।
किंतु अब पश्चाताप करनेसे कोई लाभ नहीं था । विवाहके पश्चात्
तो मुझपर यातनाओंकी शृंखला ही आरंभ हो गई । इस बीच मुझे
एक बेटा भी हुआ । मुझपर और मेरे बच्चेपर जो अत्याचार हुए,
उसका वर्णन शब्दोंमें करना असंभव है । मुझे
भद्दी गालियां दी जाना, दिनचर्याका अभिन्न अंग था । उसने
मेरी मांके वर्षश्राद्धपर भी मुझे नहीं जाने
दिया तथा मेरी बहनों और अन्य संबंधियोंसे संपर्वâ तोडनेके लिए
बाध्य किया । उस मुसलमानका घर ‘छोटे पाकिस्तान’समान
मुसलमानबहुल क्षेत्रमें था । इसलिए मैं इन अत्याचारोंके विषयमें
किसीसे कुछ कह भी नहीं पाती थी । निरंतर ८ वर्षोंतक मैं यह
अत्याचार सहती रही । कदाचित् उसमें भी जादू-टोना रहा हो ।
मध्यकी अवधिमें उसने अन्य महिलाओं से शारीरिक संबंध रखा,
तब मैंने उसके विरोधमें पुलिस थानेमें परिवाद (शिकायत)
लिखवाया । इसलिए उसने मुझे घरसे निकालकर अगले ही माह
दूसरा विवाह कर लिया । तत्पश्चात् ‘विश्व हिंदु
परिषद’की सहायतासे मैंने पुनः हिंदु धर्ममें प्रवेश किया ।
मेरी समस्त हिंदु युवतियोंसे एक ही विनती है कि वे मेरी भांति भूल
न करें !’ – ‘लव जिहाद’की बलि चढी एक हिंदु युवती, मुंबई.

क्या मलेशिया के मुस्लिमो का रसूल कोई अलग प्रजाति का है ?


अभी न्यूज देखी उसमे बता रहे थे कि ""विश्वरूपम"" मलेशिया में,जो कि एक मुस्लिम देश है, एक ब्लॉकबस्टर हिट बनने जा रही है.....

क्या वहाँ के मुस्लिम अलग टाइप के हैं??

क्या मलेशिया के मुस्लिमो का रसूल कोई अलग प्रजाति का है ?

हमारे देश में जहां ९९% मुस्लिम कन्वर्टेड हैं वहाँ इस फिल्म का विरोध क्यों ??

अफगानिस्तान में क्या तुम्हारे बाप दादे हैं जो वहाँ का कुछ दिखाकर तुम लोगों को पीड़ा होती है ?

एक आतंकवादी देश के बारे में कुछ भी दिखाएँ तुमको इससे क्या ??

हमारे देश के मुस्लिमों की भावनाए एक्स्ट्रा संवेदनशील क्यों हैं ??

सालोँ अपनी भावनाओँ पर डेटॉल क्योँ नहीँ लगाते हो, हर महिने दो महिने मेँ आहत होती रहती हैँ तुम्हारी भावनाएँ,

या फिर भारत का गुनाह ये है कि ये एक
शर्मनिरपेक्ष या सिकुलर देश है ??

पहले तो खुद को अल्पसंख्यक कहना बंद करो किसी भी देश की आबादी का २०% हिस्सा कभी भी अल्पसंख्यक नहीं हो सकता..बेचारे नहीं हो सालोँ

आखिर खुद को आतंकवाद से जोडते ही क्यो हो?

अगर इनसे ज्यादा ही कुछ कहो तो एक ही जबाब होता है कि हर मुस्लिम आतंकी नही होता

फिर क्योँ तुम लोगो की जल उठी विश्वरुपम को देखकर

बुन्देलखण्ड मेँ एक कहाबत है कि
"पढोँ या फिर पिँजरा खाली करो"

ये मुल्लोँ पर एक दम सटीक बैठती है या तो तुम भी भारत छोडकर चले जाओ या फिर चुपचाप रहो ।

साला अफगानिस्तान के मुल्लोँ को दिखाया फिल्म मेँ उनका बिरोध नही आया लेकिन भारत के मुल्लोँ के पिछवाड़े मेँ चुल्ल मची है

सालोँ जब खुद को आतंकवादी नहीँ समझते हो तो फिल्म से क्योँ डर रहे हो, क्या कहा? कही पोल ना खुल जाए

हा हा हा हा

शर्मनिरपेक्षता मुर्दाबाद
अभी न्यूज देखी उसमे बता रहे थे कि ""विश्वरूपम"" मलेशिया में,जो कि एक मुस्लिम देश है, एक ब्लॉकबस्टर हिट बनने जा रही है.....

क्या वहाँ के मुस्लिम अलग टाइप के हैं??

क्या मलेशिया के मुस्लिमो का रसूल कोई अलग प्रजाति का है ?

हमारे देश में जहां ९९% मुस्लिम कन्वर्टेड हैं वहाँ इस फिल्म का विरोध क्यों ??

अफगानिस्तान में क्या तुम्हारे बाप दादे हैं जो वहाँ का कुछ दिखाकर तुम लोगों को पीड़ा होती है ?

एक आतंकवादी देश के बारे में कुछ भी दिखाएँ तुमको इससे क्या ??

हमारे देश के मुस्लिमों की भावनाए एक्स्ट्रा संवेदनशील क्यों हैं ??

सालोँ अपनी भावनाओँ पर डेटॉल क्योँ नहीँ लगाते हो, हर महिने दो महिने मेँ आहत होती रहती हैँ तुम्हारी भावनाएँ,

या फिर भारत का गुनाह ये है कि ये एक
शर्मनिरपेक्ष या सिकुलर देश है ??

पहले तो खुद को अल्पसंख्यक कहना बंद करो किसी भी देश की आबादी का २०% हिस्सा कभी भी अल्पसंख्यक नहीं हो सकता..बेचारे नहीं हो सालोँ

आखिर खुद को आतंकवाद से जोडते ही क्यो हो?

अगर इनसे ज्यादा ही कुछ कहो तो एक ही जबाब होता है कि हर मुस्लिम आतंकी नही होता

फिर क्योँ तुम लोगो की जल उठी विश्वरुपम को देखकर 

बुन्देलखण्ड मेँ एक कहाबत है कि
"पढोँ या फिर पिँजरा खाली करो"

ये मुल्लोँ पर एक दम सटीक बैठती है या तो तुम भी भारत छोडकर चले जाओ या फिर चुपचाप रहो ।

साला अफगानिस्तान के मुल्लोँ को दिखाया फिल्म मेँ उनका बिरोध नही आया लेकिन भारत के मुल्लोँ के पिछवाड़े मेँ चुल्ल मची है

सालोँ जब खुद को आतंकवादी नहीँ समझते हो तो फिल्म से क्योँ डर रहे हो, क्या कहा? कही पोल ना खुल जाए 

हा हा हा हा

शर्मनिरपेक्षता मुर्दाबाद

Wednesday, January 30, 2013

मोपला कांड में ही अकेले २० हजार हिन्दुओं को काट डाला गया

राष्ट्र विरोधी व् हिन्दू विरोधी था गाँधी का असहयोग आन्दोलन
मोपला कांड में ही अकेले २० हजार हिन्दुओं को काट डाला गया ,२० हजार से ज्यादा को मुस्लमान बना डाला. १० हजार से अधिक हिदू ओरतों के बलात्कार हुए . और यह सब हुआ गाँधी के असहयोग आन्दोलन के कारण मह्रिषी अरविन्द ने १९०९ में कहा था "प्रारंभ से ही कोंग्रेस ने राजनीति में सदैव अपनी द्रष्टि को समाज से अलग केवल ब्रिटिश शासन की स्वामिभक्ति की ओर ही लगाए रक्खा।"
"१९०६ के आस-पास से ही कोंग्रेसमें मतभेद शुरू हो गए थे।कोंग्रेस नरम व गरम दलों में विभाजित हो गयी थी।"
नरम दल यानि अंग्रेजों की स्वामिभक्ति करने वाला दल था जिसके नेता थे गोखले व मोती लालनेहरू। दूसरा गरम दल जिसके नेता लोक मान्य तिलक थे। तिलक का नारा था ,"स्वराज मेराजन्म सिद्ध अधिकार है और मै उसे लेकर रहूँगा। " या कह सकते हैं कि कोंग्रेस का गरम दल वास्तव में एकराष्ट्रवादी कोंग्रेस का रूप था। यानि कि १९०६ से १९२० तक तिलक के नेर्तत्व में कोंग्रेस एक राष्ट्रवादी दल रहा। लेकिन १९१६ में गाँधी के अफ्रीका से आने के बाद स्थिति बदलनी शुरू हो गयी।सन १९२० में तिलक जी के स्वर्गवास के पश्चात अचानक परिस्थितियों ने अवसर दिया और गाँधी कोंग्रेस का बड़ा नेता बन गया।

गाँधी अगर चाहते तो वह तिलक के पूर्ण स्वराज्य की मांग को मजबूती प्रदान कर सकते थे।किन्तु गाँधी जी ने ऐसा नहीं किया। गाँधी जी ने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए अपना पहला आन्दोलन शुरू किया,जो इतिहास में असहयोग आन्दोलन के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

वास्तव में असहयोग आन्दोलन, खिलाफत आन्दोलन(खिलाफत क्या बाला थी ,इसे आगे जानेंगे) का एक हिस्सा था। स्यवं गाँधी के शब्दों में ,"मुसलमानों के लिए स्वराज का अर्थ है,जो होना चाहिए। खिलाफत की समस्या के लिए.......खिलाफत के सहयोग के लिए आवश्यक पड़ने पर मै स्वराज्य प्राप्ति को भी सहर्ष स्थगित कर देने को तैयार हूँ।"

अब सबसे प्रथम यह जानना आवश्यक है कि खिलाफत आन्दोलन क्या बला थी?

भारतीय इतिहास में खिलाफत आन्दोलन का वर्णन तो है किन्तु कही विस्तार से नहीं बताया गयाकि खिलाफत आन्दोलन वस्तुत:भारत की स्वाधीनता के लिए नहीं अपितु वह एक राष्ट्र विरोधी व हिन्दू विरोधी आन्दोलन था।

खिलाफत आन्दोलन दूर देश तुर्की के खलीफा को गद्दी से हटाने के विरोध में भारतीय मुसलमानों द्वारा चलाया गया आन्दोलन था। असहयोग आन्दोलन भी खिलाफत आन्दोलन की सफलता के लिए चलाया गया आन्दोलन था। आज भी अधिकांश भारतीयों को यही पता है कि असहयोगआन्दोलन स्वतंत्रता प्राप्ति को चलाया गया कोंग्रेस का प्रथम आन्दोलन था। किन्तु सत्य तो यही है कि इस आन्दोलन का कोई भी रास्ट्रीय लक्ष्य नहीं था।

प्रथम विश्व युद्ध में तुर्की की हार के पश्चात अंग्रेजों ने वहां के खलीफा को गद्दी से पदच्युत कर दियाथा। खिलाफत+असहयोग आंदोलनों का लक्ष्य तुर्की के सुलतान की गद्दी वापस दिलाने के लिए चलाया गया आन्दोलन था।

यहाँ एक हास्यप्रद बात और है कि तुर्की की जनता ने स्वं ही कमाल अता तुर्क के नेर्तत्व्य में तुर्की के खलीफा को देश निकला दे दिया था।

भारत में मोहम्मद अली जोहर व शोकत अली जोहर दो भाई खिलाफत का नेर्तत्व कर रहे थे। गाँधी ने खिलाफत के सहयोग के लिए ही असहयोग आन्दोलन की घोषणा कर डाली। जब कुछ राष्ट्रवादी कोंग्रेसियों ने इसका विरोध किया तो गाँधी ने यहाँ तक कह डाला,"जो खिलाफत का विरोधी है तो वह कोंग्रेस का भी शत्रु है। "
इतिहास साक्षी है कि जिस समय खिलाफत आन्दोलन फेल हो गया ,तो मुसलमानों ने इसका सारा गुस्सा हिदू जनता पर निकला,मुसलमान जहाँ कहीं भी संख्या में अधिक थे ,हिन्दू समाज पर हमला करने लगे. हजारों हिदू ओरतों से बलात्कार हुए,लाखों की संख्या में तलवार के बल पर मुसलमान बना दिए गए. सबसे भयंकर स्थिति केरल में मालाबार में हुए जो इतिहास में मोपला कांड के नाम से जानी जाती है.

मोपला कांड में ही अकेले २० हजार हिन्दुओं को काट डाला गया ,२० हजार से ज्यादा को मुस्लमान बना डाला. १० हजार से अधिक हिदू ओरतों के बलात्कार हुए . और यह सब हुआ गाँधी के असहयोग आन्दोलन के कारण.

इस प्रकार कहा जा सकता है कि १९२० तक तिलक की जिस कोंग्रेस का लक्ष्य स्वराज्य प्राप्ति था गाँधी ने अचानक उसे बदलकर एक दूर देश तुर्की के खलीफा के सहयोग और मुस्लिम आन्दोलन में बदल डाला, जिसे वहांके जनता ने भी लात मरकर देश निकला दे दिया ।
दूर देश में मुस्लिम राज्य की स्थापना के लिए स्वराज्य की मांग को कोंग्रेस द्वारा ठुकराना इस आन्दोलन को चलाना किस प्रकार राष्ट्रवादी था या कितना राष्ट्रविरोधी भारतीय इतिहास में इससत्य का लिखा जाना अत्यंत आवश्यक है अन्यथा भारतीय आजादी का दंभ भरने वाली कोंग्रेस लगातार भारत को इसे ही झूठ भरे इतिहास के साथ गहन अन्धकार की और रहेगी.

गाँधी वध क्यों ?? महात्मा गान्धी- कुछ अनकहे कटु तथ्य

गाँधी वध क्यों जरूर सुने इस विडीयो को पाँच सुनने के बाद आप हकिकत समझ जायेंगे

http://www.youtube.com/watch?v=HPErRTKpouM&feature=youtube_gdata_player


महात्मा गान्धी- कुछ अनकहे कटु तथ्य
१. अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोली काण्ड (१९१९) से समस्त देशवासी आक्रोश में
थे तथा चाहते थे कि इस नरसंहार के नायक जनरल डायर पर अभियोग चलाया जाए। गान्धी
ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से मना कर दिया।

२. भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के निर्णय से सारा देश क्षुब्ध था व
गान्धी की ओर देख रहा था कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु से बचाएं,
किन्तु गान्धी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए जनसामान्य की इस
माँग को अस्वीकार कर दिया। क्या आश्चर्य कि आज भी भगत सिंह वे अन्य
क्रान्तिकारियों को आतंकवादी कहा जाता है।

३. ६ मई १९४६ को समाजवादी कार्यकर्ताओं को अपने सम्बोधन में गान्धी ने मुस्लिम
लीग की हिंसा के समक्ष
अपनी आहुति देने की प्रेरणा दी।

४. मुस्लिम नेताओं के विरोध को अनदेखा करते हुए १९२१ में गान्धी ने खिलाफ़त
आन्दोलन को समर्थन देने की घोषणा की। तो भी केरल के मोपला मुसलमानों द्वारा
वहाँ के हिन्दुओं की मारकाट की जिसमें लगभग १५०० हिन्दु मारे गए व २००० से
अधिक को मुसलमान बना लिया गया। गान्धी ने इस हिंसा का विरोध नहीं किया,
वरन् खुदा के बहादुर बन्दों की बहादुरी के रूप में वर्णन किया।

५.१९२६ में आर्य समाज द्वारा चलाए गए शुद्धि आन्दोलन में लगे स्वामी
श्रद्धानन्द की अब्दुल रशीद नामक मुस्लिम युवक ने कर दी, इसकी
प्रतिक्रियास्वरूप गान्धी ने अब्दुल रशीद को अपना भाई कह कर उसके इस कृत्य को
उचित ठहराया व शुद्धि आन्दोलन को अनर्गल राष्ट्र-विरोधी तथा हिन्दु-मुस्लिम
एकता के लिए अहितकारी घोषित किया।

६.गान्धी ने अनेक अवसरों पर छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू गोविन्द
सिंह जी को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा।

७.गान्धी ने जहाँ एक ओर काश्मीर के हिन्दु राजा हरि सिंह को काश्मीर मुस्लिम
बहुल होने से शासन छोड़ने व काशी जाकर प्रायश्चित करने का परामर्श दिया, वहीं
दूसरी ओर हैदराबाद के निज़ाम के शासन का हिन्दु बहुल हैदराबाद में समर्थन किया।

८. यह गान्धी ही था जिसने मोहम्मद अली जिन्ना को कायदे-आज़म की उपाधि दी।

८. कॉंग्रेस के ध्वज निर्धारण के लिए बनी समिति (१९३१)ने सर्वसम्मति से चरखा
अंकित भगवा वस्त्र पर निर्णय लिया किन्तु गाँधी कि जिद के कारण उसे तिरंगा कर
दिया गया।

९. कॉंग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से
कॉंग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गान्धी पट्टभि सीतारमय्या का समर्थन कर
रहा था, अत: सुभाष बाबू ने निरन्तर विरोध व असहयोग के कारण पदत्याग कर दिया।

१०. लाहोर कॉंग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से चुनाव सम्पन्न हुआ किन्तु
गान्धी की जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया।

११. १४-१५ १९४७ जून को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कॉंग्रेस समिति की बैठक
में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, किन्तु गान्धी ने वहाँ
पहुंच प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब
जबकि उन्होंने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा।

१२. मोहम्मद अली जिन्ना ने गान्धी से विभाजन के समय हिन्दु मुस्लिम जनसँख्या
की सम्पूर्ण अदला बदली का आग्रह किया था जिसे गान्धी ने अस्वीकार कर दिया।

१३. जवाहरलाल की अध्यक्षता में मन्त्रीमण्डल ने सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय
पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया, किन्तु गान्धी जो कि मन्त्रीमण्डल के
सदस्य भी नहीं थे ने सोमनातह् मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त
करवाया और १३ जनवरी १९४८ को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली
की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला।

१४. पाकिस्तान से आए विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब
अस्थाई शरण ली तो गान्धी ने उन उजड़े हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व
बालक अधिक थे मस्जिदों से से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर
किया गया।

१५. २२ अक्तूबर १९४७ को पाकिस्तान ने काश्मीर पर आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व
माउँटबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को ५५ करोड़ रुपए की राशि देने का
परामर्श दिया था। केन्द्रीय मन्त्रीमण्डल ने
आक्रमण के दृष्टिगत यह राशि देने को टालने का निर्णय लिया किन्तु गान्धी ने
उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन किया- फलस्वरूप यह राशि
पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे दी गयी। उपरोक्त परिस्थितियों में
नथूराम गोडसे नामक एक युवक ने गान्धी का वध कर दिया।
न्य़यालय में चले अभियोग के परिणामस्वरूप गोडसे को मृत्युदण्ड मिला किन्तु
गोडसे ने न्यायालय में अपने कृत्य का जो स्पष्टीकरण दिया उससे प्रभावित होकर
उस अभियोग के न्यायधीश श्री जे. डी. खोसला ने अपनी एक पुस्तक में लिखा-"नथूराम
का अभिभाषण दर्शकों के लिए एक आकर्षक दृश्य था।
खचाखच भरा न्यायालय इतना भावाकुल हुआ कि लोगों की आहें और सिसकियाँ सुनने में
आती थीं और उनके गीले नेत्र और गिरने वाले आँसू दृष्टिगोचर होते थे। न्यायालय
में उपस्थित उन प्रेक्षकों को यदि न्यायदान का कार्य सौंपा जाता तो मुझे तनिक
भी संदेह नहीं कि उन्होंने अधिकाधिक सँख्या में यह घोषित किया होता कि नथूराम
निर्दोष है।" तो भी नथूराम ने भारतीय न्यायव्यवस्था के अनुसार एक व्यक्ति की
हत्या के अपराध का दण्ड मृत्युदण्ड के रूप में सहज ही स्वीकार किया।

परन्तु भारतमाता के विरुद्ध जो अपराध गान्धी ने किए, उनका दण्ड भारतमाता व
उसकी सन्तानों को भुगतना पड़ रहा है। यह स्थिति कब बदलेगी?

केवल मुसलमानों द्वारा ही क्यों इस फिल्म का विरोध किया जा रहा है ?

कुछ फिल्मों में औरतों को वेश्यावृति करते हुए दिखाया जाता है |


#औरतों ने तो कभी इसके खिलाफ आवाज नहीं उठाई |

किसी फिल्म में वैश्य वर्ग के लोगों को सूदखोर, लालची और बेईमान दिखाया जाता है|

#वैश्य और बनियाओं ने तो कभी इसका विरोध नहीं किया|

पंडितों को पाखंडी और धूर्त दिखाया जाता है इनकी तो कभी भावनाएं आहत नहीं हुई |

ठाकुरों को क्रूर, अत्याचारी और डाकू दिखाया जाता है | इस वर्ग ने तो कभी न्यायालय का दरवाजा नहीं खटखटाया |

कमल हसन ने "विश्वरूपम" में आंतकवाद को दिखाया है, वह भी अफगानिस्तान के | जो कि दुनिया में आतंकवाद की फैक्ट्री के रूप में जाना जाता है | ऐसे में हमारे देश के मुसलामानों की भावनाएं कैसे आहत हो गई ??

समझ के परे है |

हर कोई जानता है कि आंतकवाद का कोई धर्म या मजहब नहीं होता, मुसलमान भी ऐसा कहते हैं और हम भी ऐसा ही मानते हैं, और मैंने अभी तक फिल्म देखी नहीं है, मगर मुझे पूरा विश्वास है कि फिल्म में आंतकवाद तो जरुर दिखाया गया होगा, मगर उसको
कतई भी मुसलमानों के साथ नहीं जोड़ा गया होगा,  फिर क्यों मुसलमान उस आंतकवाद को अपने से जोड़ते हैं ?? या ये कहें कि कहीं ना कहीं खुद मुसलमानों के दिल में ये बात बैठ चुकी है कि आंतकवाद को केवल मुसलमानों द्वारा ही पैदा किया जाता है ?

जब आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, तो आप आतंकवादियों को अपने धर्म से जोड़ते ही क्यों हो ?

आंतकवादी होने की संज्ञा तो कांग्रेस द्वारा सिखों और हिन्दुओं को भी दी जा चुकी है, तो क्या किसी ने देखा कि किसी सिख समुदाए या किसी हिन्दू समुदाय ने इस फिल्म का विरोध किया हो ?

केवल मुसलमानों द्वारा ही क्यों इस फिल्म का विरोध किया जा रहा है ? आंतकवादी तो कोई भी हो सकता है, फिर क्यों इस फिल्म में दिखाए गए आंतकवाद को मुसलमान समाज द्वारा अपने से जोड़ा जा रहा है ??

मुसलमान मित्रों से जवाब की आश रहेगी !

जय हिन्द, जय भारत

विश्वरूपम' विवाद

विश्वरूपम' विवाद : कमल हासन ने कहा, इंसाफ नहीं मिला तो देश छोड़ दूंगा
==============================
 

चेन्न्ई: अपनी मेगा बजट फिल्म 'विश्वरूपम' को लेकर ...जारी विवाद पर आहत निर्देशक-अभिनेता कमल हासन ने आज कहा है कि उनके दिल में इंसाफ मिलने की उम्मीद अब भी कायम है, लेकिन अगर अब इस देश में उन्हें कोई धर्मनिरपेक्ष जगह नहीं मिल पाई, तो वह देश छोड़ने के लिए भी तैयार हैं।

भावुक स्वर में दिए गए वक्तव्य में कमल हासन ने कहा कि अदालत से उन्हें न्याय मिलने की आशा है, लेकिन तमिलनाडु सरकार उन्हें राज्य से भगाना चाहती है। उन्होंने यह भी कहा कि वह सिर्फ एक कलाकार हैं, और वह जहां भी जाएंगे, उनकी कला हमेशा उनके साथ रहेगी।

उन्होंने कहा कि उन्हें नहीं मालूम कि यह खेल कौन खेल रहा है और अब उन्हें इस विवाद के बाद महसूस हो रहा है कि तमिलनाडु सरकार उन्हें यहां नहीं रहने देना चाहती है, इसलिए उन्हें रहने के लिए एक धर्मनिरपेक्ष जगह की जरूरत है। उन्होंने बेहद आहत स्वर में कहा कि यदि उन्हें ऐसी जगह भारत में नहीं मिलती है, तो वह विदेश चले जाएंगे।

वैसे उन्होंने कहा कि तमिलनाडु को छोड़कर कश्मीर से केरल तक वह ऐसी जगह ढूंढेंगे, परंतु अगर किसी भी राज्य में उन्हें शरण नहीं मिलती तो वह किसी न किसी धर्मनिरपेक्ष देश को तलाश लेंगे। उन्होंने कहा कि मकबूल फिदा हुसैन (मशूहर पेंटर एमएफ हुसैन) को भी ऐसा करना पड़ा था, और अब हासन भी ऐसा ही करेगा।

कमल हासन ने साफ किया कि यदि देश छोड़ने की नौबत आती है, तो भी वह अपने लोगों (प्रशंसकों) से नाराज नहीं हैं और तमिल में ही फिल्में बनाते रहेंगे। उन्होंने कहा कि मैं सिर्फ एक कलाकार हूं और किसी भी धर्म को दोष नहीं दे रहा हूं। मुझे उम्मीद है कि मेरे प्रशंसक शांति बनाए रखेंगे, जिनमें बहुत-से मुस्लिम भी शामिल हैं। मैंने मुस्लिमों को अपनी फिल्म इसीलिए दिखाई थी, क्योंकि वे मेरे भाई हैं।

हासन ने कहा, मैंने इस फिल्म के लिए अपनी सारी जायदाद गिरवी रख दी है और रिलीज में देरी के कारण अपना घर भी गंवा चुका हूं। कमल के मुताबिक फिल्म की कहानी अफगानिस्तान पर आधारित है, इसलिए वह हैरान हैं कि भारतीय मुस्लिमों को किस चीज ने आहत किया और इस बात से भी उन्हें आश्चर्य होता है कि सिर्फ एक फिल्म पूरे देश की एकता को कैसे बिगाड़ सकती है।

गौरतलब है कि मद्रास हाईकोर्ट द्वारा बैन हटाए जाने के बावजूद 'विश्वरूपम' की मुश्किलें बरकरार है, क्योंकि इस फैसले के खिलाफ तमिलनाडु सरकार की अपील पर मद्रास हाईकोर्ट में फिर सुनवाई होगी और संभवत: दोपहर बाद फैसला आएगा
 
----------------------
 
 शाहभूख खान के एक बयान पर दिल्ली तक हिल गई और कमल हसन को देश छोड़ने की नौबत आ गई ?
क्योंकि वह हिंदू है ?
क्योंकि उसके मामा ISI में नहीं है
क्योंकि उसकी फिल्म का विषय आतंकवाद है और ओ मई गोड पर कोई रोक क्यों नहीं लगाई गई ?

Monday, January 28, 2013

हिन्दू धर्म को ख़त्म करने के लिए लाखों प्रयास हुए ....


कुछ है की हस्ती मिटती नहीं हमारी ,,,हिन्दू धर्म को ख़त्म करने के लिए लाखों प्रयास हुए लेकिन आज भी यह चट्टान की तरह सीने उठाये खड़ा है,क्या आप जानते हैं हमारे पूर्वजों ने इसके लिए कितनी क़ुरबानी दी ..शररे कृष्णा जन्म भूमि को बचाने के लिए आत्मोत्सर्ग देने वालों की एक छोटी सी गौरव गाथा ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,अहमद शाह अब्दाली (१७५७ और १७६१)

मथुरा और वृन्दावन में जिहाद (१७५७)







”किसान जाटों ने निश्चय कर लिया था कि विध्वंसक, ब्रज भूमि की पवित्र राजधानी में, उनकी लाशों पर होकर ही जा सकेंगे… मथुरा के आठ मील उत्तर में। २८ फरवरी १७५७ को जवाहर सिंह ने दस हजार से भी कम आदमियों के साथ आक्रमणकारियों का डटकर, जीवन मरण की बाजी लगाकर, प्रतिरोध किया। सूर्योदया के बाद युद्ध नौ घण्टे तक चला और उसके अन्त में दोनोंओर के दस बारह हजार पैदल योद्धा मर गये, घायलों की गिनती तो अगणनीय थी।”

”हिन्दू प्रतिरोधक अब आक्रमणकारियों के सामने अब बुरी तरह धराशायी हो गये। प्रथम मार्च के दिन निकलने के बहुत प्रारम्भिक काल में अफगान अश्वारोही फौज, बिना दीवाल या रोक वाले और बिना किसी प्रकार का संदेह करने वाले, मथुरा शहर में फट पड़ी। और न अपने स्वामियों के आदेशों से, और न पिछले दिन प्राप्त कठोरतम संघर्ष वा प्रतिरोध के कारण, अर्थात दोनों ही कारणों से, वे कोई किसी प्रकार की भी दया दिखाने की मनस्थिति में नहीं थे। पूरे चार घण्टे तक, हिन्दू जनसंखया का बिना किसी पक्षपात के, भरपूर मात्रा में, दिलखोलकर, नरसंहार व विध्वंस किया गया। सभी के सभी निहत्थे असुरक्षित व असैनिक ही थे। उनमें से कुछ पुजारी थे… ”मूर्तियाँ तोड़ दी गईं और इस्लामी वीरों द्वारा, पोलों की गेदों की भाँति, ठुकराई गईं”, (हुसैनशाही पृष्ठ ३९)”

”नरसंहार के पश्चात ज्योंही अहमद शाह की सेनायें मथुरा से आगे चलीं गई तो नजीब व उसकी सेना, वहाँ पीछे तीन दिन तक रही आई। असंखय धन लूटा और बहुत सी सुन्दर हिन्दू महिलाओं को बन्दी बनाकरले गया।” (नूर १५ b ) यमुना की नीली लहरों ने उन सभी अपनी पुत्रियों को शाश्वत शांति दी जितनी उसकी गोद में, उसी फैली बाहों को दौड़कर पकड़ सकीं। कुछ अन्यों ने, अपने सम्मान सुरक्षा और अपमान से बचाव के अवसर के रूप में, निकटस्थ, अपने घरों के कूओं में, कूदकर मृत्यु का आलिंगन कर लिया। किन्तु उनकी उन बहिनों के लिए, जो जीवित तो रही आईं, उनके सामने मृत्यु से भी कहीं अधिक बुरे भाग्य से, कहीं कैसी भी, सुरक्षा नहीं थी। घटना के पन्द्रह दिन बाद एक मुस्लिम प्रत्यक्षदर्शी ने विध्वंस हुए शहर के दृश्य का वर्णन किया है। ”गलियों और बाजारों में सर्वत्र वध किये हुए व्यक्तियों के श्रि रहित, धड़, बिखरे पड़े थे। सारे शहर में आग लगी हुई थी। बहुत से भवनों को तोड़ दिया गया था। जमुना में बहने वाला पानी, पीले जैसे रंग का था मानो कि रक्त से दूषित हो गया हो।”

”मथुरा के विनाश से मुक्ति पा, जहान खान आदेशों के अनुसार देश में लूटपाट करता हुआ घूमता फिरा। मथुरा से सात मील उत्तर में, वृन्दावन भी नहीं बच सका… पूर्णतः शांत स्वभाव वाले, आक्रामकताहीन, सन्त विष्णु भक्तों पर, वृन्दावन में सामान्यजनों के नरसंहार का अभ्यास किया गया (६ मार्च) उसी मुसलमान डाइरी लेखक ने वृन्दावन का भ्रमण कर लिखा था; ”जहाँ कहीं तुम देखोगे शवों के ढेर देखने को मिलेंगे। तुम अपना मार्ग बड़ी कठिनाई से ही निकाल सकते थे क्योंकि शवों की संखया के आधिक्य और बिखराव तथा रक्त के बहाव के कारण मार्ग पूरी तरह रुक गया था। एक स्थान पर जहाँ हम पहुँचे तो देखा कि…. दुर्गन्ध और सड़ान्ध हवा में इतनी अधिक थी कि मुँह खोलने और साँस लेना भी कष्ट कर था”
(फॉल ऑफ दी मुगल ऐम्पायर-सर जदुनाथ सरकार खण्ड प्ट नई दिल्ली १९९९ पृष्ठ ६९-७०)

अब्दाली का गोकुल पर आक्रमण

”अपन डेरे की एक टुकड़ी को गोकुल विजय के लिए भेजा गया। किन्तु यहाँ पर राजपूताना और उत्तर भारत के नागा सन्यासी सैनिक रूप के थे। राख लपेटे नग्न शरीर चार हजार सन्यासी सैनिक, बाहर खड़े थे और तब तक लड़ते रहे जब तक उनमें से आधे मर न गये, और उतने ही शत्रु पक्ष के सैनिकों की भी मृत्यु हुई। सारे वैरागी तो मर गये, किन्तु शहर के देवता गोकुल नाथ बचे रहे, जैसा कि एक मराठा समाचार पत्र ने लिखा।”
(राजवाड़े प ६३, उसी पुस्तक में, पृष्ठ ७०-७१)
 — with Dheerendra GuptaGuddu TiwariRaj Dwivediरमाशंकर शर्माSanjay Singh ChauhanRajdeep SinghRamakant ChaturvediShailendra TripathiShishir TiwariAjay Singh RaghuwanshiRtn Baldev Singh ChughArvind TiwariYogendra ShuklaMohammad Imran SaudagarRakesh SharmaRavin Singh PariharRajesh DhamiAjeet PandeyAbhishek Bahadur Singh,Atul Singh PariharAnurag ShuklaVishnukant TripathiJeevesh ChaubeyKaran TripathiAnkit DubeyAbhishek Pandey AbvpAtul Gautam Dabbu NagodAjeet SinghpatelMayank Deco SinghRaj AaryaAlakh NiranjanAnil Kumar Patel,Acharya Jairam JI MaharajVashu M MishraAchla SharmaEr Brajesh Arora,Akhilesh PandeyKamlesh ChaubeyAbhinav Tripathi RanjanVindhya Ki Aawaz,Dinesh KaushalAnurag BajpaiNiranjan SharmaRajesh SahniRss Kumar Gaurav,Anupam MishraAakash Chaudhary and Pradeep Kumar Bhatnagar.


  • Atul Bicchewar देवतारी त्‍याला कोन मारी
  • Sant Kl Anand ATMA KI AMRTA KA JEEVAN SANTAN HOTA HAI..VASHV MEIN JO ATMA KA ANUBAV SA JEETA HA VO SANTAN DHRAMI HOTA HA..HINDUSTAN SANTAN DHRAM KA VISHV GURU HA...RAYGA ..AS LAYAY SANTAN SANSKRITI KA PRIVARTAN TO NAVEENTA BANAY RAKNEY KA LAYA HOGA HI....NASH NI HOSAKTA HA..
  • Venktesh Pandit १७३९ में, जब नादिर शाह ने दिल्ली पर आक्रमण किया था, तो अहमदशाह अब्दाली उसका सेनापति था। इस प्रकार अहमदशाह अब्दाली नादिरशाह की फौज की लुटेरा संस्कृति से पूरी तर वाकिफ था। उसे भारत के शासकों की कमजोरियों के बारे में जानकारी भी थी। वह भारत की सामाजिक व राजनैतिक संरचना से भली भांति परिचित था
    19 hours ago · Like · 5
  • Venktesh Pandit अफगान शासक.....अहमद शाह अब्दाली यानि जिसे अहमद शाह दुर्रानी भी कहा जाता है, सन 1748 में नादिरशाह की मौत के बाद अफगानिस्तान का शासक और दुर्रानी साम्राज्य का संस्थापक बना। उसने भारत पर सन 1748 से सन 1758 तक कई बार चढ़ाई की और अपने दल बल के साथ रक्तपात और मूल्यवान सम्पदा की लूटपाट करता रहा। उसने अपना सबसे बड़ा हमला सन 1757 में जनवरी माह में दिल्ली पर किया। उस समय दिल्ली का शासक आलमगीर (द्वितीय) था। वह बहुत ही कमजोर और डरपोक शासक था। उसने अब्दाली से अपमानजनक संधि की जिसमें एक शर्त दिल्ली को लूटने की अनुमति देना था। अहमदशाह एक माह तक दिल्ली में ठहर कर लूटमार करता रहा। वहां की लूट में उसे करोड़ों की संपदा हाथ लगी थी।
    19 hours ago · Like · 3
  • Venktesh Pandit अब्दाली द्वारा मथुरा और ब्रज की भीषण लूट बहुत ही क्रूर और बर्बर थी। दिल्ली लूटने के बाद अब्दाली का लालच बढ़ गया। उसने दिल्ली से सटी आसपास के छोटे छोटे राज्य के जाटों की रियासतों को भी लूटने का मन बनाया। ब्रज पर अधिकार करने के लिए उसने जाटों और मराठों के विवाद की स्थिति का पूरी तरह से फायदा उठाया। अहमदशाह अब्दाली पठानों की सेना के साथ दिल्ली से आगरा की ओर चला। अब्दाली की सेना की पहली मुठभेड़ जाटों के साथ बल्लभगढ़ में हुई। वहां जाट सरदार बालूसिंह और सूरजमल के ज्येष्ठ पुत्र जवाहर सिंह ने सेना की एक छोटी टुकड़ी लेकर अब्दाली की विशाल सेना को रोकने की कोशिश की। उन्होंने बड़ी वीरता से युद्ध किया पर उन्हें शत्रु सेना से पराजित होना पड़ा।
    19 hours ago · Like · 4
  • Venktesh Pandit अहमद शाह अब्दाली की सेना के आक्रमणकारियों ने तब न केवल बल्लभगढ़ और उसके आस-पास लूटा और व्यापक जन−संहार किया बल्कि उनके घरों खेतो और शत्रुओं को भी गाजर मूली की तरह काट डाला। उसके बाद अहमदशाह ने अपने दो सरदारों के नेतृत्व में 20 हजार पठान सैनिकों को मथुरा लूटने के लिए भेज दिया। उसने उन्हें आदेश दिया− मेरे जांबाज बहादुरो! मथुरा नगर हिन्दुओं का पवित्र स्थान है। उसे पूरी तरह नेस्तनाबूद कर दो। आगरा तक एक भी इमारत खड़ी न दिखाई पड़े। जहां-कहीं पहुंचो, कत्ले आम करो और लूटो। लूट में जिसको जो मिलेगा, वह उसी का होगा। सभी सिपाही लोग काफिरों के सिर काट कर लायें और प्रधान सरदार के खेमे के सामने डालते जाएं। सरकारी खजाने से प्रत्येक सिर के लिए पांच रुपया इनाम दिया जायगा। यह थी अहमदशाह अब्दाली की क्रूर नीयत और नीति।
    19 hours ago · Like · 4
  • Venktesh Pandit दिल्ली,गाजियाबाद.. पलवल, हापुड़ तथा मेरठ को लूटने के बाद सेना का अगला पड़ाव ब्रजभूमि,गोकुल और मथुरा की ओर था। इसके बाद अब्दाली का आदेश लेकर सेना मथुरा की तरफ चल दी। मथुरा से लगभग 8 मील पहले चौमुहां पर जाटों की छोटी सी सेना के साथ उनकी लड़ाई हुई। जाटों ने बहुत बहादुरी से युद्ध किया लेकिन दुश्मनों की संख्या अधिक थी, जिससे उनकी हार हुई। उसके बाद जीत के उन्माद में पठानों ने मथुरा में प्रवेश किया। मथुरा में पठान भरतपुर दरवाजा और महोली की पौर के रास्तों से आए और मार−काट और लूट−पाट करने लगे।
    19 hours ago · Like · 3
  • Venktesh Pandit अहमदशाह अब्दाली की नृशंश फौज ने जब दिल्ली के आसपास के देहातों में किसानो के घरों और अन्न भण्डार की लूट पाट की तो वे अपनी सेना की रसद के लिए।गेहूं, दाल,चावल, आटा, घी, तेल, गुड़, नमक और शाक सब्जी तक बोरों और कट्टों में भर कर ले गए... यही नहीं उन्होंने उनके पशुओं और जानवरों तक को नहीं छोडा, उनके घोडे खच्चर हाथी और भैंसे तथा बैलगाड़ी उस सामान को ढोने के काम आए जो उन्होंने लूटपाट करके एकत्रित की थी। बाकी गाय भैसों सहित भेड़ बकरियों का कत्ल करके उनका फौज ने आहार बना लिए और उनकी खाल तक को बांध कर अफगानिस्तान ले गये ताकि फौजियों के लिए उम्दा जूते बन सकें।
    19 hours ago · Like · 3
  • Venktesh Pandit ब्रजभूमि में वहां के सशस्त्र नागा साधु सैनिकों के मुबाबले पर आए परन्तु मुठठी भर साधु क्या कर लेते। बचाव के लिए आए साधुओं के साथ अब्दाली की सेना ने खूब मारकाट की और−वृन्दावन में लूट और मार-काट करने के बाद अब्दाली भी अपनी सेना के साथ मथुरा आ पहुँचा। ब्रज क्षेत्र के तीसरे प्रमुख केन्द्र गोकुल पर भी उसकी नजर थी। वह गोकुल को लूट-कर आगरा जाना चाहता था। उसने मथुरा से यमुना नदी पार कर महावन को लूटा और फिर वह गोकुल की ओर गया। वहां पर सशस्त्र नागा साधुओं के एक बड़े दल ने यवन सेना का जम कर सामना किया। उसी समय अब्दाली की फौज में हैजा फैल गया, जिससे अफगान सैनिक बड़ी संख्या में मरने लगे। इस वजह से अहमदशाह अब्दाली किसी अज्ञात दैवी प्रकोप की दहशत के कारण वापिस लौट गया। मथुरा की लूटपाट के दौरान उसके सलाहकारो ने यही अनुमान लगाया कि यह हिन्दुओं की पवित्र नगरी है और कंस को मारने वाले श्रीकृष्ण इसकी रक्षा करते हैं।
    19 hours ago · Like · 4
  • Venktesh Pandit इस प्रकार नागाओं की वीरता और दैवी मदद से गोकुल लूट-मार से बच गया। गोकुल−महावन से वापसी में अब्दाली ने फिर से वृन्दावन में लूट की। मथुरा−वृन्दावन की लूट में ही अब्दाली को लगभग 12 करोड़ रुपये की धनराशि प्राप्त हुई, जिसे वह तीस हजार घोड़ो, खच्चरों और ऊटों पर लाद कर ले गया। वहां की कितनी ही जवान,विधवा और अविवाहित स्त्रियों को भी वह जबरन अफगानिस्तान ले गया। आगरा में लूट के बाद अब्दाली की सेना ब्रज में तोड़-फोड़, लूट-पाट और मार-काट करती आगरा पहुंची। उसके सैनिकों ने आगरा में जबर्दस्त लूट-पाट और मार−काट की। यहां उसकी सेना में दोबारा हैजा फैल गया और वह जल्दी ही लौटने की तैयारी करने लग गया और लूट की धन−दौलत अपने देश अफगानिस्तान ले गया। कई मुसलमान लेखकों ने लिखा है− अब्दाली द्वारा दिल्ली और और मथुरा के बीच ऐसा भारी विध्वंस किया गया था कि आगरा−दिल्ली सड़क पर झोपड़ी भी ऐसी नहीं बची थी, जिसमें एक आदमी भी जीवित रहा हो। अब्दाली की सेना के आवागमन के मार्ग में सभी स्थान ऐसे बर्बाद हुए कि वहां दो सेर अन्न तक मिलना कठिन हो गया था।
    19 hours ago · Like · 3
  • Venktesh Pandit धर महाराष्ट्र में मराठों का प्रभुत्व मुगल-साम्राज्य की अवनति के पश्चात मथुरा पर भी बाद में मराठों का प्रभुत्व स्थापित हुआ और इस नगरी ने सदियों के पश्चात चैन की सांस ली। 1803 ई. में लॉर्ड लेक ने सिंधिया को हराकर मथुरा-आगरा प्रदेश को अपने अधिकार में कर लिया। उसके बाद से भारत की आजादी 1947 तक यह क्षेत्र अंग्रेजी हकूमत के अधीन रहा और इस देश ने काफी उतार चढाव देखे। यह भी एक तथ्य है ऐसे अनेक विदेशी दरिन्दों की लूटपाट और ��रसंहार के बावजूद मध्य भारत का यह इलाका सदा जीवन्त रहा और अपनी रक्षा और मान मर्यादा के लिए यहां की जनता ने मरते दम तक संघर्ष किया।
    19 hours ago · Like · 4
  • Lav Kush Pandey इन कुतो का बस चालता तो पूरा भारत ही ले जाते 
    देश में कुतो के द्वारा कुते रूपी समाज बनाना चाहते पर अब नहीं होने देगे कुते समाज की स्थापना 
    जय हिन्द जय भारत
    18 hours ago · Like · 3
  • Rakesh Sharma प्रिय व्यँकटेशबन्धु जी सत्य इतिहास से अनजान लोगोँ को जागरूक करने का यह कार्य सतत्‌ जारी रखो भाई । आप साधुवाद के पात्र हैँ ।
    18 hours ago · Like · 4
  • Sant Kl Anand ALL RIGHT...
  • Vashu M Mishra Is sachae ko batane k liye pandit ji aapka koti-koti dhanyawad..
    Jai shri ram....
    14 hours ago via mobile · Like · 2
  • Akhilesh Pandey अब अनुमान लगाइये कि भारत को क्यो सोने की चिडया कहते थे और आज भी है ...............................वक्त बदला लूट का तरीका भी बदला आज का लूट ब्यापार और घोटालो का रूप ले लिया है! और हम लूट के बाद ही जागरुख होते है क्योकि यही हमारी परंपरा है उदाहरण आज...See More
    12 hours ago · Like · 2
  • Narinder Rana dukhad history.

    lekin hame inhi se sikhna h
    5 hours ago via mobile · Like · 1
  • Rakesh Sharma प्रिय मित्रोँ अगर इतिहास की कुछ थोडी भी सच्चाई जानना चाहते हो कि कैसी कैसी विपत्तियाँ हमारे पूर्वजोँ पर आई हैँ । और मुसलमानोँ ने कितनी शाँति और प्रेम का व्यवहार हमारे साथ किया है ? तो श्री पुरूषोत्तम नागेश ओक जी द्वारा लिखित पुस्तक ' भारत मे मुस्लिम सुल्तान ' भाग एक व दो अवश्य पढेँ ।
  • Akhtar Ali muslims ke barey me badi gandi shoch hai
  • Lav Kush Pandey akhtar ali
    मुस्लिमो ने खुद ही येसा सोचने और करने पर मजबूर किया है 
    मुस्लिमो ने भारत वर्ष में कई बार हमला कर हमारी संस्कृति को नुकसान पहुचाया है और कितना तो लुटा है जीतने भी मुग़ल शासक थे सभी ने लुट कट की है और अज के समय पर मुस्लिमो के दुआर ही समय समय पर अपना रंग देखते रहते है
    10 minutes ago · Edited · Like · 1