Thursday, December 27, 2012

 क्या लड़की के बलात्कार का विरोध करना भी धर्मनिरपेक्षता की मजबूत दीवार के लिए खतरा होता है। देश से तथाकतिथ सेकुलर लेखक जैसे -
श्री सुभाष गातड़े
सुश्री अरुन्धिता रॉय।
श्री महेश भट्ट
श्रीमति शबाना आजमी
श्री मति तीस्ता सीतलवाद
श्री तरुण तेजपाल
श्रीमती अरुणा रॉय
श्रीमती अनु आगा
श्री एन राम
श्री रामचंद गुहा
श्री सीताराम येचुरी
सुश्री मेधा पाटेकर
श्री उदित राज
श्री जॉन दयाल
श्री हर्ष मंदर
यह लोग तो वो लोग है जी किसी पार्टी विशेष से जुड़े नहीं है (जहाँ तक मेरी जानकारी है), फिर क्यूँ अपनी आवाज इस मुद्दे पर यह नहीं उठाते। या सिर्फ यह "दंगे" स्पेसलिस्ट है । केवल और केवल इनका काम एक वर्ग विशेष का ही विरोध करना है। सरकार का अन्याय के लिए विरोध करना इनकी प्राथमिकता नहीं है। क्या हो यह ही कृत्य यदि किसी धर्म विशेष ने किसी धर्म विशेष के साथ कर दिया होता। क्यां कोई विशेष राजनितिक दल के आकाओं को खुश करना ही इनकी लेखनी का उदेश्ये है। आका तो एक विभाग को दुसरे विभाग से, जनता के एक वर्ग को दुसरे से, धर्म को एक से दुसरे धर्म को लड़ाने में परांगत है। तो इन तथाकथित सेक्युलर लेखको ने अपनी कलम और जबान भी सत्ता के ठेकेदारों को गिरवी रख दी है।

क्या यह भाड़े के टट्टू है जो अपनी सारी  उर्जा झूटे  "सेकुलारिसम" के लिए बचा कर रखते है। परन्तु सेक्युलर लोगो के उत्पीडन पर चुप्पी। सिर्फ यह लोग सेक्युलर व्यवस्था चाहते है या व्यवस्था में रहेने वाले लोगो का भी समर्थन करेंगे। क्या सेक्युलर देश ईट  और गारे का बनायेंगे। देश की  गरीब लड़की जो बलात्कार की शिकार है जिसके लिए हिन्दुस्तान की आम जनता लाठी और गोली खा रही है। उनके लिए इनके पेन में सियाही नहीं है।

अमन कि आशा वाले सिर्फ देश के बहार ही अमन चाहते है देश के अन्दर अमन की उनकी कोई चाह नहीं है।

क्या बलात्कार पीडिता के लिए न्याय मांगना और स्त्री सुरक्षा के लिए अच्छे कानून की गुहार करना राजनीती है। या इसके खिलाफ आवाज न उठाना राजनीती है और झूटे सेकुलारिसम की जड़ो को मजबूत करना है।

बलात्कार पीड़ित लड़की न हिन्दू है  और न मुसलमान तो फिर इस बात पर यह तथाकथित बुद्धिजीवी अपने कलम क्यूँ नहीं घिसते ?

मित्रो यदि मुझ से कुछ नाम इन तथाकथित बुधिजीविओ में छुट गए हो तो आप जोड़ दे और प्रार्थना करे की सेक्युलर लोगो की पीड़ित जनता के लिए भी टियूब लाइट जले।

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