सुफियो द्वारा हिन्दुओ का इस्लामीकरण..
जब मुस्लिम बादशाह बलपूर्वक भारत के सभी हिन्दुओं को मुसलमान नहीं बना सके तो उन्होंने हिन्दुओं को इस्लाम के प्रति आकर्षित करने के लिए एक नयी तरकीब निकाली . सब जानते हैं कि इस्लाम में शायरी , हराम है , क्योंकि जब मुहम्मद साहब ने खुद को अल्लाह का रसूल घोषित कर दिया था तो अरब के लोग कुरान को मुहम्मद की शायरी कहते थे . और अरब के शायर कुरान का मजाक उड़ाते थे . इसी तरह इस्लाम में संगीत , गाना बजाना,वाद्ययंत्रों का प्रयोग करना भी हराम है ,क्योंकि यह हिदू धर्म में भजन कीर्तन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है .इसलिए चालाक मुसलमानों ने सोचा कि यदि संगीत के माध्यम से हिन्दुओं में इस्लाम के प्रति रूचि पैदा की जाये तो उनका धर्म परिवर्तन करना सरल होगा.इसका परिणाम यह हुआ कि कुछ हिन्दुओं ने तो मुसलमानों के आचार विचार , खानपान अपना लिए ,लेकिन मुसलमान हिन्दुओं से हमेशा दूरी बनाये रखे. फिर मुसलमानों ने एक ऐसी कृत्रिम वर्णसंकर "धर्मनिरपेक्षता" तहजीब बना डाली , जिसका नाम गंगाजमुनी तहजीब रख दिया . इसे हिन्दू मुस्लिम एकता ,प्रतीक बता दिया ,बाद में मुसलमानों और दोगले हिन्दुओं ने इसका नाम "धर्मनिरपेक्षता" का नाम दे दिया .मुस्लिम शासकों ने तो हिन्दुओं की खतना करा कर मुस्लमान बना दिया था .लेकिन इस "धर्मनिरपेक्षता" ने हिन्दुओं की खस्सी कर दी . जिस से उनमे अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध लड़ने की शक्ति समाप्त हो गयी .इसमे संगीत का भी बड़ा योगदान है ,जिसे"सूफी संगीत"कहा जाता है .मूर्ख हिन्दू अरबी फारसी जाने बिना ही इस संगीत को एकता का मानते हैं . भारत में इसे कव्वाली भी कहा जाता है .जिसका अविष्कार अमीर खुसरो ने किया था जो कट्टर हिन्दू विरोधी था .
7-अमीर खुसरो की धर्मनिरपेक्षता ?
इसका पूरा नाम "अबुल हसन यमीनुद्दीन ख़ुसरौ : ابوالحسن یمینالدین خسرو" था .इसका जन्म सन 1253 में उत्तर प्रदेश के शहर बदायूँ में हुआ था .इसके पिता का नाम अमीर सैफुद्दीन था. जो ईरान के बलख शहर से भारत में सैनिक बनने के लिए आया था .अमीर खसरो को संगीत शायरी का शौक था,लोग उसे "अमीर ख़ुसरौ दहलवी :امیر خسرو دہلوی "भी कहते थे .बड़े दुःख की बात है किजो लोग खसरो की बनायीं गजलों को सुन कर झुमने लगते हैं . और उसी को हिन्दू मुस्लिम एकता का साधन बताते हैं , वह नहीं जानते कि खुसरो संगीत से एकता नहीं नफ़रत फैलाता था . और एक क्षद्म जिहादी था , हमारे धर्मनिरपेक्ष शासकों द्वारा बहुधा प्रशंसित धर्मनिरपेक्ष अमीर खुसरो अपनी मसनवी" Qiranus-Sa'dain" में लिखता है-
जहां रा कि दीदम ईँ रस्म पेश ,
कि हिन्दू बुवद सैदे तुर्कां हमेश .1
अज बेहतरे निस्बते तुर्को हिन्दू ,
कि तुर्क अस्त चूँ शेर हिन्दू चूं आहू .2
जि रस्मे कि रफ्त अस्त चर्खे र वाँ रा ,
वुजूद अज पये तुर्क शुद हिंदुआं रा .3
कि तुर्क अस्त ग़ालिब बर ईशां चूँ कोशद ,
कि हम गीरद हम खरद औ हम फ़रोशद .4
अर्थात्'संसार का यह नियम अनादिकाल से चला आ रहा है कि हिन्दू सदा तुर्कों का अधीन रहा है. 1
तुर्क और हिन्दू का संबंध इससे बेहतर नहीं कहा जा सकता है कि तुर्क सिंह के समान है और हिन्दू हिरन के समान.2
आकाश की गर्दिश से यह परम्परा बनी हुई है कि हिन्दुओं का अस्तित्व तुर्कों के लिये ही है. 3
क्योंकि तुर्क हमेशा गालिब होता है और यदि वह जरा भी प्रयत्न करें तो हिन्दू को जब चाहे पकड़े, खरीदे या बेचे।' 4
अब हिन्दू समाज को खास तौर पर युवकों को गंभीरता से सोचना चाहिए कि वह सेकुलर बनकर इस्लाम के सेकुलर आतंकवाद के जाल में तो नहीं फसते जा रहे हैं . या सेकुलर बन कर गांधी , और अन्ना जैसे कायर बनना पसंद करेंगे जो भूख से मर जाने को ही हर समस्या का हल बताता है . या आप गुरु गोविन्द सिंह , शिवाजी , बोस , आजाद और ऊधम सिंह जैसे धार्मिक बनना पसंद करंगे और हाथ फ़ैलाने की जगह अपने अधिकार छीन लेंगे .और ईंट का जवाब पत्थर से देंगे .
याद रखिये धर्मनिरपेक्षता जिहाद का ही एक रूप है
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