Tuesday, March 5, 2013

बिहार और गुजरात का सच?




ग्रॉस डोमस्टिक प्रोडक्ट (जीडीपी) या ग्रॉस डोमस्टिक इन्कम (जीडीआई) किसी भी देश के स्वास्थ्य को मापने का यह प्राथमिक हथियार है। जीडीपी किसी खास अवधि के दरमयान कुल वस्तु और सेवाओं के उत्पादन को या कुल मिलाकर देश की अर्थव्यवस्था के आकार का प्रतिनिधित्व करता है। सामान्य तौर पर जीडीपी की तुलना पिछले तिमाही की तुलना करने के दौरान करते हैं। उदाहरण के तौर पर अगर हम कहते हैं कि देश की जीडीपी में सालाना तीन फीसदी का बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है तब यह समझा जाना चाहिए कि अर्थव्यवस्था तीन फीसदी की दर से बढ़ रही है।



देश का कुल घरेलू उत्पादन, जिसमें विदेशी कंपनियों के उत्पादन भी शामिल किए जाते हैं और देश की कंपनियां जो बाहरी देशों में उत्पादन करके आमदनी हासिल कर रही है, उसे भी जीडीपी की गणना में शामिल किया जाता है। इसको तीन कारक मुख्य तौर पर प्रभावित करते हैं :- देश का कुल उत्पादन, देश की घरेलू आमदनी के स्रोत और देश की कुल आय-व्यय। हालांकि जीडीपी को प्रभावित करने वाले कारकों में सबसे प्रमुख उत्पादन ही है। उत्पादन के अन्तर्गत हर छोटी-बड़ी इकाई के कुल उत्पादन के योग को शामिल किया जाता है। आय-व्यय वाला कारक इस सिद्धान्त पर काम करता है कि हरेक व्यक्ति द्वारा खरीदा गया, जिसमें हरेक उत्पाद की कीमत शामिल की गई हो।



आय वाले कारक इस सिद्धान्त पर काम करता है कि उत्पादन वाले कारकों से प्राप्त होने वाली आमदनी को शामिल किया गया है या नहीं। जीडीपी की गणना करना बहुत मुश्किल काम होता है इसलिए हम इसे अर्थशास्त्रियों के भरोसे छोड़ देते हैं। लेकिन इसकी गणना दो तरीकों से मुख्य तौर पर की जाती है। पहला, देश के सभी लोगों ने कितना एक वित्तीय वर्ष में कमाया है,उसका कुल योग। इसको हम आमदनी पद्धति के जरिये जीडीपी की गणना करना कहते हैं। जबकि दूसरी बुनियादी पद्धति ए?सपेंडिचर या आय-व्यय का ब्यौरा का सहारा लेकर हम जीडीपी की गणना करते हैं। कुल मिलाकर, देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले हरेक कारक जीडीपी की दर को प्रभावित करते हैं।
GDP (सकल घरेलू उत्पाद) के मापन और मात्र निर्धारण का सबसे आम तरीका है खर्च या व्यय विधि (expenditure method):
GDP (सकल घरेलू उत्पाद) = उपभोग + सकल निवेश + सरकारी खर्च + (निर्यात - आयात), या,
GDP = C + I + G + (X − M).
"सकल" का अर्थ है सकल घरेलू उत्पाद में से पूंजी शेयर के मूल्यह्रास को घटाया नहीं गया है। यदि शुद्ध निवेश (जो सकल निवेश माइनस मूल्यह्रास है) को उपर्युक्त समीकरण में सकल निवेश के स्थान पर लगाया जाए, तो शुद्ध घरेलू उत्पाद का सूत्र प्राप्त होता है।
इस समीकरण में उपभोग और निवेश अंतिम माल और सेवाओ पर किये जाने वाले व्यय हैं।
समीकरण का निर्यात - आयात वाला भाग (जो अक्सर शुद्ध निर्यात कहलाता है), घरेलू रूप से उत्पन्न नहीं होने वाले व्यय के भाग को घटाकर (आयात), और इसे फिर से घरेलू क्षेत्र में जोड़ कर(निर्यात) समायोजित करता है।
अर्थशास्त्री (कीनेज के बाद से) सामान्य उपभोग के पद को दो भागों में बाँटना पसंद करते हैं; निजी उपभोग और सार्वजनिक क्षेत्र का (या सरकारी) खर्च.
सैद्धांतिक मैक्रोइकॉनॉमिक्स में कुल उपभोग को इस प्रकार से विभाजित करने के दो फायदे हैं:
निजी उपभोग कल्याणकारी अर्थशास्त्र का एक केन्द्रीय मुद्दा है। निजी निवेश और अर्थव्यवस्था का व्यापार वाला भाग अंततः (मुख्यधारा आर्थिक मॉडल में) दीर्घकालीन निजी उपभोग में वृद्धि को निर्देशित करते हैं।
यदि अंतर्जात निजी उपभोग से अलग कर दिया जाए तो सरकारी उपभोग को बहिर्जात माना जा सकता है,[तथ्य वांछित] जिससे सरकारी व्यय के विभिन्न स्तर एक अर्थपूर्ण व्यापक आर्थिक ढांचे के भीतर माने जा सकते हैं।
 — with Vikas ManiAbvp BiharsriRajnikant Sinha and 26 others.
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