Monday, January 28, 2013

हिन्दू धर्म को ख़त्म करने के लिए लाखों प्रयास हुए ....


कुछ है की हस्ती मिटती नहीं हमारी ,,,हिन्दू धर्म को ख़त्म करने के लिए लाखों प्रयास हुए लेकिन आज भी यह चट्टान की तरह सीने उठाये खड़ा है,क्या आप जानते हैं हमारे पूर्वजों ने इसके लिए कितनी क़ुरबानी दी ..शररे कृष्णा जन्म भूमि को बचाने के लिए आत्मोत्सर्ग देने वालों की एक छोटी सी गौरव गाथा ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,अहमद शाह अब्दाली (१७५७ और १७६१)

मथुरा और वृन्दावन में जिहाद (१७५७)







”किसान जाटों ने निश्चय कर लिया था कि विध्वंसक, ब्रज भूमि की पवित्र राजधानी में, उनकी लाशों पर होकर ही जा सकेंगे… मथुरा के आठ मील उत्तर में। २८ फरवरी १७५७ को जवाहर सिंह ने दस हजार से भी कम आदमियों के साथ आक्रमणकारियों का डटकर, जीवन मरण की बाजी लगाकर, प्रतिरोध किया। सूर्योदया के बाद युद्ध नौ घण्टे तक चला और उसके अन्त में दोनोंओर के दस बारह हजार पैदल योद्धा मर गये, घायलों की गिनती तो अगणनीय थी।”

”हिन्दू प्रतिरोधक अब आक्रमणकारियों के सामने अब बुरी तरह धराशायी हो गये। प्रथम मार्च के दिन निकलने के बहुत प्रारम्भिक काल में अफगान अश्वारोही फौज, बिना दीवाल या रोक वाले और बिना किसी प्रकार का संदेह करने वाले, मथुरा शहर में फट पड़ी। और न अपने स्वामियों के आदेशों से, और न पिछले दिन प्राप्त कठोरतम संघर्ष वा प्रतिरोध के कारण, अर्थात दोनों ही कारणों से, वे कोई किसी प्रकार की भी दया दिखाने की मनस्थिति में नहीं थे। पूरे चार घण्टे तक, हिन्दू जनसंखया का बिना किसी पक्षपात के, भरपूर मात्रा में, दिलखोलकर, नरसंहार व विध्वंस किया गया। सभी के सभी निहत्थे असुरक्षित व असैनिक ही थे। उनमें से कुछ पुजारी थे… ”मूर्तियाँ तोड़ दी गईं और इस्लामी वीरों द्वारा, पोलों की गेदों की भाँति, ठुकराई गईं”, (हुसैनशाही पृष्ठ ३९)”

”नरसंहार के पश्चात ज्योंही अहमद शाह की सेनायें मथुरा से आगे चलीं गई तो नजीब व उसकी सेना, वहाँ पीछे तीन दिन तक रही आई। असंखय धन लूटा और बहुत सी सुन्दर हिन्दू महिलाओं को बन्दी बनाकरले गया।” (नूर १५ b ) यमुना की नीली लहरों ने उन सभी अपनी पुत्रियों को शाश्वत शांति दी जितनी उसकी गोद में, उसी फैली बाहों को दौड़कर पकड़ सकीं। कुछ अन्यों ने, अपने सम्मान सुरक्षा और अपमान से बचाव के अवसर के रूप में, निकटस्थ, अपने घरों के कूओं में, कूदकर मृत्यु का आलिंगन कर लिया। किन्तु उनकी उन बहिनों के लिए, जो जीवित तो रही आईं, उनके सामने मृत्यु से भी कहीं अधिक बुरे भाग्य से, कहीं कैसी भी, सुरक्षा नहीं थी। घटना के पन्द्रह दिन बाद एक मुस्लिम प्रत्यक्षदर्शी ने विध्वंस हुए शहर के दृश्य का वर्णन किया है। ”गलियों और बाजारों में सर्वत्र वध किये हुए व्यक्तियों के श्रि रहित, धड़, बिखरे पड़े थे। सारे शहर में आग लगी हुई थी। बहुत से भवनों को तोड़ दिया गया था। जमुना में बहने वाला पानी, पीले जैसे रंग का था मानो कि रक्त से दूषित हो गया हो।”

”मथुरा के विनाश से मुक्ति पा, जहान खान आदेशों के अनुसार देश में लूटपाट करता हुआ घूमता फिरा। मथुरा से सात मील उत्तर में, वृन्दावन भी नहीं बच सका… पूर्णतः शांत स्वभाव वाले, आक्रामकताहीन, सन्त विष्णु भक्तों पर, वृन्दावन में सामान्यजनों के नरसंहार का अभ्यास किया गया (६ मार्च) उसी मुसलमान डाइरी लेखक ने वृन्दावन का भ्रमण कर लिखा था; ”जहाँ कहीं तुम देखोगे शवों के ढेर देखने को मिलेंगे। तुम अपना मार्ग बड़ी कठिनाई से ही निकाल सकते थे क्योंकि शवों की संखया के आधिक्य और बिखराव तथा रक्त के बहाव के कारण मार्ग पूरी तरह रुक गया था। एक स्थान पर जहाँ हम पहुँचे तो देखा कि…. दुर्गन्ध और सड़ान्ध हवा में इतनी अधिक थी कि मुँह खोलने और साँस लेना भी कष्ट कर था”
(फॉल ऑफ दी मुगल ऐम्पायर-सर जदुनाथ सरकार खण्ड प्ट नई दिल्ली १९९९ पृष्ठ ६९-७०)

अब्दाली का गोकुल पर आक्रमण

”अपन डेरे की एक टुकड़ी को गोकुल विजय के लिए भेजा गया। किन्तु यहाँ पर राजपूताना और उत्तर भारत के नागा सन्यासी सैनिक रूप के थे। राख लपेटे नग्न शरीर चार हजार सन्यासी सैनिक, बाहर खड़े थे और तब तक लड़ते रहे जब तक उनमें से आधे मर न गये, और उतने ही शत्रु पक्ष के सैनिकों की भी मृत्यु हुई। सारे वैरागी तो मर गये, किन्तु शहर के देवता गोकुल नाथ बचे रहे, जैसा कि एक मराठा समाचार पत्र ने लिखा।”
(राजवाड़े प ६३, उसी पुस्तक में, पृष्ठ ७०-७१)
 — with Dheerendra GuptaGuddu TiwariRaj Dwivediरमाशंकर शर्माSanjay Singh ChauhanRajdeep SinghRamakant ChaturvediShailendra TripathiShishir TiwariAjay Singh RaghuwanshiRtn Baldev Singh ChughArvind TiwariYogendra ShuklaMohammad Imran SaudagarRakesh SharmaRavin Singh PariharRajesh DhamiAjeet PandeyAbhishek Bahadur Singh,Atul Singh PariharAnurag ShuklaVishnukant TripathiJeevesh ChaubeyKaran TripathiAnkit DubeyAbhishek Pandey AbvpAtul Gautam Dabbu NagodAjeet SinghpatelMayank Deco SinghRaj AaryaAlakh NiranjanAnil Kumar Patel,Acharya Jairam JI MaharajVashu M MishraAchla SharmaEr Brajesh Arora,Akhilesh PandeyKamlesh ChaubeyAbhinav Tripathi RanjanVindhya Ki Aawaz,Dinesh KaushalAnurag BajpaiNiranjan SharmaRajesh SahniRss Kumar Gaurav,Anupam MishraAakash Chaudhary and Pradeep Kumar Bhatnagar.


  • Atul Bicchewar देवतारी त्‍याला कोन मारी
  • Sant Kl Anand ATMA KI AMRTA KA JEEVAN SANTAN HOTA HAI..VASHV MEIN JO ATMA KA ANUBAV SA JEETA HA VO SANTAN DHRAMI HOTA HA..HINDUSTAN SANTAN DHRAM KA VISHV GURU HA...RAYGA ..AS LAYAY SANTAN SANSKRITI KA PRIVARTAN TO NAVEENTA BANAY RAKNEY KA LAYA HOGA HI....NASH NI HOSAKTA HA..
  • Venktesh Pandit १७३९ में, जब नादिर शाह ने दिल्ली पर आक्रमण किया था, तो अहमदशाह अब्दाली उसका सेनापति था। इस प्रकार अहमदशाह अब्दाली नादिरशाह की फौज की लुटेरा संस्कृति से पूरी तर वाकिफ था। उसे भारत के शासकों की कमजोरियों के बारे में जानकारी भी थी। वह भारत की सामाजिक व राजनैतिक संरचना से भली भांति परिचित था
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  • Venktesh Pandit अफगान शासक.....अहमद शाह अब्दाली यानि जिसे अहमद शाह दुर्रानी भी कहा जाता है, सन 1748 में नादिरशाह की मौत के बाद अफगानिस्तान का शासक और दुर्रानी साम्राज्य का संस्थापक बना। उसने भारत पर सन 1748 से सन 1758 तक कई बार चढ़ाई की और अपने दल बल के साथ रक्तपात और मूल्यवान सम्पदा की लूटपाट करता रहा। उसने अपना सबसे बड़ा हमला सन 1757 में जनवरी माह में दिल्ली पर किया। उस समय दिल्ली का शासक आलमगीर (द्वितीय) था। वह बहुत ही कमजोर और डरपोक शासक था। उसने अब्दाली से अपमानजनक संधि की जिसमें एक शर्त दिल्ली को लूटने की अनुमति देना था। अहमदशाह एक माह तक दिल्ली में ठहर कर लूटमार करता रहा। वहां की लूट में उसे करोड़ों की संपदा हाथ लगी थी।
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  • Venktesh Pandit अब्दाली द्वारा मथुरा और ब्रज की भीषण लूट बहुत ही क्रूर और बर्बर थी। दिल्ली लूटने के बाद अब्दाली का लालच बढ़ गया। उसने दिल्ली से सटी आसपास के छोटे छोटे राज्य के जाटों की रियासतों को भी लूटने का मन बनाया। ब्रज पर अधिकार करने के लिए उसने जाटों और मराठों के विवाद की स्थिति का पूरी तरह से फायदा उठाया। अहमदशाह अब्दाली पठानों की सेना के साथ दिल्ली से आगरा की ओर चला। अब्दाली की सेना की पहली मुठभेड़ जाटों के साथ बल्लभगढ़ में हुई। वहां जाट सरदार बालूसिंह और सूरजमल के ज्येष्ठ पुत्र जवाहर सिंह ने सेना की एक छोटी टुकड़ी लेकर अब्दाली की विशाल सेना को रोकने की कोशिश की। उन्होंने बड़ी वीरता से युद्ध किया पर उन्हें शत्रु सेना से पराजित होना पड़ा।
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  • Venktesh Pandit अहमद शाह अब्दाली की सेना के आक्रमणकारियों ने तब न केवल बल्लभगढ़ और उसके आस-पास लूटा और व्यापक जन−संहार किया बल्कि उनके घरों खेतो और शत्रुओं को भी गाजर मूली की तरह काट डाला। उसके बाद अहमदशाह ने अपने दो सरदारों के नेतृत्व में 20 हजार पठान सैनिकों को मथुरा लूटने के लिए भेज दिया। उसने उन्हें आदेश दिया− मेरे जांबाज बहादुरो! मथुरा नगर हिन्दुओं का पवित्र स्थान है। उसे पूरी तरह नेस्तनाबूद कर दो। आगरा तक एक भी इमारत खड़ी न दिखाई पड़े। जहां-कहीं पहुंचो, कत्ले आम करो और लूटो। लूट में जिसको जो मिलेगा, वह उसी का होगा। सभी सिपाही लोग काफिरों के सिर काट कर लायें और प्रधान सरदार के खेमे के सामने डालते जाएं। सरकारी खजाने से प्रत्येक सिर के लिए पांच रुपया इनाम दिया जायगा। यह थी अहमदशाह अब्दाली की क्रूर नीयत और नीति।
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  • Venktesh Pandit दिल्ली,गाजियाबाद.. पलवल, हापुड़ तथा मेरठ को लूटने के बाद सेना का अगला पड़ाव ब्रजभूमि,गोकुल और मथुरा की ओर था। इसके बाद अब्दाली का आदेश लेकर सेना मथुरा की तरफ चल दी। मथुरा से लगभग 8 मील पहले चौमुहां पर जाटों की छोटी सी सेना के साथ उनकी लड़ाई हुई। जाटों ने बहुत बहादुरी से युद्ध किया लेकिन दुश्मनों की संख्या अधिक थी, जिससे उनकी हार हुई। उसके बाद जीत के उन्माद में पठानों ने मथुरा में प्रवेश किया। मथुरा में पठान भरतपुर दरवाजा और महोली की पौर के रास्तों से आए और मार−काट और लूट−पाट करने लगे।
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  • Venktesh Pandit अहमदशाह अब्दाली की नृशंश फौज ने जब दिल्ली के आसपास के देहातों में किसानो के घरों और अन्न भण्डार की लूट पाट की तो वे अपनी सेना की रसद के लिए।गेहूं, दाल,चावल, आटा, घी, तेल, गुड़, नमक और शाक सब्जी तक बोरों और कट्टों में भर कर ले गए... यही नहीं उन्होंने उनके पशुओं और जानवरों तक को नहीं छोडा, उनके घोडे खच्चर हाथी और भैंसे तथा बैलगाड़ी उस सामान को ढोने के काम आए जो उन्होंने लूटपाट करके एकत्रित की थी। बाकी गाय भैसों सहित भेड़ बकरियों का कत्ल करके उनका फौज ने आहार बना लिए और उनकी खाल तक को बांध कर अफगानिस्तान ले गये ताकि फौजियों के लिए उम्दा जूते बन सकें।
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  • Venktesh Pandit ब्रजभूमि में वहां के सशस्त्र नागा साधु सैनिकों के मुबाबले पर आए परन्तु मुठठी भर साधु क्या कर लेते। बचाव के लिए आए साधुओं के साथ अब्दाली की सेना ने खूब मारकाट की और−वृन्दावन में लूट और मार-काट करने के बाद अब्दाली भी अपनी सेना के साथ मथुरा आ पहुँचा। ब्रज क्षेत्र के तीसरे प्रमुख केन्द्र गोकुल पर भी उसकी नजर थी। वह गोकुल को लूट-कर आगरा जाना चाहता था। उसने मथुरा से यमुना नदी पार कर महावन को लूटा और फिर वह गोकुल की ओर गया। वहां पर सशस्त्र नागा साधुओं के एक बड़े दल ने यवन सेना का जम कर सामना किया। उसी समय अब्दाली की फौज में हैजा फैल गया, जिससे अफगान सैनिक बड़ी संख्या में मरने लगे। इस वजह से अहमदशाह अब्दाली किसी अज्ञात दैवी प्रकोप की दहशत के कारण वापिस लौट गया। मथुरा की लूटपाट के दौरान उसके सलाहकारो ने यही अनुमान लगाया कि यह हिन्दुओं की पवित्र नगरी है और कंस को मारने वाले श्रीकृष्ण इसकी रक्षा करते हैं।
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  • Venktesh Pandit इस प्रकार नागाओं की वीरता और दैवी मदद से गोकुल लूट-मार से बच गया। गोकुल−महावन से वापसी में अब्दाली ने फिर से वृन्दावन में लूट की। मथुरा−वृन्दावन की लूट में ही अब्दाली को लगभग 12 करोड़ रुपये की धनराशि प्राप्त हुई, जिसे वह तीस हजार घोड़ो, खच्चरों और ऊटों पर लाद कर ले गया। वहां की कितनी ही जवान,विधवा और अविवाहित स्त्रियों को भी वह जबरन अफगानिस्तान ले गया। आगरा में लूट के बाद अब्दाली की सेना ब्रज में तोड़-फोड़, लूट-पाट और मार-काट करती आगरा पहुंची। उसके सैनिकों ने आगरा में जबर्दस्त लूट-पाट और मार−काट की। यहां उसकी सेना में दोबारा हैजा फैल गया और वह जल्दी ही लौटने की तैयारी करने लग गया और लूट की धन−दौलत अपने देश अफगानिस्तान ले गया। कई मुसलमान लेखकों ने लिखा है− अब्दाली द्वारा दिल्ली और और मथुरा के बीच ऐसा भारी विध्वंस किया गया था कि आगरा−दिल्ली सड़क पर झोपड़ी भी ऐसी नहीं बची थी, जिसमें एक आदमी भी जीवित रहा हो। अब्दाली की सेना के आवागमन के मार्ग में सभी स्थान ऐसे बर्बाद हुए कि वहां दो सेर अन्न तक मिलना कठिन हो गया था।
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  • Venktesh Pandit धर महाराष्ट्र में मराठों का प्रभुत्व मुगल-साम्राज्य की अवनति के पश्चात मथुरा पर भी बाद में मराठों का प्रभुत्व स्थापित हुआ और इस नगरी ने सदियों के पश्चात चैन की सांस ली। 1803 ई. में लॉर्ड लेक ने सिंधिया को हराकर मथुरा-आगरा प्रदेश को अपने अधिकार में कर लिया। उसके बाद से भारत की आजादी 1947 तक यह क्षेत्र अंग्रेजी हकूमत के अधीन रहा और इस देश ने काफी उतार चढाव देखे। यह भी एक तथ्य है ऐसे अनेक विदेशी दरिन्दों की लूटपाट और ��रसंहार के बावजूद मध्य भारत का यह इलाका सदा जीवन्त रहा और अपनी रक्षा और मान मर्यादा के लिए यहां की जनता ने मरते दम तक संघर्ष किया।
    19 hours ago · Like · 4
  • Lav Kush Pandey इन कुतो का बस चालता तो पूरा भारत ही ले जाते 
    देश में कुतो के द्वारा कुते रूपी समाज बनाना चाहते पर अब नहीं होने देगे कुते समाज की स्थापना 
    जय हिन्द जय भारत
    18 hours ago · Like · 3
  • Rakesh Sharma प्रिय व्यँकटेशबन्धु जी सत्य इतिहास से अनजान लोगोँ को जागरूक करने का यह कार्य सतत्‌ जारी रखो भाई । आप साधुवाद के पात्र हैँ ।
    18 hours ago · Like · 4
  • Sant Kl Anand ALL RIGHT...
  • Vashu M Mishra Is sachae ko batane k liye pandit ji aapka koti-koti dhanyawad..
    Jai shri ram....
    14 hours ago via mobile · Like · 2
  • Akhilesh Pandey अब अनुमान लगाइये कि भारत को क्यो सोने की चिडया कहते थे और आज भी है ...............................वक्त बदला लूट का तरीका भी बदला आज का लूट ब्यापार और घोटालो का रूप ले लिया है! और हम लूट के बाद ही जागरुख होते है क्योकि यही हमारी परंपरा है उदाहरण आज...See More
    12 hours ago · Like · 2
  • Narinder Rana dukhad history.

    lekin hame inhi se sikhna h
    5 hours ago via mobile · Like · 1
  • Rakesh Sharma प्रिय मित्रोँ अगर इतिहास की कुछ थोडी भी सच्चाई जानना चाहते हो कि कैसी कैसी विपत्तियाँ हमारे पूर्वजोँ पर आई हैँ । और मुसलमानोँ ने कितनी शाँति और प्रेम का व्यवहार हमारे साथ किया है ? तो श्री पुरूषोत्तम नागेश ओक जी द्वारा लिखित पुस्तक ' भारत मे मुस्लिम सुल्तान ' भाग एक व दो अवश्य पढेँ ।
  • Akhtar Ali muslims ke barey me badi gandi shoch hai
  • Lav Kush Pandey akhtar ali
    मुस्लिमो ने खुद ही येसा सोचने और करने पर मजबूर किया है 
    मुस्लिमो ने भारत वर्ष में कई बार हमला कर हमारी संस्कृति को नुकसान पहुचाया है और कितना तो लुटा है जीतने भी मुग़ल शासक थे सभी ने लुट कट की है और अज के समय पर मुस्लिमो के दुआर ही समय समय पर अपना रंग देखते रहते है
    10 minutes ago · Edited · Like · 1

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