Sunday, January 13, 2013

ओवासी के बयानो के मायने

मेरे कानों में एक घटिया नेता और झूठे

खैख्वाह अकबरूद्दीन औवेसी की कड़वी भाषा रह रह कर

गूंज रही है, यू ट्यूब पर जब से मैंने उस आस्तीन के सांप

का जहर उगलता हुआ एक घण्टे का भाषण सुना तब से

मेरा रोम-रोम विद्रोह किये हुये है, मेरा ही नहींबल्कि तमाम

वतनपरस्त और इंसानियतपरस्त लोगों का खून खौल

रहा है, खौलना भी चाहिये क्योंकि कोई भी हरामजादा गीदड़

मुल्क के किसी भी कोने में अपने द्वारा जुटाई गई किराये

की भीड़ के सामने शेर बनकर दहाड़ने की कोशिश करें तो उसे

बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए, अकबरूद्दीन

औवेसी कहता है - मैं सिर्फ मुस्लिम परस्त हूं, उसे अजमल

कसाब को फांसी दिये जाने का सख्त अफसोस है, वह

टाइगर मेनन जैसे आतंकी का हमदर्द है, वह मुम्बई के बम

धमाकों को जायज ठहराता है, देश के मुम्बई संविधान,

सेकुलरिज्म और बहुलतावादी संस्कृति की खिल्ली उड़ता है।

कहता है, हम तो दफन होकर मिट्टी में मिल जाते है मगर

हिन्दू जलकर फिजा में आवारा की तरह बिखर जाते है,वह

देश के दलितों व आदिवासियों को दिये गये रिजर्वेशन पर

सवाल खड़े करता है और इन वर्गों की काबिलियत पर

भी प्रश्न चिन्ह लगाता है।

औवेसी की नजर में भारत जालिमों का मुल्क है,

दरिन्दों का देश है, जहां पर मुसलमान सर्वाधिक सताये

जा रहे है, उसने गुजरात से लेकर आसाम तक के उदाहरण

देते हुये आदिलाबाद की सभा में मौजूद

लोगों को उकसाया कि हमसे मदद मत मांगों खुद ही हिसाब

बराबर कर दो, बाद में हम सम्भाल लेंगे।

इतना ही नहीं बल्कि हिन्दुस्तान और हिन्दुस्तान

की सेकुलर अवाम से भी औवेसी को बहुत सारे जवाब

चाहिये, बहुत सारे हिसाब चाहिए,

अयोध्या का बदला चाहिये, गुजरात का प्रतिरोध चाहिये,

खुलेआम खून खराबा चाहिये, जब यह रक्तपात

हो जायेगा तब वह सेकुलर होने के बारे में सोचेगा!

नहीं तो अभी की तरह कम्युनल ही बना रहेगा, हद तो यह है

कि देश के खिलाफ जंग छेड़ने की धमकी देते हुये वह मुल्क

के अन्य धर्मों के लोगों को ‘‘नामर्दों की फौज’’ कहता है,

और राम को राम जेठमलानी के बहाने इतिहास का ’सबसे

गंदा आदमी बताता है जो औरतों का एहतराम

नहीं करता था।’

औवेसी की ख्वाहिश है कि महज 15 मिनट के लिये इस

मुल्क से पुलिस हटा ली जाये तो वो हजार बरस के इतिहास

से ज्यादा खून खराबा करने की ताकत रखता है और देश के

25 करोड़ मुसलमान इस देश काइतिहास बदलने

की कुव्वत! बकौल औवेसी तबाही और बर्बादी हिन्दुस्तान

का मुस्तकबिल बन जायेगा। ऐसा ही प्रलाप, भाड़े के

टट्टूओं की भीड़ में, अल्लाह हो अकबर के उन्मादी नारों के

बीच में आंध्रप्रदेश असेम्बली के इस विधायक ने किया,

उसने पूरे मुल्क को एक बार नहीं कई-कई बार ललकारा,

जिसकी जितने कड़े शब्दों में निन्दा की जाये वह कम है।

औवेसी को अपना ‘एक कुरान, एक अल्लाह, एक पैगम्बर,

एक नमाज,‘ होने का भी बड़ा घमण्ड है, उसके मुताबिक

बुतपरस्तों के तो हर 10 किलोमीटर पर भगवान और

उनकी तस्वीरें बदल जाती है, इस मानसिक दिवालियेपन

का क्या करें, कौन से पागलखाने में इस पगलेट को भेजे

जो उसे बताये कि ‘तुम्हारा एक तुम्हें मुबारक, हमारे अनेक

हमें मुबारक’ लेकिन औवेसी, हबीबे मिल्लत, पैगम्बर

की उम्मत, यह तुम्हारा प्राब्लम है कि तुम्हारे पास सब

कुछ ‘एक’ ही है, क्योंकि बंद दिमाग न तो महापुरूष

पैदा करते है और न ही दर्शन, न पूजा पद्धतियां विकसित

होती है और न ही ढे़र सारी किताबें मुकद्दस। वे बस एक से

ही काम चलाते हैं बेचारे, अनेक होने के लिये दिमाग

की जरूरत होती है, धर्मान्ध, कट्टरपंथी लोगों का मस्तिष्क

ठप्प हो जाता है, वे नयी सोच, वैज्ञानिक समझ, तर्क

और बुद्धि विकसित ही नहीं कर पाते है, खुद नहीं सोचते,

सिर्फ उनका अल्लाह सोचता है, वे सिर्फ मानते है, जानते

कुछ भी नहीं, इसलिये नया कुछ भी नहीं होता,

सदियों पुरानी बासी मान्यताएं दिमाग घेर लेतीहै और

हीनता से उपजी कट्टरता लोगों को तालिबानी बना देती है।

और अकबरूद्दीन औवेसी, तुम शायद भूल रहे हो कि सब

कुछ ‘एक’ होने के बावजूद तुम्हारे हम बिरादर एक नहीं है।

मैं पूछता हूं अकबर, तुम्हारा अल्लाह एक, पैगम्बर एक,

नमाज एक, कुरान एक तो फिर मुसलमान एक क्यों नहीं?

क्यों पाकिस्तान में शियाऔर सुन्नी लड़ रहे है, क्यों?

अहमदिया काटे जा रहे है? क्यों इस्माइली अपनी पहचान

छुपा रहे हैं, क्यों निजारी, क्यों आगाखानी, क्यों अशरफी,

क्यों अरबी और क्यों चीनी मुसलमान अपने अपने तौर

तरीकों, मस्जिदों, अजानों के लिये संघर्ष कर रहे हैं,अरे

तुम्हारा सब कुछ एक है तो मस्जिदें अलग-अलग क्यों है?

मजार पूजकों को बहाबी क्यों गरिया रहे है? शियाओं

की मस्जिदों में क्यों बम फोड़ रहे हो और क्यों इतने सारे

मुल्कों में तकसीम हो। शर्म करो औवेसी, तुम्हारे कई सारे

कथित पाक, अल्लाह की शरीयत पर चलने वाले मुल्क पूरे

विश्व में भीख का कटोरा लिये खड़े हैं, पाकिस्तान,

अफगानिस्तान, इराक, पलीस्तीन क्या-क्या गिनाऊं हर

जगह मुसलमान पशेमान और परेशान है? भारत पाक और

बांग्लादेश का मुसलमान जातियों में बंटा हुआ है, अरे हिम्मत

है तो स्वीकार करो कि तुम्हारे एक होने के तमाम दावों के

बावजूद तुम्हारी मस्जिदें, रस्मों रिवाज, पहनावें, अजान

और कब्रस्तान तक अलग-अलग है। मुल्क-ए-हिन्दुस ­्तान

से लड़ने की सोचने से पहले खुद से लड़ो औवेसी, तुम्हारे

सालार ने तुम्हें यह नेक सलाहियत नहीं दी कि नरक

जैसी जिन्दगी जी रहे गरीब

गुरबां मुसलमानों की बहबूदगी और तरक्की के लिये तुम

काम करो, शायद न दी होगी, हम दे देते हैं।

तुम्हें मुम्बई के बम धमाके जायज लगे, क्योंकि यह

क्रिया की प्रतिक्रिया थी, फिर उन

लोगों का क्या जो गुजरात को गोधरा की प्रतिक्रिया कहते

है, तुम्हें टाइगर मेनन और अजमल कसाब जैसे

आतंकियों की इतनी चिंता है, निर्दोष और निरपराध

भारतीयों की जान की तुम्हारी नजरों में कोई कीमत नहीं,

तुममें हमें इंसानियत नहीं हैवानियत नजर आती है, जो खून

खराबे की धमकी दे ऐसे आस्तीन के सांपों के फन

बिना देरी किये हमें पूरी बेहरमी से कुचल देने चाहिये,

क्योंकि ये सांप हमारे मुल्क, हमारी जम्हूरियत और

हमारी गंगा जमुनी तहजीब के लिये खतरा है, हजारों बरस

बाद आज यह मुल्क रहने लायक जगह बना है, उस जगह

को औवेसी जैसे लोग खत्म करें इससे पहले हमे ऐसे

लोगों का इलाज करना होगा।

औवेसी को एससी/एसटी को दिये गये रिजर्वेशन से

बड़ी कोफ्त है, उसे इससे काबलियत का नाश होते लगता है

और वह तभी आरक्षण का पक्षधर

बनेगा जबकि मुसलमानों को भी रिजर्वेशन मिले,

अकबरूद्दीन तुम जिस काबिलियत का बेसुरा राग निकालते

हो, वह तो इस मुल्क के 25 करोड़ दलितों और

आदिवासियों के मुकाबले तुम में कुछ भी नहीं है,

ऐसी मेहनतकश कौमें विश्व में दूसरी नहीं जिन पर

कभी तुमने, कभी उनने, सबने अत्याचार किये, फिर भी वे

जिन्दा हैं क्योंकि उनमेंजिजीविषा है, जीने की अदम्य

इच्छा है, वे किसी पूजा स्थल में घण्टियां नहीं बजाते, घुटने

टेककर हाथ नहीं फैलाते, वे किन्हीं आसमानबापों और

किताबों से मदद नहीं मांगते, वे अपने परिश्रम से

अपनी तकदीर खुद बनाते हैं, उन्होंने इस मुल्क को कला,

संस्कृति, साहित्य, नृत्य, संगीत, गणंतत्र, बहुलतावाद,

प्रकृति के साथ समन्वयन, शांति, करूणा और

भाईचारा दिया है, तुम जैसे कूढमगज लोगों ने तो ये शब्द

सुने भी नहीं होंगे, उन दलितों और

आदिवासियों को ललकारते हो, तुम शायद भूल रहे हो कि देश

के इन मूल निवासियों ने तुम्हारे पूर्वजों की तरहअलग

मुल्क मांगने की सौदेबाजीनहीं की, इस देश को तोड़ा नहीं,

छोड़ा नहीं, इसे रचा है, इसे गढ़ा है, इसलिए आरक्षण

जैसा सामाजिक उपचार कोई खैरात

नहीं दलितों आदिवासियों का अधिकार है, उनसे

मुकाबला मत करो वर्ना मिट जाओगे औवेसी, हम

किसी अल्लाह, ईश्वर, गाड, यहोवा में यकीन नहीं करते है,

कोई वेद, पुरान, कुरान, बाइबिल हमारा मार्गदर्शन

नहीं करती, हम अपनी तकरीर और तदबीर खुद रचते है,

बेहतर होगा कि इस मुल्क के मूल निवासियों को कभी मत

छेड़ो, वर्ना वो हश्र करेंगे कि तुम जैसे देशद्रोहियों और

संविधान विरोधियों की रोम-रोम कांपने लगे, हमें मत

ललकारों, हमें मत छेड़ो और ये गीदड़ भभकियां अपने तक

सीमित रखो, आईन्दा दलितों, आदिवासियों के रिजर्वेशन

पर कुछ भी कहने से बचो तो ही तुम्हारे हक में

अच्छा होगा।

औवेसी, तुम्हें अपने मुसलमान होने पर बड़ा नाज है,

हैदराबाद में आने पर बता देने की धमकियां देते हो,

जरा हैदराबाद से बाहर भी निकलों, हिन्दुस्तान के हजार

कोनों में तुम्हें आम हिन्दुस्तानी कभी भी सबक सिखा देंगे,

क्योंकि तुम जैसे कट्टरपंथी की इस मुल्क को कोई जरूरत

नहीं है, तुम्हारे बिना यह मुल्क और अधिक अच्छा होगा।

रही बात मुल्क-ए-हिन्दुस ­्तान को बर्बाद करने की तो तुम

जैसे लोगों से कुछ होने वाला नहीं है, इतनी ही ताकत

थी तो निजाम हैदराबाद के वक्त फौज के होते दिखा देते

मर्दानगी, नहीं दिखा पाये, अब भी नहीं दिखा पाओगे,

भारत कभी मिट नहीं सकता यह दाउद इब्राहीमों, टाइगर

मेननों, अजमल कसाबों और अकबररूद्दीन औवेसियों के

रहमो करम पर नहीं बना है, इसलिये मुल्क की तबाही और

बर्बादी के सपने मत पालना, खून खराबे की धमकियां मत

देना, तुम्हारे हक में यही अच्छा होगा कि संविधान के दायरे

में रहो, कोई शिकायत है तो लोकतांत्रिक संघर्ष करो,

भारतीय होने का गर्व करो,

क्योंकि किसी भी इस्लामी कंट्री में तो तुम्हें कोई एमएलए

भी नहीं बनायेगा किसी गली मौहल्ले में पड़े मिलोगे,

यही एक ऐसा देश है जिसमें सब लोग आराम में है, जी रहे है,

अपनी-अपनी बकवास भी कर रहे हैं, फिर भी ऐश कर रहे

हैं, किसी और मुल्क में होकर उस मुल्क को चुनौती देते

तो फिर तुम सिर्फ यू-ट्यूब पर ही नजर आते, मगर यह

अच्छा देश है, सभ्य और सज्जन लोगों का देश है, कई बार

तो लगता है कि डरपोक और कायरों का देश है, जिसमें तुम

जैसे विषैले नाग फन उठाकर फूंफकारने के बावजूद

भी मौजूद है।

अकबरूद्दीन औवेसी, बेशक अपने लोगों के हित में आवाज

उठाओ, उनके हक में लड़ो, संघर्ष करो, हम भी करते है

मगर मुल्क की तबाही के सपने मत देखना क्योंकि इस तरह

की बातें कोई भी भारतीय बर्दाश्त नहीं करेगा, ऐसा न

हो कि देश की जवानी जाग जाये और तुम जैसे

कट्टरपंथियों, धर्मान्धों और फसादपरस्तों को सड़कों पर

दौड़ा-दौड़ा कर निपटें। काश, वह दिन न आये, लेकिन

कभी भी आ सकता है बस इतना याद रखना।

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